अपनी पुकार दामिनी छोड़ गई
पर - सबने अपने घर के दरवाज़े बंद कर लिए हैं
या फिर गाली पर उतर आये हैं या मखौल पर
शहीद का शरीर भारत में
सर दुश्मनों के नापाक इरादों में
उनकी पुकार सरहद पार नहीं कर रही .....
आम जनता तो उलझी है इसने क्या कहा,उसने क्या कहा में ....
भला हो आर्मी के अनुशासित फैसले का
परिवर्तन अपनी आर्मी कर सकती है
और करेगी .....
उसने देश के लिए बहुत किया
देश अब तक इंतज़ार में है
सुविधाएँ देने में, उनके लिए कोई कदम उठाने में
..............तो आर्मी अपने स्व को तलाश लेगी
जो सर की अहमियत नहीं जानते
उनके सर को नीलाम कर देगी
अहमियत नहीं जाननेवाले दुश्मन ही हैं .........
रश्मि प्रभा
छोड़ो जाने दो क्यों कहूँ ..अब क्या कहूँ ???
जब बोलते हो कर्ण , सुनते हो होठ ,
तब कितना भी पटको सिर ,
आवाज़ लौट- लौट आती है,
जो चीखती - दहाड़ती है भीतर ,
वह वही लावारिस लाश सी दम तोड़ जाती है ,
भिनभिनाती है वादो व नारो की मक्खियाँ ,
सत्ता - वर्दी के कूड़ेदान मे कहीं दफन हो जाती है ,
क्या कहूँ ....किससे कहूँ .... और कभी तो लगता है ,
छोड़ो जाने दो क्यों कहूँ ...?
छोटे - छोटे मासूम बच्चे ,
जब किसी के पागलपन का हो शिकार ,
हवस और नशा मिल लूटे अस्मत ,
नंगा जिस्म हो पड़ा किनारे ,
न कोई रहनुमा न कोई मुक्ति दाता,
जिनके हाथ कानून वही घातक,
क्या कहूँ ....किससे कहूँ .... और सच मानो तो ...
छोड़ो जाने दो क्यों कहूँ ..अब क्या कहूँ ???.?
पूनम जैन कासलीवाल
ज्वाला बनकर दमको
इस तरह, घुटनो में सर छुपाकर
आँखो से आँसू बहा कर
क्या होगा..?
उठो ! बदल डालो अपनी इस छबि को
बन कर दुर्गा काली
संघर्ष का तुम बिगुल बजादो
उठा लो, हाथों में हौसलों का तलवार
और करो दुराचारियों का संहार
फिर कभी कोई दुष्कर्म का साहस न कर सके
कर दो नष्ट इस रक्त बीज को
फिर कभी कोई दुर्भाव न पनप सके
तुम एक शक्ति हो,खुद को पहचानो
ज्वाला बनकर दमको
भीतर एक आग जगाओ
पड़ने वाले हर कुदृष्टि को
भस्म कर डालो
कोई कृष्ण नहीं आयेगे
खुद को खुद ही बचाना होगा
लेकर हाथों में मशाल
कर लो खुद से एक वादा
बदल डालो इस भ्रष्ट समाज को
जिससे हर स्त्री,निर्भयता से
कही भी आजा सकें
फिर कभी किसी बेटी की
अस्मिता न लूटे
किसी का घर न टूटे
फिर कभी कोई ऐसा
दर्द भरा हादसा न उभरे
******************
दिसम्बर में हुए एक शर्मनाक घटना से दुखी मन अभी तक नही उभर नहीं सका है..सरकार का कब तक मुँह देखे ..आज भी हर रोज ऐसे हादसे जगह-जगह पर बेखौफ होरहे है ..अब हमें मिल कर खुद ही कुछ करना होगा..
महेश्वरी कनेरी
निर्भया
*
कोई समझे न मुझको कभी निर्बला
चिर शक्ति हूँ नारी हूँ मैं सबला
कोमलाँगी हूं , अबला न समझे कोई
न धीरज की सीमा से उलझे कोई,
मन की कह दूं तो पत्थर पिघल जायेंगे
चुप रहूं तो विवशता न समझे कोई ।
न मैं सीता जिसे कोई राम त्याग दे
न मैं द्रौपदी जिसे दाव में हार दे ,
न मैं राधा जिसे न ब्याहे कृष्ण
मैं हूं दुर्गा जो जग को अभय दान दे ।
अपने कंपन से पर्वत कंपा दूंगी मैं
शीत झरनों में अग्नि जला दूंगी मैं,
आज सूरज को दीपक दिखा सकती हूं
चाँद निकले तो घूंघटा उठा दूंगी मैं ।
मैं नदी हूं, किनारा तोड़ सकती हूं
बहती धारा का मुख मोड़ सकती हूं ,
जी चाहे तो सागर से मिल लूंगी मैं
जी चाहे तो रास्ता छोड़ सकती हूं ।
मैं धरा हूं, मैं जननी , मैं हूं उर्वरा
मेरे आँचल में ममता का सागर भरा,
मेरी गोदी में सब सुख की नदियां भरीं
मेरे नयनों से स्नेह का सावन झरा।
अखंड ज्योति हूँ दुर्गा हूँ मैं निर्भया
मिट पाऊँ कभी न, मैं हूँ अक्षया
शशि पाधा
परिवर्तन अपनी आर्मी कर सकती है
जवाब देंहटाएंऔर करेगी .....
उसने देश के लिए बहुत किया
न कोई रहनुमा न कोई मुक्ति दाता,
जिनके हाथ कानून वही घातक
कोई कृष्ण नहीं आयेगे
खुद को खुद ही बचाना होगा
लेकर हाथों में मशाल
अखंड ज्योति हूँ दुर्गा हूँ मैं निर्भया
मिट पाऊँ कभी न, मैं हूँ अक्षया
मैं हूँ !!
हर रचना चीखती हुई सी ...कोई चीख भीतर दबी हुई...कुछ सरे आम चीखती हुई ....सभी प्रभावपूर्ण ...हमेशा की तरह
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाएँ.
जवाब देंहटाएंसभी रचनाओं का चयन एवं प्रस्तुति अनुपम ...
जवाब देंहटाएंजो सर की अहमियत नहीं जानते
उनके सर को नीलाम कर देगी
अहमियत नहीं जाननेवाले दुश्मन ही हैं .........
बहुत सही कहा आपने
सादर
आज की घटनाओं पर आधारित सुन्दर
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्तियाँ ....आभार व बधाई !