अहंकार - एक बंजर जमीन के समान है . वह प्रकृति से सामंजस्य बैठने में पूर्णतया असफल होता है, प्रकृति भी अहंकार से दूर होती है . प्रकृति सत्य है शिव है सुन्दर है - और सत्य शिव और सुन्दर अहंकार से अछूते रहते हैं . वसुधैव कुटुम्बकम की भावना अहंकार रहित होती है . अहंकार प्रस्फुटन को रोकता है, दीमक की भांति हर शाखाओं को निष्प्राण कर देता है ......
प्रश्न है कि अहंकार आखिर क्यूँ ? कुछ भी तुम्हारा नहीं ... जो है वो क्षणिक है .... आयु पाकर न यश को भोगा जा सकता है,न वैभव को ..... विनम्रता में अमरत्व है . पर अमरत्व के लिए विनम्रता का स्वांग - ईश्वर सब जानता है .
सच कहिये - पूरे उत्सव में क्या आपने स्वर्गिक आनंद नहीं पाया .एक इंतज़ार,उत्कंठा हर साहित्यिक मन में थी - इस आँगन में हम सब एक साथ जी रहे थे . परिचय दर परिचय हमारा आँगन विस्तृत होता गया है . भावनाओं के उजास के साथ हम सबने जीवन को जीया है - इस समापन की बेल में हम सुनें -
ध्यान धरो तुम .....
ध्यान धरो तुम .....
http://www.youtube.com/watch?
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http://www.youtube.com/watch?v=Qlypwnq5WY8
नया साल हमारे आगे खड़ा है .... आइये उसका स्वागत करें और नए उत्सव की कल्पना परिकल्पना :
बहुत बढ़िया उम्दा प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये..
बहुत सुन्दर आयोजन चलता रहा और काफ़ी नयी रचनायें पढने को मिलती रहीं ………हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंमुझे घर भी बचाना है वतन को भी बचाना है... ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंअहंकार , जहां अहं यानी मैं आकार लेना शुरू करता है |
जवाब देंहटाएंपूरा उत्सव बहुत शानदार रहा और अंत में नए वर्ष का संदेश अर्चना जी की आवाज में आपका लिखा हुआ , बहुत सुन्दर |
सादर