लड़की हवा का झोंका होती है
पुरवा की तरह भागती है
कभी माँ के पास
कभी गुड़िया घर में
कभी सावन के झूलों पर पींगे भरती है …
राग बसंत कहो
या फिर राग मल्हार
बरसती है तो बरसती जाती है
कभी झमाझम बूंदों सी …
बचपन को अपनी उँगलियों में बाँधकर सोती जागती है
वक़्त कोई हो
सोहणी को जीती है
रात की बेचैनी को लोरी सुनाती है …
भागती है धरती पर
छोर नापती है
लड़की
सरगम होती है
जिसे गुनगुनाने को जी चाहता है ....
रश्मि प्रभा
आती हुई लहरें और आती हुई लड़की..
प्रतिभा कटियार
समंदर के किनारे उस रोज उदास हो जाते, जब लड़की के घुंघरुओं की आवाज किनारों से उठते हुए लहरों में घुलती नहीं थी. लड़की रोज समंदर के किनारे अपने पैरों में घुंघरू बांधकर अपने मन को खोल दिया करती थी. समंदर उसके लिए किसी आईने के जैसा था. वो उससे अपने मन की सारी बातें कहती थी. उसकी लहरों के संगीत को वो कानों में पहनती थी. समंदर की अथाह गहराइयों को चुनौती देती थी कि मेरे मन की गहराई तुझसे ज्यादा है, इसलिए मुझसे ज्यादा इतराने की जरूरत नहीं. वो जब बहुत खुश होती या जब बहुत उदास होती थी वो समन्दर के किनारे नृत्य करती थी. समंदर उसके नृत्य का दीवाना था. जैसे ही उसे सामने से लड़की आती दिखती वो दौड़कर उसके पांवों में गिर पड़ता. लड़की उसे प्यार से गले लगाती. कैसे हो? वो उससे पूछती. समंदर मुस्कुरा देता.
वो यह कह ही नहीं पाता कि कब से पलकें बिछाये एकटक तुम्हारी ही राह देख रहा हूं. लड़की को समंदर से बहुत प्यार था. समंदर को लड़की से बहुत प्यार था. लेकिन कोई और भी था इस प्यार का हमसफर. वो लड़का जो अक्सर लड़की के साथ वहां आता था. या कभी-कभी बाद में भी.
हालांकि समंदर को अपना रुतबा लड़के से अक्सर बड़ा लगता क्योंकि लड़की आती भले ही लड़के के साथ थी लेकिन वो होती समंदर के साथ ही थी. कई बार लड़का झगड़ा भी करता कि क्या तुम समंदर को देखा करती हो. ऐसे ही चुपचाप आती-जाती लहरों को देखना था तो मेरे साथ क्यों आई? लड़की मुस्कुरा देती.
लड़का कई बार नाराज होकर चला जाता. लड़की तब भी मुस्कुरा देती. इस बार उसकी मुस्कुराहट में कुछ खारी सी नमी भी होती. वो गीली रेत पर अपने उदास पैरों की छाप छोड़ती और समंदर अपनी लहरों से उन उदास कदमों के निशान को अपने भीतर समेट लेता.
सूरज जब दिन भर जलते-जलते थक जाता तो समंदर की गोद में पनाह लेने को व्याकुल हो उठता. किसी और को सुनाई देती हो, न देती हो लेकिन लड़की को रोज समंदर के किनारे शाम के वक्त छन्न की आवाज सुनाई देती. वो जलते हुए सूरज के पानी में गिरकर बुझने की आवाज होती थी उसके घुंघरुओं की नहीं. वो उस एक लम्हे में नृत्य की उस मुद्रा में स्थिर हो जाती, जिसमें वह उस पल होती थी. उस मुद्रा में ठहरकर वो सृष्टि के नियम का उल्लंघन करती थी. वो 24 घंटों में से उस एक लम्हे को रोक लेती थी. दुनिया की कोई मशीन, कोई गणना, कोई विज्ञान यह राज आज तक नहीं जान पाया कि आखिर दिनों का छोटा या बड़ा होने का कारण क्या है. पृथ्वी, धुरी चक्कर ये सब तो चोचले हैं इन लोगों के अपनी अनभिज्ञता को छुपाने के. असल में यह सब लड़की और समंदर की कारस्तानी थी. कभी-कभी इस कारस्तानी में सूरज भी शामिल हो जाता था. और कभी-कभी तो चांद भी. बस इस सारे खेल में कभी लड़का शामिल नहीं हो पाता था. उसे हमेशा लगता था कि इस खेल के नियम वो नहीं जानता. अक्सर उसके साथ फाउल हो जाता और वो खुद को खेल से बाहर पाता. हालांकि लड़की कुछ अपने प्वॉइंट्स देकर फिर से अपने साथ ले आती. वो फिर से खेल में शामिल हो जाता लेकिन अनाड़ी तो अनाड़ी. कभी उसे सूरज हरा देता कभी समंदर. कभी तो कोई बादल का टुकड़ा आकर चांद पर बैठ जाता और लड़का जीतते-जीतते हार जाता. तब वो लड़की का हाथ पकड़कर वहां से चला जाता. जब भी लड़का ऐसा करता समंदर को लगता कि उसके साथ चीटिंग हो गई है.
इधर लंबे समय से बोझिल दिन समंदर के सीने पर लोटते रहते थे. उसने खुद को किसी बैरागी की तरह दुनियावी चीजों से मुक्त करना शुरू कर दिया था. यही वजह थी कि कई दिनों से समंदर एकदम शांत नज़र आ रहा था. इस बात के लोग कई एंगल निकालने लगे थे कि समंदर की इतनी गहरी खामोशी कहीं किसी आगामी विध्वंस की सूचना तो नहीं है. ये सच सिर्फ समंदर जानता था कि ऐसा कुछ भी नहीं है असल में वो इन दिनों आलसी हो गया है और उसका टस से मस होने का भी मन नहीं करता है. फिर कितने दिनों से लड़की भी नहीं आई थी.
आखिरी बार जब वो समंदर के किनारे आई थी तो लड़की की आखों में खूब चमक थी. लड़का भी उसके साथ था. दोनों खूब खुश थे. दोनों ने एक दूसरे को अंगूठी पहनाई थी. गले लगाया था. लड़की ने उस दिन खूब देर तक नृत्य किया था. इतना... इतना... इतना... कि उसके सारे घुंघरू टूटकर समंदर के किनारे बिखर गये थे. समंदर ने उन घुंघरुओं को अपनी लहरों में समेट लिया था. लड़की ने समंदर की इस हरकत को बहुत प्यार से देखा था. तभी छम्म...छम्म..की आवाज आई थी. ये लड़की के नृत्य की नहीं समंदर की लहरों की आवाज थी. लड़की कितना हंसी थी उस रोज. समंदर से उसने कहा था 'तुम' अब 'मैं' हो गये हो. मेरी ही तरह छम्म छम्म छम्म...कर रहे हो. उसने समंदर में अपना अक्स उतरते देखा. समंदर ने लड़की को अपने भीतर उतरते महसूस किया. लड़का इस खेल से अब भी बाहर था.
सूरज को बुझे काफी वक्त गुजर चुका था. चांद ऊंचे से नारियल के पेड़ पर लटका हुआ था मानो उसे अपने तोड़े जाने का बेसब्री से इंतजार हो. लड़की ने उसकी ओर शरारत से देखा और कहा, वहीं लटके रहो. उसने मोगरे के फूलों को बालों में सजाया और चांद को ठेंगा दिखाया. मोगरे के फूल लड़का लेकर आया था. वो फूल उसके लिए सृष्टि की सबसे खूबसूरत सौगात थे. चांद भी उसके आगे फीका था. उसने चांद से कहा नाहक तुझे खुद पर इतना गुमान है...उसने लड़के की ओर देखा और उसका गुमान फैलकर इतना बड़ा हो गया कि समंदर का किनारा कम पडऩे लगा.
उस हसीन शाम के बाद लड़की वहां नहीं आई. समंदर की लहरों से छम्म...छम्म...छम्म... की आवाज आती रही. सूरज रोज बेमन से उगता और डूबता रहा. चांद भी अपनी ड्यूटी बजाता रहा. किसी में कोई उत्साह नहीं था. बस सब सरकारी नौकरी की तरह निभा रहे थे अपना होना किसी स्थाई पेंशन के इंतज़ार में. हालांकि चांद कभी-कभी लड़की को शहर के भीतर भी तलाशता था. उसे लड़की की सूरत न$जर भी आ जाती लेकिन लड़की नज़र नहीं आती थी. इसी तरह दिन महीने बीतते गये.
एक रोज समंदर ने आसमानी रंग का दुपट्टा दूर से उड़ते देखा. आसमानी रंग लड़की का प्रिय रंग था. वो आसमान पहनकर समंदर में समा जाना चाहती थी. धरती तो वो खुद थी ही. आसमानी दुपट्टे में लड़की की छवि भी समंदर को दिखी. वो अनायास मुस्कुरा उठा. लड़की के कदमों में कोई गति नहीं थी. वो बस चल रही थी. धीरे-धीरे वो समंदर के किनारे पहुंच गई. समंदर पहले की तरह दौड़कर उसके पैरों में गिर पड़ा. लेकिन इस बार लड़की ने उसे उठाकर गले नहीं लगाया.
वो उदास थी. उसकी आंखों के नीचे काले घेरे थे. समंदर को उसने देखा और रो पड़ी. जैसे मायके लौटकर कोई लड़की अपनी मां को देखकर रो पड़ती है. बिना कुछ कहे सुने कितने संवाद हो जाते हैं उस रुदन में. उस रोज लड़की के नृत्य ने नहीं उसकी सिसकियों ने सूरज को पल भर के लिए थम जाने को विवश कर दिया. वो बहुत उदास हुआ. समंदर ने अपनी लहरों की पाजेब लड़की के पांवों में बांध दी. नारियल के पेड़ पर लटका हुआ चांद हैरत से देख रहा था सब कुछ. उसकी आंखें नम थीं. लड़की ने समंदर को गले लगाया और समंदर के किनारों पर घुंघरुओं की छम्म छम्म छम्म...फिर से गूंज उठी.
उस रोज लड़की ने ऐसा नृत्य किया...ऐसा नृत्य किया... कि वैसा उसके पहले किसी ने देखा था न बाद में किसी ने देखा. चांद खुद टूटकर उसके बालों में टंक गया था. मोगरे के फूल उस रोज वहीं किनारे पड़े थे. लड़की का चेहरा चमक रहा था. उसकी आंखों का सारा खारापन समंदर ने सोख लिया. लड़की अब हवा से हल्की हो उठी थी. उसका मन मुक्त था. उसी दिन से समंदर का पानी खारा हो गया और उसकी लहरों में संगीत घुल गया.
लड़की अब अपने बालों में फूल नहीं चाँद सजाती है. समंदर की लहरों से अब भी छम्म... छम्म... की आवाजें आती हैं. समंदर और लड़की के प्रेम की दास्तान किसी इतिहास में दर्ज नहीं है...
अँधेरे में रौशनी की किरण – हेलेन केलर
अनिता शर्मा
कहते हैं जब सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं तो भगवान एक खिड़की खोल देता है , लेकिन अक्सर हम बंद हुए दरवाजे की ओर इतनी देर तक देखते रह जाते हैं कि खुली हुई खिड़की की ओर हमारी दृष्टी भी नही जाती। ऐसी परिस्थिति में जो अपनी दृण इच्छाशक्ति से असंभव को संभव बना देते हैं, वो अमर हो जाते हैं।दृण संकल्प वह महान शक्ति है जो मानव की आंतरिक शक्तियों को विकसित कर प्रगति पथ पर सफलता की इबारत लिखती है। मनुष्य के मजबूत इरादे दृष्टीदोष, मूक तथा बधिरता को भी परास्त कर देते हैं। अनगिनत लोगों की प्रेरणा स्रोत, नारी जाति का गौरव मिस हेलेन केलर शरीर से अपंग पर मन से समर्थ महिला थीं। उनकी दृण इच्छा शक्ति ने दृष्टीबाधिता, मूक तथा बधिरता को पराजित कर नई प्रेरणा शक्ति को जन्म दिया।
27 जून 1880 को जन्म लेने वाली ये बालिका 6 महिने में घुटनो चलने लगी और एक वर्ष की होने पर बोलने लगी। जब 19 माह की हुईं तो एक साधारण से ज्वर ने हँसती-खेलती जिंदगी को ग्रहण लगा दिया। ज्वर तो ठीक हो गया किन्तु उसने हेलन केलर को दृष्टीहीन तथा बधिर बना दिया। सुन न सकने की स्थिती में बोलना भी असंभव हो जाता है। माता-पिता बेटी की ये स्थिती देखकर अत्यधिक दुःखी हो गये। ऐसा लगने लगा कि उनकी पुत्री पर किसी ने मुश्किंलो का वज्रपात कर दिया हो। हेलन का बचपन कठिन दौर से गुजरने लगा, किसी को आशा भी न थी कि कभी स्थिति सुधर भी सकती है।
एक दिन हेलेन की माँ समाचार पत्र पढ रहीं थीं, तभी उनकी नजर बोस्टन की परकिन्स संस्था पर पङी। उन्होने पुरा विवरण पढा। उसको पढते ही उनके चेहरे पर प्रसन्नता की एक लहर दौङ गई और उन्होने अपनी पुत्री हेलन का दुलार करते हुए कहा कि अब शायद मुश्किलों का समाधान हो जाए। हेलन के पिता ने परकिन्स संस्था की संरिक्षिका से अनुरोध किया जिससे वे हेलेन को घर आकर पढाने लगी। यहिं से हेलेन केलर की जिंदगी में परिर्वन शुरु हुआ। केलर की अध्यापिका सुलीवान बहुत मुश्किलों से उन्हे वर्णमाला का ज्ञान करा सकीं। एक-एक अक्षर को केलर कई-कई घंटो दोहराती थीं, तब कहीं जाकर वे याद होते थे। धीरे -धीरे वे बोलने का भी अभ्यास करने लगीं जिसमें उन्हें आंशिक सफलता प्राप्त हुई। हेलेन की इस सफलता के पीछे उनका संकल्प बल कार्य कर रहा था। कठिन परिश्रम के बल पर उन्होने लैटिन, फ्रेंच और जर्मन भाषा का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। 8 वर्षों के घोर परिश्रम से उन्होने स्नातक की डिग्री प्राप्त कर ली थी। उन्हे सारे संसार में लोग जानने लगे थे। आत्मा के प्रकाश से वे सब देख सकती थीं तथा बधिर होते हुए भी संगीत की धुन सुन सकती थीं। उनका हर सपना रंगीन था और कल्पना र्स्वणिम थी।
सुलिवान उनकी शिक्षिका ही नही, वरन् जीवन संगनी जैसे थीं। उनकी सहायता से ही हेलेन केलर ने टालस्टाय, कार्लमार्क्स, नीत्शे, रविन्द्रनाथ टैगोर, महात्मा गाँधी और अरस्तू जैसे विचारकों के साहित्य को पढा। हेलेन केलर ने ब्रेल लिपि में कई पुस्तकों का अनुवाद किया और मौलिक ग्रंथ भी लिखे। उनके द्वारा लिखित आत्मकथा ‘मेरी जीवन कहानी’ संसार की 50 भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है।
अल्पआयु में ही पिता की मृत्यु हो जाने पर प्रसिद्ध विचारक मार्कट्वेन ने कहा कि, केलर मेरी इच्छा है कि तुम्हारी पढाई के लिए अपने मित्रों से कुछ धन एकत्रित करूँ। केलर के स्वाभिमान को धक्का लगा। सहज होते हुए मृदुल स्वर में उन्होने मार्कट्वेन से कहा कि यदि आप चन्दा करना चाहते हैं तो मुझ जैसे विकलांग बच्चों के लिए किजीए, मेरे लिए नही।
एक बार हेलेन केलर ने एक चाय पार्टी का आयोजन रखा, वहाँ उपस्थित लोगों को उन्होने विकलांग लोगों की मदद की बात समझाई। चन्द मिनटों में हजारों डॉलर सेवा के लिए एकत्र हो गया। हेलेन केलर इस धन को लेकर साहित्यकार विचारक मार्कट्वेन के पास गईं और कहा कि इस धन को भी आप सहायता कोष में जमा कर लिजीए। इतना सुनते ही मार्कट्वेन के मुख से निकला, संसार का अद्भुत आश्चर्य। ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि हेलेन केलर संसार का महानतम आश्चर्य हैं।
मार्कट्वेन ने कहा था किः- 19वीं शताब्दी के दो सबसे दिसचस्प व्यक्ति हैं, “नेपोलियन और हेलेन केलर”
हेलेन केलर पूरे विश्व में 6 बार घूमीं और विकलांग व्यक्तियों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण वातावरण का निर्माण किया। उन्होने करोङों रूपये की धन राशि एकत्र करके विकलांगो के लिए अनेक संस्थानो का निर्माण करवाया। दान की राशि का एक रुपया भी वे अपने लिए खर्च नही करती थीं।
विश्व की अनेक विभूतियों से उनकी मुलाकात हुई थी। मुलाकात के दौरान रविन्द्रनाथ टैगोर तथा पं. जवाहरलाल नेहरु से वे बहुत प्रभावित हुईं थीं। हेलेन केलर की मस्तिष्क शक्ति इतनी जागरुक थी कि वे आगंतुक की पदचाप से ही उसके बारे में बहुत कुछ बता देती थीं। वे विभिन्न रंगो को स्पर्श करके पहचान लेती थीं। ‘एक बार एक व्यक्ति ने उनसे पूछा आप मात्र 19 महिने की थीं जब दिखाई देना बंद हो गया था, तो आप दिन रात कैसे बता पाती हैं। हेलेन केलर का उत्तर विज्ञान सम्मत था, उन्होने कहा कि – दिन में हलचल अधिक होती है। हवा का प्रवाह मंद रहता है। वातावरण में कंपन बढ जाती है और शाम को वातावरण शांत तथा कंपन मंद हो जाती है।‘
विज्ञान ने आज भले ही बहुत उन्नति कर ली हो, लगभग सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर ली हो किन्तु वे अभी भी सबसे खतरनाक शत्रु पर विजय पाने में असर्मथ है, वह शत्रु है मनुष्य की उदासीनता। विकलांग लोगों के प्रति जन साधारण की उदासीनता से हेलेन केलर बहुत दुःखी रहती थीं।
हेलेन केलर का कहना था किः- हमें सच्ची खुशी तबतक नही मिल सकती जबतक हम दूसरों की जिंदगी को खुशगवार बनाने की कोशिश नही करते। हेलेन केलर ने अंधे व्यक्तियों के हित के लिए उन्हे शिक्षित करने की जोरदार वकालत की।
हेलेन केलर को घोङे की सवारी करना बहुत प्रिय था। जब वे घोङे पर बैठकर हवा से बातें करती तो लोगों का ह्रदय अशुभ आशंका की ओर चला जाता। परंतु हेलेन केलर ने दृष्टीबाधिता के बावजूद सभी दिशाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। प्रभु के चरणों में जीवन का भार सौंपने वाली हेलेन केलर हमेशा निश्चिंत रहती थीं।
हेलेन केलर का कथन था किः- विश्वास ही वह शक्ति है जिसकी बदौलत ध्वस्त हुआ संसार भी सुख की रौशनी से आबाद हो सकता है।
1943 में,द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हेलेन देश भर के सैनिक अस्पतालों में घूम-घूमकर अंधे, गूंगे तथा बहरे सैनिकों से मिलती रहीं। 1946 में ‘अमेरीकन ब्रेल प्रेस’ को ‘द अमेरीकन फाउनडेशन फॉर ओवरसीज ब्लाइंड ’ नाम दिया गया। जो आज ‘हेलेन केलर इंटरनेशनल’ के नाम से जाना जाता है।
स्वालंबन उनके जीवन का प्रमुख गुण था। भोजन बनाना, वस्त्र पहनना, तथा साफ-सफाई के सभी कार्य़ वे स्वयं करती थीं। 1 जून 1968 को ह्रदय का दौरा पङने से वो इस संसार से विदा हो गईं, परन्तु उनका जीवन प्रत्येक मानव को जन्म-जन्मांतर तक प्रेरणा देता रहेगा। पुरूषार्थ का महत्व बताने वाली हेलेन केलर ने मानवीय चरित्र को नई गरिमा ही नही बल्कि मानव पुष्प को नई सुगंध से सुगंधित किया है। हिम्मत और हौसले की मिसाल हेलेन केलर का सम्पूर्ण जीवन हम सभी के लिए एक उदाहरण है।
हेलेन केलर के सम्मान में मेरे श्रद्धा शब्द सुमनः-
आँधियों को जिद्द थी जहाँ बिजलियाँ गिराने की,
हेलेन केलर को जिद्द थी वहीँ आशियाँ बनाने की।
लड़की समुद्र से बातें करते करते चाँद हो गई
जवाब देंहटाएंऔर
अदभुत हेलन
बहुत सुंदर ।