Latest News




ब्लॉग लिखना एक संग्रह से कम नहीं था  … पर फेसबुक के साथ ब्लॉग का लेखन पाठक विहीन हो गया - तो फेसबुक को ब्लॉग का पर्याय मानना पड़ा।  हर दिन रचनाओं की खुशबू सुबह से रात तक बिखरी होती है, उसकी एक भीनी खुशबू किरण मिश्रा हैं -

रश्मि प्रभा 


किसान विजुका हो गए हैं 


उसका जायका जैसे कच्ची उम्र का हमारा प्रेम
खेत के बीचो बीच खड़ा वो विजूका
जिसके न जाने कितने नाम रख छोड़े थे तुमने
जिसे देख कर हमारे साथ साथ
धान लगाती बालाएं कितना हँसी थी परदेसी
गेंहूँ की हरी हरी बालियाँ जब झूमती थी
तब मैं भी इठलाकर वैसी ही
चूनर लाने की तुमसे जिद्द करती थी
और बदले में तुम हँस कर
लगा के एक चपत
दिखा के फूल चंपा का कहते
वैसी चूनर होनी चाहिए तेरे लिए
और लजा के में
तुम्हारी लाई हरी पीली चूड़ी
कलाई में घुमाने लगती
पर अब परदेसी
यहाँ के खेत धानी चूनर नहीं ओढते
न मिलती है किसी गोरी को चंपई चूनर
और गुड की मिठास सिर्फ रह गई है यादों में
और किसान
मुरझाए हुए पीले चेहरे के साथ
विजूका हो गए हैं
अपनी फ़सल का मुआवजा मांगते मांगते


बीते पलों के साथ बालकनी में 

जब उड़ने लगती है सड़क पर धूल 
और नीद के आगोश में होता है फुटपाथ 
तब बीते पलों के साथ 
मैं आ बैठती हूँ बालकनी में 
अपने बीत चुके वैभव को अभाव में तौलती 
अपनी आँखों की नमी को बढाती
पीड़ाओं को गले लगाती
तभी न जाने कहां से
आ कर माँ पीड़ाओं को परे हटा
हँस कर
मेरी पनीली आँखों को मोड़ देती है फुटपाथ की तरफ
और बिन कहे सिखा देती है
अभाव में भाव का फ़लसफा
मेरे होठों पर
सजा के संतुष्टि की मुस्कान
मुझे ले कर चल पडती है
पीड़ाओं के जंगल में
जहाँ बिखरी पडी हैं तमाम पीड़ायें
मजबूर स्त्रियां
मजदूर बचपन
मरता किसान
इनकी पीड़ा दिखा सहज ही बता जाती हैं
मेरे जीवन के मकसद को
अब मैं अपनी पीड़ा को बना के जुगनू
खोज खोज के उन सबकी पीड़ाओं से
बदल रही हूँ
माँ की दी हुई मुस्कान
और सार्थक कर रही हूँ
माँ के दिए हुए इस जीवन को

1 comments:

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

:) :)) ;(( :-) =)) ;( ;-( :d :-d @-) :p :o :>) (o) [-( :-? (p) :-s (m) 8-) :-t :-b b-( :-# =p~ $-) (b) (f) x-) (k) (h) (c) cheer
Click to see the code!
To insert emoticon you must added at least one space before the code.

 
Top