मेरे अपने कुछ वुसूल हैं
ज़रूरी नहीं कि मैं थाल सजाके मंदिर मंदिर जाऊँ
या रोज घी का दीया जलाऊँ
हाँ अपने मन, मस्तिष्क में विराजमान प्रभु की
मैं अनवरत आराधना करती हूँ
विश्वास के सम्पुट के साथ
अपने बच्चों के लिए रक्षा मंत्र का जाप करती हूँ
अदृश्य विभूति उनके माथे लगाती हूँ
और ॐ - साईं - माँ से उन्हें बाँध देती हूँ
....
यूँ अदृश्य सुरक्षा कवच में माँ बच्चों को रखती ही है
रश्मि प्रभा
वह तू है!
अनुपमा पाठक
जब मन बेचैन हो...
और इसमें सारी गलती
हमारी ही हो,
आंसू बह रहे हो नयनों से
हृदय रो रहा हो और इसकी वजह भी
हम स्वयं ही हों,
बोले जा रहे हों
जो मन में आये सो
और वो भी बिना किसी लिहाज़ के,
गलतियाँ
किये जा रहे हों...
तब भी,
जो हमसे मुख नहीं मोड़ता
वह तू है!
उड़ते ही
जा रहे हों
आसमानों में,
भूल कर
सारे जुड़ावों
एवं जड़ों को;
एक समय आता है
जब थक जाते हैं पंख
और ज़वाब दे देती है उमंग,
आसमानी उंचाईयों से
गिर पड़ती हैं
महत्वाकांक्षाएं...
तब गोद में लेकर
जो सहलाता है टूटे अरमानों को
वह भू है!
कलियों के मौसम में
बिसार देते हैं
तुझे हम,
खुशियों के दौर में
तुझे अपनी चेतना के धरातल से
गायब ही कर देते हैं,
जब सुगन्धित बयार बहती है
तो उस आनंद में
तुझे विस्मृत कर जाते हैं,
और काँटों से सामना होते ही...
सुमिरन शुरू हो जाता है तेरे नाम का,
अपने स्वार्थ के लिए!
फिर भी...
तू तार देता है
आखिर तू तो तू है!
तमाम ख़ामियों के बावजूद
जो हमसे मुख नहीं मोड़ता
वह तू है!
Maa ki is shakti k aage devta b ntmastak ho jate hain....
जवाब देंहटाएंमाँ का होना ही अपने आप में कवच है । याद करो या ना करो ।
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