मर गई - कुँवारी या  .... 
मर गई, यातना खत्म, कहानी खत्म 
लोगों ने भी एक 'आह' भर ली,
ज़िंदा रहती 
तो उसकी चीखों को नसीहतें मिलती 
कोई और ज़िन्दगी तलाशती तो कुलटा होती 
समाज बहरा  होता  .... 
अच्छा हुआ, मर गई 


आज पढ़िए स्वप्न मंजुषा शैल की दर्दनाक मुक्ति की रचना -


ख़बर ................!!
स्वप्न मंजुषा शैल 

काव्य मंजूषा


सुना है, आज वो पकड़ी गई...
शायद,
उसका नकारा पति, आवारा देवर, और वहशी ससुर
उसे बाल से पकड़ कर घसीटते हुए ले आये होंगे
लात, घूसे, जूते से मारा होगा
सास की दहकती आँखें,
उस दहकते हुए सरिये से कहाँ कम रही होगी,
जो बड़े एहतियात से उसकी मुट्ठी में ज़ब्त होगी,
उसका मुंह बाँध दिया गया होगा,
आवाज़ हलक में हलाक़ हो गई होगी,
दहकता हुआ सरिया नर्म चमड़ी पर,
अनगिनत बार फिसल गया होगा,
'दाग दो साली नीपूती कुलटा को',
आँखों की दहशत काठ बन गई होगी,
'कुलच्छिनी, कमीनी, वेश्या,
घर की इज्ज़त बर्बाद कर दी है...
इसका ख़त्म हो जाना ही बेहतर है ..'
यही फैसला हुआ होगा
और फिर सबने उसे उठा कर फेंक दिया होगा...
रसोई घर में...
तीन बोतल किरासन तेल में,
उसके सपने, अरमान, विश्वास, आस्था
सब डूब मरे होंगे,
पहली बार उत्तेजित.. उसके पति ने,
जिसकी इज्ज़त से वो खेलती रही थी !!
ने दियासलाई सुलगा दी होगी...
स्थिर आँखों से उसने अपने पति को देखा होगा
"काश !!"
फिर छटपटाती आँखों से उसने पूछा भी होगा
'क्यों' ??
किसी ज़िबह होते जानवर सी वो घिघियाई होगी
नज़रों के सामने कितनी रातें तैर गयीं होंगी
जब उसने खुद को तलहटी तक नीचे गिराया था ..
काँपा तो होगा हाथ उसके पति का...
पर उससे क्या ???
आज वो पोस्टमार्टम की रिपोर्ट बन गई,
'कुँवारी' बताया है उसे..!!
सुबह, एक और रिपोर्ट आई थी...डाक्टर की
जो रसोई घर में घटित ....
इस अप्रत्याशित दुखद दुर्घटना
में जल कर राख हो गई....!!!

कुछ पंक्तियाँ आराधना की - जो कहती हैं, 

"कहते हैं वे
रुदन अस्त्र है
स्त्री का,
मैं कहती हूँ
हमारी ढाल
हमारी हँसी।
जब भी घिरते
आँखों में
दुःख के बादल
छाता बन बारिश को
लेती सँभाल
हमारी हँसी।" 

बहिष्कृत-स्वीकृत 

घर समाज से 'बहिष्कृत' स्त्रियाँ
गढ़ती हैं स्त्रियों की बेहतरी की नयी परिभाषाएँ
बनाती हैं नए प्रतिमान,
वे कुछ और नहीं करतीं
बस 'सोचती' हैं
वही, जिसे करने की फुर्सत ही नहीं दी जाती
घर-परिवार-समाज में स्वीकृत महिलाओं को।
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 छिपे भेड़िये
(१)
भेड़िया, भेड़िया रहने पर उतना बुरा नहीं होता
वह हो जाता है ज़्यादा खतरनाक भेड़ की खाल पहनकर,
स्त्री-स्वतंत्रता की बात करते हुए
और  भी अधिक घातक। 
(२)
स्त्रियाँ, चाय सूँघकर बता देती हैं चीनी की सही मात्रा
स्त्रियाँ निगाहें सूँघकर पहचान लेती हैं
भेड़ की खाल में छिपे भेड़िये। 
(३)
खुद  को लाचार दिखाने वाले पुरुष
अक्सर पाए जाते हैं बेहद शक्तिशाली
खुद  को ताकतवर बताने वाले उतने ही कमज़ोर,
बेहतर है कि वे सच ही बोलें
कि स्त्रियों को खूब आता है
झूठ पकड़ने का हुनर।  

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