उसका जायका जैसे कच्ची उम्र का हमारा प्रेम
खेत के बीचो बीच खड़ा वो विजूका
जिसके न जाने कितने नाम रख छोड़े थे तुमने
जिसे देख कर हमारे साथ साथ
धान लगाती बालाएं कितना हँसी थी परदेसी
गेंहूँ की हरी हरी बालियाँ जब झूमती थी
तब मैं भी इठलाकर वैसी ही
चूनर लाने की तुमसे जिद्द करती थी
और बदले में तुम हँस कर
लगा के एक चपत
दिखा के फूल चंपा का कहते
वैसी चूनर होनी चाहिए तेरे लिए
और लजा के में
तुम्हारी लाई हरी पीली चूड़ी
कलाई में घुमाने लगती
पर अब परदेसी
यहाँ के खेत धानी चूनर नहीं ओढते
न मिलती है किसी गोरी को चंपई चूनर
और गुड की मिठास सिर्फ रह गई है यादों में
और किसान
मुरझाए हुए पीले चेहरे के साथ
विजूका हो गए हैं
अपनी फ़सल का मुआवजा मांगते मांगते
बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...
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