विनम्रता,सहनशीलता का अस्तित्व रखना
पर आँधियों के मध्य (जो ना आयें कभी)
याद रखना
कि आंधियां अपने हिसाब से आ ही जाती हैं
उससे खुद को ना कमज़ोर समझना
ना विफल
अगला कदम और सशक्त रखना .
शारीरिक संरचना प्रभु ने बनाई है
तो उसकी सोच को हमेशा पूजना
उसका सम्मान करना
और ज़िन्दगी को ख़ुशी से जीना -
.....
शरीर दिखावा नहीं
पर हादसों में शरीर की इज्ज़त नहीं जाती
पूरे समाज,पूरे देश की इज्ज़त जाती है
घृणित होता है लुटेरा
...........
सर कट जाने से शरीर झुका नहीं
रुदन की चीख से क्या माँ का वह हौसला मिटटी हो जायेगा
जिसने देश के लिए बेटे को भेजा
सोचो .......... मेरे शब्द शब्द आशीष हैं
सुरक्षा मंत्र
जिसकी ज़रूरत सबके साथ मुझे भी है .........
रश्मि प्रभा
कच्ची चूङियाँ
भेंट में ले जाईये सरकार
कच्ची चूङियाँ
आज कुर्सी की जगह
दरकार कच्ची चूङियाँ
क्या इसी दिन के लिये
बारूद भर बंदूक दी
??????
तोङ दें मासूम
आखिरकार
कच्ची चूङियाँ?????
भेंट में ले जाईये
सरकार कच्ची चूङियाँ
हम तो समझे थे कि पहरेदार
हैं हाकिम मेरे
आपने लूटी खनक रँगदार
कच्ची चूङियाँ
आप के हथियार हैं क्या बस
नुमाईश के लिये???
सौंप दो हों मुल्क पहरेदार
कच्ची चूङियाँ
घर सँभाले आप हम ले आयेंगे
वादा रहा
भाल उनके
जिनकी थी हक़दार
कच्ची चूङियाँ
हाथ में चुभती टूटे और
खनकते प्यार दें आप से
तो कहीं दमदार
कच्ची चूङियाँ कौन पहने
कायरो के नाम चूङी शर्म
की आप
पहनो लो मेरी गुलदार
कच्ची चूङियाँ चूङियों में
दर्द है शर्मोहया है गर्व है
हिंद घायल है कि
बाघिन नार
कच्ची चूङियाँ ये ये धरम की जात की और हिंद की तहज़ीब की तोङ दो बातों जनानी मार कच्ची चूङियाँ
कौन बैठेगा घरों में कापूरूष लूटे इन्हें नाचने वाले हुये भरमार कच्ची चूङियाँ ये सुहागिन की भी हैं बहिनों की हैं बेटी की हैं आज विधवा हो गयी अंगार कच्ची चूङियाँ
जाओ नाचो और रिझाओ बस ये तोपें रख भी दो
हैं खनकने को कहें तैयार कच्ची चूङियाँ
सुधा राजे
द्रौपदी - आज का भारत
द्रौपदी की ये कहानी बहुत बार पहले भी सुनी जा चुकी है , मैं फिर से सुना रहा हूँ |
अब ज़रा इसे वर्तमान परिदृश्य में देखते हैं -
ध्रतराष्ट्र अर्थात दिल्ली में बैठा मूक राजा जिसे कुछ भी दिखाई नहीं देता, जो कोई भी कड़ा फैसला तो छोडिये, कोई सामान्य फैसला भी अपनी मर्जी से नहीं ले सकता |
पाण्डव अर्थात वे व्यक्ति जिन पर द्रौपदी की रक्षा की जिम्मेदारी है लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए उन्होंने ही उसे दांव पर लगा दिया |
सभा में मौजूद अन्य सदस्य अर्थात तमाशबीन जनता, जिसकी पसंदीदा पंक्ति है - "मुझे क्या ? ये मेरे घर का मसला नहीं है |", जो कि द्रौपदी की दुर्दशा में उतनी ही जिम्मेदार है जितना कि अन्य कोई |
और द्रौपदी अर्थात समस्त पीड़िता स्त्रीलिंग, चाहे वो दिल्ली की बस में चढ़ी 'ज्योति' हो या आये-दिन घाव खाने वाली और अभी हाल ही में अपने दो बेटों की नृशंस हत्या से घायल 'भारत माँ' हो |
किस काम के हो शासक, किस बात की है सत्ता,
जब फैसला कोई भी, खुद से नहीं सुनाया,
इस घर की आबरू पर, जिनकी बुरी नजर है,
उनको ही पुत्र कहकर, अपने गले लगाया,
धिक्कार है धृत-राष्ट्र को, धिक्कार धृत-राजा को है,
द्रौपदी की दुर्दशा के तुम भी भागीदार हो |
हे धर्म के धुरंधर, किस धर्म में लिखा है,
नारी को वस्तु समझो और दांव पर लगाओ,
यदि धर्म नहीं है ये, विरोध करो इसका,
यदि धर्म यही है फिर, आँखें तो न झुकाओ,
धिक्कार है उस धर्म को, धिक्कार धर्मराज को,
द्रौपदी की दुर्दशा के तुम भी भागीदार हो |
पांच भाइयों में, एक वस्तु सी बंटी मैं
वो न्याय था तुम्हारा, हे पार्थ प्राण प्यारे ?
जब ढाल सत्य की ही, ये तीर न बने तो,
बेकार ये धनुष है, बेकार बाण सारे,
धिक्कार उस धनुष को, धिक्कार धनुर्धर को,
द्रौपदी की दुर्दशा के तुम भी भागीदार हो |
जिसने तिनके की तरह, शत्रुओं को चीर डाला
भीम का शतहस्तसम् वो बल कहाँ पर खो गया है,
या मैं समझूं, झूठ था सब जो कभी सुनते थे हम
या मैं समझूं, अब तुम्हारा रक्त ठंडा हो गया है,
धिक्कार है उस बाहुबल को, धिक्कार उस बली को है
द्रौपदी की दुर्दशा के तुम भी भागीदार हो |
हे नकुल सहदेव जैसे, इस सभा के दर्शकों,
वीर कहते हो, स्वयं को तुम सभी, धिक्कार है ,
एक मालिक की तरह निज स्वार्थसिद्धि के लिए
दांव पर मुझको लगाने का नहीं अधिकार है |
किस सोच में हो तुम सभी, क्यूँ भला खामोश हो,
क्या द्रौपदी की लाज रखने, कृष्ण ही अब आयेंगे,
क्या कौरवों के दंभ को, बस वही हैं चीर सकते,
क्या द्रौपदी को चीर केवल, कृष्ण ही दे पाएंगे ?
एक दुशासन हँस रहा है, तुम सभी की आत्मा में,
कृष्ण कोने में कहीं सहमा हुआ, बिखरा हुआ है,
उस दुशासन को मिटाओ,
कृष्ण को वापस बुलाओ,
वो ही शास्वत कृष्ण है, जो आत्मा में घुल चुका है,
आत्मा को फिर जगाओ,
कृष्ण को वापस बुलाओ,
द्रौपदी का चीर अपने अंत के नजदीक ही है,
कृष्ण खुद को ही बनाओ,
द्रौपदी को तुम बचाओ |
आकाश मिश्रा
मातृभूमि,,,
मातृभूमि के अमर सपूतो,
अब ना तुम विलंब करो !
भारत माँ के सरहद पर,
शत्रु का तुम हनन करो !!
जनजन की आवाज यही,
भारत को आज बचाएगें !
हिंदू,मुसलिम,सिक्ख,इसाई,
सबको प्रेम का पाठ पढ़ाएगें!!
नई एकता की सोच को लेकर,
भारत का नव निर्माण करो!
प्रकृति ने एक संकेत दिया है,
देश का नया उत्थान करो!!
निज जीवन में खून तुम्हारा,
अर्पण यह बलिदान बनेगा!
मातृभूमि की जय जयकार,
सारा हिन्दुस्तान करेगा !!
धीरेन्द्र भदौरिया
फ़िर करी गंगा मैली
गंगा ने हो निर्मल
अभी बहना शरू करा था
अभी निर्मल हुई भर थी
अस्थियों से दामिनी की
हो पवित्र
मिलती नहीं वो राख सदियों
जो कर सके यों निर्मल
अभी बहना शरू करा भर था
आये नहाने
अपने किये करे की
बोलती राख से सने
बकरी सा मैं-मैं करते
लेडियाँ हाथ में लिये
मैं मैं
इतना अहम
इतनी अहम
सह ना सकी
बह ना सकी
साफ़ और रह ना सकी
दामिनी तो स्वच्छ थी
दामिनी तो स्वच्छ है
स्वच्छता की देवी वो
चल पड़ी आगे वहाँ को
न पहुँचे जहाँ वो - जो हर जगह पहुँचे
वसुंधरा की सीध में आकाश गंगा थी
प्रलय से बचाने को जिसने लड़ा
ना देखें हम जो -
दिखा कर हमें
खुश थी शिव की जटा की राख को पा कर
बकरियों के झुंड पहले
छुप के आये
बाँए से आये
दाएँ से आये
वो भी आये जो कभी ना आये
बहती गंगा में खूब नहाये
वर्षों वर्ष की मैल
दाएँ-बाएं छुपाये
क्यों ना हो फ़िर गंगा मैली
फ़िर करी गंगा मैली
भरत तिवारी
आकाश मिश्रा जी की रचना उत्तम लगी ...वैसे तो सभी लिंक्स आपके चुने हुए हैं...बढ़िया तो होंगे ही ...!
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति,,,सभी रचनाए अच्छी लगी,,
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार,,,,,
इंडिया की सच्चाई बयाँ करती रचनायें की उत्तम प्रस्तुती !!
जवाब देंहटाएंसभी रचनाओं का चयन एवं प्रस्तुति अनुपम ...
जवाब देंहटाएंआभार
सभी रचनाये बढिया कच्ची चूडियों ने मन को छू लिया
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