कतरे कतरे काटनेवाले मरते नहीं दामिनी 
सोनेवाले जागते नहीं 
कुछ अति साधारण लोग आक्रोशित हैं 
असाधारण लोगों के पास तर्कों के बारूद होते हैं !!!
हम तो किसी की चीख से उबार नहीं पाए 
हाँ ...... इस चीख को तर्पण देने के लिए 
शब्दों का दीया हम रोज़ जलाते हैं 
......
अब कोई अँधेरा तुम्हारी रूह को नहीं घेरेगा 
क्योंकि हर गली में कोई एक जाग उठा है !........


रश्मि प्रभा 
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मेरे प्यारे भाई बहनों

मैं यहाँ आकर भी जीवित हूँ,जैसी मेरी इच्छा थी ।अब आप लोग भी अपने दैनिक कार्यों में व्यस्त हो गए होंगे।मैं आप सबको अपने प्रति बे-इन्तहा प्यार दिखाने के लिए आभार व्यक्त करती हूँ।गाँव से आई एक अकेली लड़की को पूरी दुनिया और देश का जो प्यार मिला, वह हमारे जीने से ज़्यादा महत्वपूर्ण है।मेरे मन में अब किसी के प्रति कोई विद्वेष या घृणा-भाव नहीं है।मेरे नश्वर शरीर का मरना यदि किसी मरते हुए समाज को जिंदा करने में सहायक है तो,ऐसी मौत के लिए मुझे फख्र है।जिन्होंने मेरे शरीर को नोचा-खसोटा,उनके लिए भी मेरे मन में सहानुभूति है।वे जब तक जियेंगे,हर पल मरेंगे ।हर क्षण वो मेरी आँखों की चमक महसूस करेंगे।वे मुझे भूल न सकें इसके लिए मैं सूरज की हर किरण,हवा की हर दस्तक के साथ,उनके आस-पास ही रहूँगी,झकझोरती रहूँगी ।

मुझे उन सबके परिवारों की भी बड़ी चिंता है।उन सबकी माँ-बहन-बेटियाँ कैसे दूसरों से नज़रें मिलाती होंगी ? मैं जानती हूँ कि अभी हमारी बहनों के आँखों में इतना पानी तो बचा होगा कि उसे वे उन अपनों पर उलीच सकें,जिनके आँखों की कोरें बिलकुल सूख चुकी हैं।मुझे अपने माँ-बाप के अलावा आप सबसे आंसुओं का इतना सैलाब मिला है कि मुझे नई ज़िंदगी मिल गई है।इसलिए आप सब मेरे न रहने का शोक न मनाएं वरन अब सोते-से जग जाएँ।मेरे अकेले के जीने से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि मेरी बाकी बहनें चैन से रहें।शारीरिक रूप से तो मैं एक बार ही मरी हूँ,पर मैं चाहती हूँ कि उन्हें रोज़-रोज़ मानसिक तौर पर न मरना पड़े।

मेरे साथ जो हुआ,इसकी मुझे कोई शिकायत नहीं है।इसी बहाने कई बातें साफ़ हो गईं।जिस व्यवस्था में रहते हुए हम डरते रहे,मरते रहे,वह स्वयं डरी हुई और बड़ी कमज़ोर निकली।आप लोगों ने जिस व्यवस्था को बनाये रखकर उससे अपनी रक्षा का भ्रम पाल लिया था,वह चूर-चूर हो गया।मैंने देखा कि मुझसे हमदर्दी जताने आए लोगों पर यही व्यवस्था कहर बनकर टूट पड़ी।इसके लिए उसके भंडार-गृह से आँसू गैस के गोले और लाठियाँ तुरंत बाहर निकल आईं,जबकि आतताइयों के लिए इसी व्यवस्था को महीनों,सालों सोचना पड़ता है।मेरे साथ जो हुआ ,उसके प्रतिकार को तो यह सरकार तत्पर नहीं दिखी,पर हाँ,मेरी ओर आने वाले सभी रास्ते बंद कर दिए गए।आप सबने दिखा दिया कि डरी हुई व्यवस्था एक जागे हुए समाज को कभी डरा नहीं सकती।

मैं तो एक प्रतीक मात्र थी।मुझे तो इस भौतिक शरीर को एक न एक दिन त्यागना ही था,पर इस व्यवस्था के द्वारा मेरा कत्ल किया जाना बहुत कुछ उघाड़ गया है।उस दिन किसी दामिनी के साथ नहीं,इस व्यवस्था के साथ बलात्कार हुआ था और लगातार हो रहा है।मैं गौरवान्वित हूँ कि इस बात को सबके सामने लाने का जरिया मैं बनी।कुछ लोग यह कह रहे हैं कि दामिनी मर गई है पर सच्चाई तो यह है कि उस दिन पूरे समाज की मौत हुई थी,जिसे एक कांधा भी नसीब नहीं हुआ।दामिनी न तो पहले डरी और न बाद में।हाँ,मैंने लाठी-गोलियों से लैस इस व्यवस्था को थर-थर काँपते ज़रूर देखा है।मुझे आप सबके निश्छल प्रेम पर पूरा भरोसा है और यह भी कि इस मरे हुए समाज में प्राण फूंकने का काम आप लोग ही कर सकते हैं।अब जब भी किसी बहन-बेटी के साथ कुछ गलत होता दिखे तो मुझे याद कर लेना ।यह दामिनी हमेशा आपके दिलों में यूँ ही धधकती और समाज को झिंझोड़ती रहेगी ।
[DSC00563.JPG]
संतोष त्रिवेदी

14 comments:

  1. बहुत जलाई तुमने
    मोमबत्तिया
    मेरे लुट जाने पर !!!
    पर मेरी चीखे
    तुम्हे सुनाई क्यों न दी !!!
    घर जाके जो देखा होगा
    बहन बेटी का चेहरा
    रूह तब भी तुम्हारी
    कम्प्कपायी क्यों थी !!!
    सुबह जब पढ़ी
    अख़बार में दरिंदगी तुमने
    मेरे नाम की जगह
    अपनी ही जाई
    दीखाई क्यों दी थी !!!
    काश पहले ही
    समझ लेते मुझे
    अपनी बेटी /बहन
    मेरी देह खून से
    नहाई ही तो थी !!
    अब क्या हो
    क्या न हो
    सोचते न रहना
    किसी की बेटी को
    यूं सड़क पर
    लुट ने ना देना
    खुद सामने से उसने
    इज्ज़त अपनी
    लुटाई तो न थी........................ yeh hain Delhi meri jaan !!!! :(

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  2. पढ़ते हुए लगातार उसका आभासी चेहरा आँखों के सामने घूम रहा था , शांत , चमकता हुआ और होठों पर एक बारीक सी मुस्कान |
    इस प्रकरण में शायद मेरी पढ़ी हुयी ये शायद सबसे अच्छी पोस्ट है | इतनी मजबूती और इतनी सौम्यता के साथ उसने अपनी बात रख दी ,
    एक बार फिर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि उस निर्भया को |

    सादर

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  3. ...आभार रश्मि दी !
    .
    .यह प्रयास तभी सफल होगा,यदि हम इससे कुछ सबक ले सकें !

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. मोमबत्तियाँ रोज जल रही हैं कहीं न कहीं ...पूरे मुल्क में। पर कुछ बदलता सा कहीं नज़र नहीं आता। बुद्धिमानों के ऊटपटाँग बयान आ रहे हैं ....सुझाव आ रहे हैं ......जो हमारी अल्प बुद्धि में बिल्कुल नहीं समा रहे।
    हुज़ूम हैं जो सिर्फ़ सेफ़-साइड चलने की कसम खाये बैठे हैं....इसलिये इन मोमबत्तियों के हलके उजाले में बड़े-बड़े लोग बड़ी-बड़ी सियासती चालें चलने में मशगूल हो गये हैं।
    दामिनी घटना से दुष्कर्मी उतसाहित हैं छत्तीसगढ़ में प्रतिदिन सामूहिक दुष्कर्म की घटनायें हो रही हैं। अभी जिस वक़्त मैं यह टिप्पणी लिख रहा हूँ ...बाहर निकल रहे जुलूस का शोर मेरे कानों तक आ रहा है। भाजपा का राज है इसलिये कांग्रेसियों की ओर से शहर बन्द कराया जा रहा है। विगत दो वर्षों से एक कन्या आश्रम की 8 से 13 साल तक की 11 बच्चियों से दीर्घकालीन सतत यौनदुष्कर्म की घटना के विरोध में शहर की दुकानें बन्द करायी जा रही हैं। इस जुलूस में भाजपाई नहीं हैं ..क्योंकि यह विरोध कांग्रेसियों की तरफ़ से है। अत्याचार का विरोध भी खेमों में बटा हुआ है। दामिनी की आत्मा रो रही होगी कि मेरी शहादत के बाद भी सिलसिला थमा नहीं अभी तक? उसकी आत्मा रो रही होगी कि क्यों पैदा हुयी थी मैं महान आर्यों की धरती पर? अच्छा हुआ दामिनी तुम चली गयीं ...यह देश और इस देश के हम नाकारा लोग, तमाशा देखने वाले आम लोग,सेफसाइड चलने वाले एलिट लोग, मक्कार अधिकारी लोग, अवसरवादी नेता लोग ...कोई भी तो नहीं है ऐसा जो दामिनियों को बचा सके .....इस सिलसिले को रोक सके। शक्ति की पूजा करने वाले हम लोग, कन्यादान में कन्या के पाँव पूजने वाले हम लोग खोखले हो चुके हैं दामिनी! तुम जहाँ गयी हो वही सही और सुरक्षित स्थान है तुम्हारे लिये। अब कभी यहाँ मत आना, ...कभी नहीं।

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  6. शायद यही सोच होगी आज उसकी भी

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  7. यदि उल्टे बयान आ रहे तो कई माएँ,बहनें,भाई,पिता उठ गए हैं ---------- उम्मीदें कुछ कर दिखाएंगी

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  8. यदि उल्टे बयान आ रहे तो कई माएँ,बहनें,भाई,पिता उठ गए हैं ---------- उम्मीदें कुछ कर दिखाएंगी

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  9. वह ज्योति थी
    अँधेरे से इसलिए लड़ती रही
    आखिर तक ज्वाल बन जलती रही,
    वह है सभी ज़िन्दा शरीरों में
    और हैवानों को जला देगी,
    राख उसकी हड्डियों की
    नरपिशाचों को गला देगी !

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  10. रश्मि जी
    पोस्ट का चयन करने से पहले अखबार इत्यादि में "ज्योति सिंह पाण्डेय " के परिवार के लोगो का बयान पढ़ लेती तब इस प्रकार की वाहियात पोस्ट शायद आप यहाँ ना लगाती
    जिस लड़की के विचार यहाँ दिये गए हैं वो लड़की मर ने तक उन लोगो को जला कर मारने की बात कर रही थी जिन्होने उसके अन्दर रोड दाल कर उसकी आंतो को बहार निकाल था
    व्यंग का कोई आधार और औचित्य भी होना चाहिये .

    एक लिंक दे रही हूँ उसकी क्या कामना और इच्छा थी उस लिंक पर मिल जाएगी

    http://epaper.timesofindia.com/Default/Client.asp?Daily=CAP&showST=true&login=default&pub=TOI&Enter=true&Skin=TOINEW&AW=1358158373125

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  11. respected rashmi ji -

    i find this post highly objectionable.

    the writer imposes his wishes and thoughts on the dead girl, who till her death wanted to live, wanted them punished, yet he turns her into a willing martyr who calls herself "just a prateek" , who "does not mind that she died" , who says "i sympathise with those butchers" and so on and on - while she had NO SUCH FEELINGS _as she constantly asked her parents to see to it that they were punished.

    the writer of this post (OR ANYONE ELSE FOR THAT MATTER) had NO RIGHT to put his opinions in her mouth and write them as coming from her.

    This is the misfortune of this country. people make great sacrificial stories about how seeta WILLINGLY went to the jungle during pregnancy to save her HUSBAND's good name as a king and so on. this is all about making women into devis and suppressing their wishes and feelings and needs as human beings. i have objected at the original post to mr trivedi, and i am objecting here too.

    thanks

    जवाब देंहटाएं
  12. रचना ने आपकी पोस्ट "दामिनी का अपनों के नाम सन्देश !" http://www.parikalpnaa.com/2013/01/blog-post_8.htmlपर एक नई टिप्पणी छोड़ी है:

    रश्मि जी
    पोस्ट का चयन करने से पहले अखबार इत्यादि में "ज्योति सिंह पाण्डेय " के परिवार के लोगो का बयान पढ़ लेती तब इस प्रकार की वाहियात पोस्ट शायद आप यहाँ ना लगाती
    जिस लड़की के विचार यहाँ दिये गए हैं वो लड़की मर ने तक उन लोगो को जला कर मारने की बात कर रही थी जिन्होने उसके अन्दर रोड दाल कर उसकी आंतो को बहार निकाल था
    व्यंग का कोई आधार और औचित्य भी होना चाहिये .

    एक लिंक दे रही हूँ उसकी क्या कामना और इच्छा थी उस लिंक पर मिल जाएगी

    http://epaper.timesofindia.com/Default/Client.asp?Daily=CAP&showST=true&login=default&pub=TOI&Enter=true&Skin=TOINEW&AW=1358158373125

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