खामोश दिल की सुगबुगाहट 
मयूर नृत्य की छुन छुन सी होती है 
भावों का उतार चढ़ाव आक्रोश में भी 
सितार पर तैरती उँगलियों सा लगता है  … 
रश्मि प्रभा


क्रमशः...
शेखर सुमन 
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मैं अंगारे सी धधकती 
नज़्में लिखना चाहता हूँ 
कि कोई छूए भी तो 
हाथ झुलस जाएँ,
मेरे लफ़्ज़ों के कोयले से
आग को विशालतर कर
इस मतलबी दुनिया को
जला देना चाहता हूँ  
और बन जाना चाहता हूँ 
इस ब्रह्मांड का आखिरी हिटलर...

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इंसान किसी और के गम में 
या क्षोभ में नहीं रोता, 
न ही रोना कमजोरी है कोई ...
रोना तो
बस जरिया है सेल्फ-डिफेंस का,
खुद को जंजीरों में कैद करने के बजाय
दूसरों के मन में दहशत बिठा देना,
आखिर सेल्फ-डिफ़ेंस मे की गयी 
हत्या भी हत्या नहीं कहलाती...

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इंसान का खुश होना एक झूठ है 
और खुश न होना उससे भी बड़ा झूठ,
उसका दूसरा झूठ 
हमेशा पहले झूठ से 
बड़ा होता है, 
बढ़ता रहता है झूठ का व्याज 
दिन-ब-दिन,
फिर वो एक झूठ बेचकर 
दूसरा झूठ खरीदता जाता है,
और इस तरह बन जाता है
झूठ का सच्चा सौदागर...


प्यार एक बुलबुला है पानी का...


        प्यार, कब क्या और कैसे... इन तीनो सवालों के बीच उलझ कर न जाने कितने ही सोचें भटकती रहती है... प्यार को कई कई बार परिभाषाओं में समेटने की कोशिश करता हूँ, लेकिन हर बार कुछ नया जोड़ने का दिल करता है... आखिर अपने इन बेसलीके शब्दों के बंधन में कैसे बाँध सकता है कोई इस उफनते-उभरते से सागर को... प्यार आज़ाद है, इसको किसी सोच के दायरे में नहीं बाँधा जा सकता... प्यार असीम है, अनंत है.... इस आसमान से लेकर उस आसमान तक...प्यार की छुअन मुझे मेरी सूनी सी बंद खिड़की पर लटके विंड-चाईम की तरह लगती है, जो हर शाम तुम्हारी बातों की आवाज़ सुनकर गुनगुना भर देता है.. प्यार कभी शिकायत नहीं करता, वो तो बस इंतज़ार करना भर जानता है.. भले ही उस इंतज़ार की गिरहें हर सुबह मकड़ी के जालों पर पड़ी ओस की बूंदों तरह गायब होती जाती हैं, लेकिन प्यार के संगीत में डूबा ये मन भी कितना बेबस है न.. फिर उसी शिद्दत से वक़्त की झोली से चुरायी गयी उन अँधेरी शामों में सपनों के जाले बुनता नज़र आता है... प्यार शर्तें नहीं जानता, आखिर वो प्यार ही क्या होगा जो शर्तों पर किया जाए... प्यार कैद नहीं होना चाहता, वो तो आज़ाद होकर बहना जानता है बस... एक दिल से दूसरे दिल के बीच एक साफ़ स्वच्छ निर्मल झरने सा... इसका यूँ ही बहते रहना ही सुकुन देता है इसे... बीत गए और आने वाले कल से बेखबर, बस आज के बीच... प्यार हर रोज़ एक नयी बात सिखाता है, जाने कितने पन्नों में सिमटी एक किताब की तरह... बीच-बीच में कुछ मुड़े पन्ने भी दिखते हैं, जिसे हम जैसा ही कोई पढ़ गया था कभी... मैं भी कहीं कहीं बुकमार्क लगा देना चाहता हूँ ताकि सनद रहे कि ये भी सीखा था कभी...  अजीब ही है प्यार, हर घर की छत के कोने में उगे उस पीपल के पेड़ जैसा, जो हमारे चाहते-न-चाहते हुए भी उग आता है... फिर हम लाख कोशिश कर लें उसे हटा नहीं पाते, क्यूंकि कितनी ही जगह तो हमारा पहुंचना मुमकिन ही नहीं होता... इसी बात पर पूजा जी कहती हैं " प्रेम नागफनी सरीखा है... ड्राईंग रूम के किसी कोने में उपेक्षित पड़ा रहेगा...पानी न दो, खाना न दो, ध्यान न दो...'आई डोंट केयर' से बेपरवाह...चुपचाप बढ़ता रहता है... " 
          कितनी ही बार ख्याल आया, मन में बहते प्यार के इस दरिया को किसी पुरानी सोच की दीवार की कील पर टांग दूं, इस उम्मीद में कि शायद उस सोच में जंग लग जाए लेकिन ये दरिया इतने मीठे पानी से बना है कि वो सोच और भी ज्यादा पनपती जाती है... 
          और भी बहुत कुछ है कहने को लेकिन क्या क्या कहूं, बस एक बात जो हमेशा सुनता आया हूँ कि सिर्फ पाने का ही नाम प्यार नहीं, बदले में एक उदाहरण राधा-कृष्ण का देते हैं लोग... तो बस इतना ही है कहने को कि प्यार तो वो भी अधूरा ही था क्यूंकि मैंने देखा है कि कान्हा आज भी रोता है कभी-कभी राधा की याद में...

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