अविनाश वाचस्पति जी की चुटीली टिप्पणियों के बाद आईये चलते हैं कोलकाता और पूछते है मनोज कुमार जी से क्या है उनके लिए आज़ादी के मायने ?
स्वतंत्रता की बासठवीं जयंती,
मना चुके हम भारतवासी।
सैंतालिस के मध्य निशा की,
क्या हमको है याद ज़रा सी।
ख़ुशियां ख़ूब मनाई सबने,
दुख का मौसम दूर किया था।
कुचला था एक सर्प, दर्प
अंगरेज़ों का चूर किया था।
हो तो गए स्वतंत्र, हमारी
क्या मिट सकी उदासी।
सैंतालिस के मध्य निशा की,
क्या हमको है याद ज़रा सी।
कैसे - कैसे बलिदान किए,
धन्य - धन्य बलिदानी।
काल - कोठरी अन्धकूप के,
पी गए कालापानी।
कितने कितने आदर्श दिए,
स्वीकारी हंस हंसकर फांसी।
सैंतालिस के मध्य निशा की,
क्या हमको है याद ज़रा सी।
बापू के सुन्दर सपनों का,
हमने ख़ूब किया अभिनंदन।
नाम कलंकित किया देश का,
टीक भाल पर ख़ूनी चंदन।
ज़ार - ज़ार रोता वृंदावन,
कलपे मथुरा, अयोध्या, काशी।
सैंतालिस के मध्य निशा की,
क्या हमको है याद ज़रा सी।
पृथ्वी, अग्नि, राकेट, अणुबम,
हमारा इतना हुआ विकास।
फिर भी इन भूलों का,
प्रतिपल होता है एहसास।
स्वाभिमान क्यों बिका हमारा,
अपनी वृत्ति बनी क्यों दासी।
सैंतालिस के मध्य निशा की,
क्या हमको है याद ज़रा सी।
मनोज कुमार
(वर्ष के श्रेष्ठ लेखक : यात्रा वृत्तांत )
http://manojiofs.blogspot.com/
http://raj-bhasha-hindi.blogspot.com/
=======================================================
जारी है परिचर्चा, मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद .......
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
मन को झंझोड़ने वाली कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
Sach ko bayan karti kavita.
जवाब देंहटाएंeye opener post
जवाब देंहटाएंwaah bahut hi badhiyaa
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएं