आजकल साहित्य जगत में चर्चा-ए-आम है श्री विभूति नारायण राय की महिला लेखकों के प्रति गैरजिम्मेदाराना टिप्पणी ........इस टिप्पणी को लेकर लगातार आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है , विगत दिनों स्वतन्त्रता दिवस पर आयोजित महत्वपूर्ण परिचर्चा के कारण मैंने इस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया , किन्तु इस बीच अनेक साहित्यकारों की टिप्पणियों से मैं रूबरू होता रहा । उन्हीं टिप्पणियों में से दो महत्वपूर्ण टिप्पणी आज परिकल्पना पर प्रस्तुत कर रहा हूँ- =======================================================
इन दिनों हिन्दी साहित्य परिदृश्य में जो कुछ अरोचक, अवैचारिक तथा असाहित्यिक घट रहा है। दुखद है। उत्तेजित करने वाला है।वरिष्ठ कथाकार तथा महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविधालय के कुलपति विभूति नारायण राय द्वारा भारतीय ज्ञानपीठ की पत्रिका ‘नया ज्ञानोदय’ बेवफाई सुपर विशेषांक के लिए ली गयी अपनी बातचीत में लेखिकाओं के प्रति आपत्तिजनक शब्द और उनके लेखन पर अपनी राय देते हुए जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं नाकाविल-ए-वर्दाश्त है।मेरी दृष्टि में, विभूति नारायण राय से अधिक दोषी ‘नया ज्ञानोदय’ के संपादक होने के नाते रवीन्द्र कालिया जी हैं, जिन्होंने उनकी ऐसी टिप्पणी को बिल्कुल गैर जिम्मेदाराना ढंग से छापा दरअसल, रवीन्द्र कालीया जी जबसे ज्ञानपीठ के निदेशक बने हैं, ज्ञानपीठ की गरिमा धूमिल हुई है। ‘नया ज्ञानोदय’ के जैसे-जैसे असाहित्यिक और बाजारू अंक उनके संपादन में आ रहे हैं, वेहद अफसोसनाक हैं । रवीन्द्र’ कालिया जी ‘ज्ञानपीठ’ जैसी गरिमामयी संस्था की शीर्ष पर बैठ कर न्याय नहीं कर पा रहे हैं । इसलिए मेरी मांग है कि रवीन्द्र कालिया जी को तुरत ज्ञानपीठ के निदेशक पद से इस्तीफा दे देना चाहिए तथा ऐसे कृत्यो मे शामिल उनके सहयोगियों को भी ज्ञानपीठ से निकाल-बाहर करना चाहिए।
शहंशाह आलम, युवा कवि

मोबाईल न० - ०९८३५४१७५३७




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हिन्दी के वरिष्ठ कवि उद्भ्रांत ने विभूति नारायण राय और रवीन्द्र कालिया प्रकरण के संदर्भ’ में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इन दोनों व्यक्तियों की मानसिकता अपने लेखन और व्यवहार में प्रारम्भ से ही स्त्री विरोधी रही है और इन दोनों की मिली भगत ने मौजूदा समय में एक ऐसा गर्हित उदाइरण प्रस्तुत कर दिया है जिसकी मिसाल सौ साल मे इतिहास में नहीं मिलेगी । और पहली बार ऐसा हुआ है कि समूचा हिन्दी समाज इनकी अश्लील जुगलबंदी के खिलाफ उठ खड़ा हुआ है। अगर ज्ञानपीठ के प्रबंधकों ने कालिया को तत्काल प्रभाव से वर्खास्त नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब ज्ञानपीठ को हिन्दी के एक भी सुरूचि सम्पन्न पाठक की कमी महसूस होगी । जहाँ तक विभूति नारायण की बात है उनका तो मूल चरित्र पुलिसिया मानसिकता वाला ही है, भले ही सरकारी दवाब में अपनी नौकरी बचाने के लिए उन्होंने माफी अभी मांगी हो लेकिन उनका जाना भी निश्चित है। यह भी विश्वास है कि भविष्य में कोई भी हीन मानसिकता से ग्रस्त रचनाकार या व्यक्ति इस तरह के अश्लील शब्द को सार्वजनिक मंच से प्रयोग करने से पहले हजार बार सोचेंगे । मैं विष्णु खरे के जनसत्ता में दो अंको में प्रकाशित लेख का शत प्रतिशत समर्थन करता हूँ अगर कालिया को ज्ञानपीठ से तुरत बाहर नहीं किया गया तो भारतीय ज्ञानपीठ जिसका गौरवशाली इतिहास है आनेवाले पीढियों की नजरों में एक पतनशील संस्था के रूप में पहचानी जायेगी।
उद्भ्रांत
मो.- ०९८१८८५४६७८

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