कल्पना और
एक और कल्पना ........
एक और क्यारी
नए बीजों की खोज
रोपण - सिंचन - प्रस्फुटन
समय पर आलोचनात्मक काट-छांट
प्रशंसा के खाद
और ..............
कई नाम
कई चेहरे
कई आयाम .............
न कल्पना रूकती है, नहीं रुकता उसमें से उगता सूरज
उम्मीदों का रथ करता जाता है परिक्रमा
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उत्सव समाप्त हुआ, पर कल्पनाएँ समाप्त नहीं हुई हैं - तो अपनी कल्पनाओं का सूत्र देते जाइये - किसान की तरह हम उसे परिकल्पना के विस्तृत मैदान में लगायेंगे - काश्मीर से कन्याकुमारी तक के विचारों को हम आपस में बांटेंगे . तो बदाइये कदम -------
न कल्पना रूकती है, नहीं रुकता उसमें से उगता सूरज
जवाब देंहटाएंउम्मीदों का रथ करता जाता है परिक्रमा ............
शुभकामनायें !!
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जवाब देंहटाएंइस बगिया में पल्लवित और पुष्पित हर कल्पना का पौध आपके संरक्षण में खूब फलेगा और फूलेगा . आपके इस कृत्या को मेरा आभार !
जवाब देंहटाएंउम्मीदों का रथ कभी रुकना भी नहीं चाहिए....
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी भावननाएं....
उम्मीदों का रथ कभी रुकना भी नहीं चाहिए....
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी भावननाएं....
इतनी लंबी यात्रा के बाद तो यह 'परिकल्पना' एक 'सिद्धांत' बन चुकी है.. मुझे व्यक्तिगत रूप से प्रतीक्षा होगी इस वर्ष के विजेताओं/सम्मानित ब्लॉगर्स से परिचय पाने की.. उत्सुकता बढती रहे और कार्यक्रम सफल हों, यही शुभकामना है!!
जवाब देंहटाएंमुझे तो इसी बात का अफ़सोस है कि ब्लोगोत्सव खत्म क्यूँ हुआ , अगले सत्र का इन्तेजार रहेगा |
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर...शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंपरिकल्पना की कल्पना मूर्त रूप ले चुकी है...यह सतत आगे बढ़ती रहे...शुभकामनाएँ !!
जवाब देंहटाएंपरिकल्पना की कल्पना निरंतर आगे बढ़ती रहे...
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ !!
recent post: किस्मत हिन्दुस्तान की,
नए वर्ष में यह वृक्ष फले-फूले...
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen........
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
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