स्वतन्त्रता दिवस पर आयोजित परिचर्चा का आज सातवाँ दिन है ! इस सातवें दिन की शुरुआत हम करने जा रहे हैं श्रीमती संगीता पुरी जी से , आईये उनसे पूछते हैं कि उनके लिए आज़ादी के क्या मायने है![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhI4_3ukY1-NqIrifVtEcZ2WGJAYT69A3uZ-Zu8evg8BBied5bp755gaSKwJQrm1qyXpYI5WSQWiTBILY4EJSVhmqVlxhE13ecieowFKNTbqrVV-RlkRtWfXloWnLkgNL-8RupvNxzMx18/s400/aazaadee-3.jpg)
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सामान्य रूप में आजादी का अर्थ पूर्ण तौर पर स्वतंत्र होना है , जिसमें किसी का भी कोई हस्तक्षेप न हो। पर मनुष्य के जीवन में वैसी आजादी किसी काम की नहीं , क्यूंकि इसमें उसके समुचित विकास की कोई संभावना नहीं बनती। जब एक बच्चा जन्म लेता है , तो भूख लगने पर रोता , पेट भरने पर खुश होकर हाथ पैर चलाता है। ये सब उसकी स्वाभाविक क्रिया प्रतिक्रियाएं हैं और ऐसा करना उसका अधिकार है , इसकी स्वतंत्रता उसे मिलनी चाहिए। उस समय अभिभावक अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुरूप उसकी सारी जरूरतों को पूरा करते हैं।
थोडे बडे होने पर स्वाभाविक ढंग से ही बच्चे क्रमश: खिसकना और चलना शुरू कर देते है, पर उस समय हम उसे एक सीमा के बाद चलने से इसलिए रोक लेते हैं , ताकि वे गिरकर अपने सर हाथ न तोड लें , उनकी जान पर न बन आए। यदि वे परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ मार पीट करते है तो उसके माता पिता उन्हें डांट फटकार लगाते हैं दूसरों को तंग करने का अधिकार उन्हे नहीं मिलता। इस तरह एक मिट्टी के बरतन की तरह अंदर से सहारा देकर बाहर से ठोक पीटकर उसे देश , काल और परिस्थिति के अनुसार ढाला जाता है। बच्चे जब और बडे होते हैं तो उन्हे नियम अनुशासन में बंधकर रहना सिखलाना और उन्हें शरिरिक , मानसिक और चारित्रिक तौर पर मजबूत बनाना भी न सिर्फ उनके भविष्य के लिए वरन् समाज के उत्थान के लिए भी अच्छा होता है।
एक अभिभावक की तरह ही राज्य और समाज की भी जिम्मेदारी होती है कि वह नागरिकों के समुचित विकास और उन्हें सुख सुविधा देने के लिए हर संभव प्रयास करे। समाज या राष्ट्र के अधिक से अधिक नागरिकों को , चाहे वो अमीर हो या गरीब , कमजोर हो या मजबूत , को एक स्वस्थ और स्वतंत्र माहौल मिलना , ताकि जमाने के हिसाब से उसकी आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके , असली स्वतंत्रता है।
चूंकि अभिभावक की तरह ही हर देश का आर्थिक स्तर अलग अलग होता है , इसलिए सुख और समृद्धि की एक सीमा की हो सकती है , पर अधिकार और कर्तब्यों के मिश्रण से स्वास्थ्य और चरित्र की दृष्टि से तो प्रत्येक नागरिक को मजबूत बनाया ही जा सकता है। उन्हें कम से कम इतना अधिकार तो दिया ही जा सकता है कि वह पूरे राष्ट्र में कहीं भी भयमुक्त वातावरण में अपनी रूचि का कार्य कर अपना जीवन यापन कर सकें।
पर अधिकारों के साथ साथ नागरिकों को भी आवश्यक कर्तब्य पालन के लिए हर वक्त तैयार होना चाहिए , क्यूंकि पूरे राष्ट्र के लोगों की सुविधा के लिए , राष्ट्र के विकास के लिए , विश्व के अन्य देशों से खुद को आगे बढाने के लिए यह बहुत आवश्यक है। हर प्रकार की स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए , हर प्रकार की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए नागरिकों के द्वारा अधिकार और कर्तब्य दोनो का पालन आवश्यक है , ये दोनो एक दूसरे के पूरक हैं। स्वतंत्रता का अर्थ उच्छृंखलता या मनमानी नहीं होती ।
संगीता पुरी
थोडे बडे होने पर स्वाभाविक ढंग से ही बच्चे क्रमश: खिसकना और चलना शुरू कर देते है, पर उस समय हम उसे एक सीमा के बाद चलने से इसलिए रोक लेते हैं , ताकि वे गिरकर अपने सर हाथ न तोड लें , उनकी जान पर न बन आए। यदि वे परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ मार पीट करते है तो उसके माता पिता उन्हें डांट फटकार लगाते हैं दूसरों को तंग करने का अधिकार उन्हे नहीं मिलता। इस तरह एक मिट्टी के बरतन की तरह अंदर से सहारा देकर बाहर से ठोक पीटकर उसे देश , काल और परिस्थिति के अनुसार ढाला जाता है। बच्चे जब और बडे होते हैं तो उन्हे नियम अनुशासन में बंधकर रहना सिखलाना और उन्हें शरिरिक , मानसिक और चारित्रिक तौर पर मजबूत बनाना भी न सिर्फ उनके भविष्य के लिए वरन् समाज के उत्थान के लिए भी अच्छा होता है।
एक अभिभावक की तरह ही राज्य और समाज की भी जिम्मेदारी होती है कि वह नागरिकों के समुचित विकास और उन्हें सुख सुविधा देने के लिए हर संभव प्रयास करे। समाज या राष्ट्र के अधिक से अधिक नागरिकों को , चाहे वो अमीर हो या गरीब , कमजोर हो या मजबूत , को एक स्वस्थ और स्वतंत्र माहौल मिलना , ताकि जमाने के हिसाब से उसकी आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके , असली स्वतंत्रता है।
चूंकि अभिभावक की तरह ही हर देश का आर्थिक स्तर अलग अलग होता है , इसलिए सुख और समृद्धि की एक सीमा की हो सकती है , पर अधिकार और कर्तब्यों के मिश्रण से स्वास्थ्य और चरित्र की दृष्टि से तो प्रत्येक नागरिक को मजबूत बनाया ही जा सकता है। उन्हें कम से कम इतना अधिकार तो दिया ही जा सकता है कि वह पूरे राष्ट्र में कहीं भी भयमुक्त वातावरण में अपनी रूचि का कार्य कर अपना जीवन यापन कर सकें।
पर अधिकारों के साथ साथ नागरिकों को भी आवश्यक कर्तब्य पालन के लिए हर वक्त तैयार होना चाहिए , क्यूंकि पूरे राष्ट्र के लोगों की सुविधा के लिए , राष्ट्र के विकास के लिए , विश्व के अन्य देशों से खुद को आगे बढाने के लिए यह बहुत आवश्यक है। हर प्रकार की स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए , हर प्रकार की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए नागरिकों के द्वारा अधिकार और कर्तब्य दोनो का पालन आवश्यक है , ये दोनो एक दूसरे के पूरक हैं। स्वतंत्रता का अर्थ उच्छृंखलता या मनमानी नहीं होती ।
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( वर्ष की श्रेष्ठ सकारात्मक महिला ब्लोगर )
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जारी है परिचर्चा, मिलते हैं ११ बजे एक और ब्लोगर के विचारों के साथ ......
nice
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता का अर्थ उच्छृंखलता या मनमानी नहीं होती ...
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ विचार ....
अच्छी पोस्ट ...!
स्वतंत्रता का अर्थ उच्छृंखलता या मनमानी नहीं होती
जवाब देंहटाएंसहमत!