हिन्दी के साथ, हिन्दी के लिए 
आज मैं अपने ब्लॉग के हिन्दी बागीचे की सैर करवाती हूँ 
देखिये आज भी क्यारियों में पंत, बच्चन, दिनकर,प्रेमचंद, शरतचंद्र जैसे पौधे, वृक्ष खड़े हैं, ज़रूरत है आपकी रूचि की  … 
रश्मि प्रभा 



हिंदी की स्थिति कितनी भी बुरी नज़र आये, शुद्ध हिंदी में जब कोई बातचीत करता है तो अनायास हम उधर खींचते जाते हैं, विदेशों में हिंदी सुनाई दे तो 'अपने घर' की आहट मिलती है। 
बच्चे की जुबान से शुद्ध हिंदी, गीता के श्लोक, रहीम-कबीर के दोहे सुनते अपनी संस्कृति पर गर्व होता है, फिर क्यूँ हम हिंदी के आगे अजनबी से हो जाएँ 

एक नज़र डालिये, क्या इन्हें पाठ्यक्रम में नहीं होना चाहिए ?


ध्यान हूँ मैं!


ध्यान हूँ मैं!
मैं निर्विचार, मैं निशब्द:,
असीम शांति का फल...
बड़ा बलवान हूँ मैं!
         ध्यान हूँ मैं!

स्व का बोध हूँ मैं......तो,
खुद के होने का एहसास हूँ मैं...
खोजे हर कोई बहार मुझे
जबकि सदा उसके पास हूँ मैं....
एकाग्रता का परिणाम, "आत्मा" की पुकार हूँ मैं.
                                                    ध्यान हूँ मैं!
अस्तित्व तक पहुँच है मेरी.....तो,
खुद के भूलने का कारन हूँ मैं
प्रेम, करुना, आनंद का अतिरेक हूँ मैं....तो,
सर्व दुखों: का निवारण हूँ मैं....
सुख दुःख जीवन के पहलू, सब में सामान हूँ मैं...
                                                    ध्यान हूँ मैं!
जीवन की यात्रा हूँ मैं...तो, 
            यात्रा में ठहराव हु मैं....
अवरुद्ध जीवन मुझी से है ....तो, 
जीवन का बहाव हूँ मैं.....
आनंद की अनुभूति, ईश्वर का फरमान हूँ मैं...
                                                ध्यान हूँ मैं!

खुद का सबसे करीबी हूँ मैं...तो,
ले जाता मिथ्या जगत से दूर हूँ मैं....
अँधेरे, अज्ञान भरे जीवन की...
इक आश, एक नूर हूँ मैं..
भक्ति का अतिरेक, ज्ञान का पवन स्नान हूँ मैं...
                                                    ध्यान हूँ मैं! ध्यान हूँ मैं!




वन्दना


शक्ति देना, प्रभु मुझे तुम शक्ति देना.

ज्ञान का सागर गहन गंभीर है,
पार करना कठिन, क्षुद्र नौका के सहारे.
आयेंगे अज्ञान के तूफ़ान गहरे,
रास्ते बन जायें लहरें, प्रेम के तेरे सहारे.

है बहुत कमजोर यह पतवार मेरी,
शक्ति देना, प्रभु मुझे तुम शक्ति देना.

भक्ति तेरी ही असीमित शक्ति है,
चल पड़ा हूँ आज मैं इसके सहारे.
राह के कंटक बनेंगे फूल मुझको,
यह रहे विश्वास, छूटें न किनारे.

डगमगाये न कभी विश्वास तुम पर, 
शक्ति देना, प्रभु मुझे तुम शक्ति देना.

तन को कब समझा था अपना,
मन समर्पित आज तुमको कर दिया है.
कैसे भव सागर करूँगा पार प्रभु,
बोझ यह भी आज तुम को दे दिया है.

मन रहे पावन तुम्हारे मिलन पर,
शक्ति देना, प्रभु मुझे तुम शक्ति देना.


समय जो दिखता तो


समय जो दिखता तो 
मैं भी देख पाती समयांतर..... 
संभवतः आदम के साथ सेव खाते हुए 
या फिर प्रलय प्रवाह में बहती होती 
छोटी सी डोंगी में मनु के साथ
एक और सृष्टि सृजन  के लिए...... 
समय जो दिखता तो 
मैं हो जाती समकेंद्रिक 
समयनिष्ठ हो करती नाभिकीय विखंडन 
सूरज की तरह देती अनवरत उष्मा 
समय सारिणी को परे हटाकर 
एक सुन्दर जीवन जीते सभी........ 
समय जो दिखता  तो 
मैं बन जाती समदर्शी 
देख पाती गेंहूँ गुलाब की उदारता 
सभी पेट भरे होते सभी ह्रदय खिले होते 
और गलबहियां डाले दोनों गाते 
सबों के लिए समानता का गीत .............
समय जो दिखता तो 
मैं भी हो जाती समसामयिक 
कल की रस्सी पकड़ कल पर कूदने वालों को 
खीँच लेती आज में अपनी समस्त उर्जा से 
जिससे हो जाता सामूहिक समुदय.........
समय जो दिखता तो 
मैं ही समय हो जाती .

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचनाएँ...बहुत आभार मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए...

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  2. पाठ्यक्रम में ये भी और और भी बहुत होना चाहिये बदलाव जरूरी है ।

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