नयन जोहते बाट  तुम्हारी
कब आओगे, ओ! बनवारी
रोज रोज माकन हांड़ी भर,
ताके राह यशोदा  मैया
यमुना तक सुनसान पड़ा है,
कब आओगे रास रचैया
गोपी,राधा,सब दुखियारी
कब आओगे  ओ! बनवारी
मन है मलिन ,देह कुब्जा सी,
मोह माया के निकले कूबड़
कब निज चरणों के प्रसाद से,
ठीक करोगे इनको गिरधर
आस लगाए है बेचारी
कब आओगे ओ!बनवारी
कैद पड़े बासुदेव,देवकी,
कंस चूर सत्ता के मद में
जनता त्राहि त्राहि कर रही,
सब की जान फंसी आफत में
कंस हनन अब करो मुरारी
कब आओगे ओ!बनवारी
जरासंध मद अंध हो रहा,
शिशुपाल भी है पगलाया
सौ  से अधिक ,गालियाँ सह ली,
 तुमने अपना वचन निभाया
चक्र चलाओ,सुदर्शनधारी
कब  आओगे ओ!बनवारी
आओ नई पीढ़ी को जीवन,
जीने का सिखलाओ तरीका
रिश्ते नाते भुला दिये सब,
गीता से बस इतना सीखा
फिर समझाओ गीता सारी
कब आओगे ओ!बनवारी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

1 comments:

  1. बहुत ही बेहतरीन और प्रभावपूर्ण रचना....
    जन्माष्टमी पर्व की शुभकामनाएँ
    मेरे ब्लॉग

    जीवन विचार
    पर आपका हार्दिक स्वागत है।

    जवाब देंहटाएं

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

 
Top