बिना आग के धुँआ नहीं
सच है,
हर घटना की आग होती है
लेकिन,
उठते धुँए में
किसी भटके राही का चेहरा भी होता है
भविष्य की एक और आग है !!
रश्मि प्रभा
दबी होती है चिंगारी, धुँआ जब तक भी उठता है
गौतम राजरिशी
न समझो बुझ चुकी है आग गर शोला न दिखता है
दबी होती है चिंगारी, धुँआ जब तक भी उठता है
बड़े हो तुम कि तुम तो चाँदनी से घर सजाते हो
हमारी झुग्गियों में चाँद भी छन-छन के चुभता है
गया वो इस अदा से छोड़ कर चौखट कि मत पूछो
हर इक आहट पे अब देखो ये दरवाजा तड़पता है
बता ऐ आस्मां कुछ तो कि करने चाँद को रौशन*
तपिश दिन भर लिये सूरज भला क्यूं रोज़ जलता है {*ये शेर खास तौर पर लोकप्रिय कवि लाल्टू को समर्पित है}
बना कर इस कदर ऊँचे महल, तू छीन मत मुझसे
हवा का एक झोंका जो मेरी खिड़की में रहता है
चलो, चलते रहो, पहचान रुकने से नहीं बनती
बहे दरिया तो पानी पत्थरों पर नाम लिखता है
वो बचपन में कभी जो तितलियाँ पकड़ी थीं बागों में
बरस बीते, न अब तक रंग हाथों से उतरता है
कहो मत खोलने मुट्ठी हमारी, देख लो पहले
कि कैसे बंद मुट्ठी से यहाँ तूफ़ान रिसता है
किताबें बंद हैं यादों की जब सारी मेरे मन में
ये किस्से जेह्न में माजी के रह-रह कौन पढ़ता है
कई रातें उनिंदी करवटों में बीतती हैं जब
कि तब जाकर नया कोई ग़ज़ल का शेर बनता है
और ये धुँआ धुँआ
अक्टूबर की गुनगुनाती धूप
लम्बी ‘ब्लू रिज’ पर्वत श्रृंखला
जलेबिया रास्तों की चुनौतियाँ
मुग्ध करती पहाड़ी हरियाली
और ये धुँआ धुँआ
ये कौन जल रहा पहाड़ो में?
किसके निशाँ है चट्टानों पर
किसके आंसुओं की धारा है वादियों में
जिससे उठ रहा है ये घना वाष्प
और ये धुँआ धुँआ
वादियों में गूंजती भूतहा आवाज़
चट्टानों से टकरा-टकरा व्याकुल है
असली घर की खोज में
जहाँ कैद है उनकी वेदना-गाथा
और ये धुँआ धुँआ
वही वेदना गाथा जिसमे
जबरन घरों से घसीट उन्हें
दिखाया गया नए घर का रास्ता
बना आंसुओं में डूबा इतिहास (ट्रेल ऑफ़ टीयर्स)
और ये धुँआ धुँआ
मैं सिहरता हूँ ये सोच बस
किसी निर्जन टापू पर भेज मुझे
कोई लगा दे आग मेरे गाँव
छोड़ जाए राखों में अस्तित्व
और ये धुँआ धुँआ
कहने को बहुत कुछ है
लिखने को बहुत कुछ है
लेकिन मन कहता है
क्या लिखूं यहाँ वहाँ
और ये धुँआ धुँआ
गौतम और निहार उम्दा लेखन समय के हस्ताक्षर ।
जवाब देंहटाएंगौतम राजरिशी जी और निहार रंजन जी सुन्दर रचना प्रस्तुति हेतु आभार!
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