मुझे कहना तो है - पर क्या ?
औरतें ईश्वर के आगे बुदबुदा रही हैं -
'बाँझ ही रखना - कबूल है
पर बेटी मत देना
उसकी ऐसी दर्दनाक मृत्यु मैं नहीं देखना चाहती
नहीं सुनना चाहती शर्मनाक बौद्धिक विचार
और ............ मुझे भी उठा लो
क्योंकि सारे रास्ते जंगल हो गए हैं .........
बुरा भला: क्या सच मे किसी को फर्क पड़ता है !!??
(शिवम् मिश्रा )
"कल तक सबको 'उस' के दर्द का अहसास था ;
आज सब को अपनी अपनी जीत का अभिमान है !!
कल जहां रेप पीड़ितों की सूची थी ...
उन्ही मेजों पर आज नए विधायकों की सूची तैयार है !!
किसी चैनल , किसी सभा मे 'उसके' बारे मे कोई सवाल नहीं है ;
बहुतों के तन पर नई नई खादी सजी है
बेगैरत शोर को अब किसी का ख्याल नहीं है !!
जो लोग रोज़ लोकतन्त्र को नंगा करते हो ...
उनको एक महिला की इज्ज़त जाने का अब मलाल नहीं है !
'तुम' जियो या मारो ...
किस को फर्क पड़ता है ...
आओ देख लो अब यहाँ कोई शर्मसार नहीं है !!
दरअसल 'तुम्हारी' ही स्कर्ट ऊंची थी ...
'इस' मे 'इनका' कोई दोष नहीं ...
"जवान लड़की को सड़क पर छोड़ा ...
क्या घरवालों को होश नहीं"
"लड़का तो 'वो' भोला था ...
यह सब चाउमीन की गलती है ...
वैसे एक बात बताओ लड़की घर से क्यों निकलती है ??"
चलो जो हुआ सो हुआ उसको भूलो ...
भत्ते ... नौकरी सब तैयार है ...
तुम्हारी चीख से मुश्किल मे पड़ती सरकार है ...
अगली जीत - हार के लिए इनको तुम्हारी दरकार है ...
गुजरात - हिमाचल से निबट लिए ...
अब दिल्ली की बारी है ...
चुनावी वादा ही सही पर यकीन जानना ...
दोषियों को छोड़ा न जाएगा यह मानना ...
हम सब तुम्हारे साथ है डरना मत ...
पर बिटिया अंधेरे के बाद घर से निकलना मत ...
अंधेरा होते ही सब समीकरण बदल जाते है ...
न जाने कैसे ...
हमारे यह रक्षक ही सब से बड़े भक्षक बन जाते है ...
कभी कभी लगता है यह वो मानवता के वो दल्ले है ...
जिन्होने हर चलती बस - कार मे ...
खुद अपनी माँ , बहन , बीवी और बेटी ...
नीलाम कर रखी है !!
(विजय कुमार)
मैं हर रात ;
तुम्हारे कमरे में आने से पहले सिहरती हूँ
कि तुम्हारा वही डरावना प्रश्न ;
और पूछेंगा मेरे शरीर से , “ आज नया क्या है ? ”
कई युगों से पुरुष के लिए स्त्री सिर्फ भोग्या ही रही
मैं जन्मो से ,तुम्हारे लिए सिर्फ शरीर ही बनी रही ..
ताकि , मैं तुम्हारे घर के काम कर सकू ..
ताकि , मैं तुम्हारे बच्चो को जन्म दे सकू ,
ताकि , मैं तुम्हारे लिये तुम्हारे घर को संभाल सकू .
तुम्हारा घर जो कभी मेरा घर न बन सका ,
और तुम्हारा कमरा भी ;
जो सिर्फ तुम्हारे सम्भोग की अनुभूति के लिए रह गया है
जिसमे , सिर्फ मेरा शरीर ही शामिल होता है ..
मैं नहीं ..
क्योंकि ;
सिर्फ तन को ही जाना है तुमने ;
एक स्त्री का मन , क्या होता है ,
तुम जान न सके ..
शरीर की अनुभूतियो से आगे बढ़ न सके
मन में होती है एक स्त्री..
जो कभी कभी तुम्हारी माँ भी बनती है ,
जब वो तुम्हारी रोगी काया की देखभाल करती है ..
जो कभी कभी तुम्हारी बहन भी बनती है ,
जब वो तुम्हारे कपडे और बर्तन धोती है
जो कभी कभी तुम्हारी बेटी भी बनती है ,
जब वो तुम्हे प्रेम से खाना परोसती है
और तुम्हारी प्रेमिका भी तो बनती है ,
जब तुम्हारे बारे में वो बिना किसी स्वार्थ के सोचती है ..
और वो सबसे प्यारा सा संबन्ध ,
हमारी मित्रता का , वो तो तुम भूल ही गए ..
तुम याद रख सके तो सिर्फ एक पत्नी का रूप
और वो भी सिर्फ शरीर के द्वारा ही ...
क्योंकि तुम्हारा सम्भोग तन के आगे
किसी और रूप को जान ही नहीं पाता है ..
और अक्सर न चाहते हुए भी मैं तुम्हे
अपना शरीर एक पत्नी के रूप में समर्पित करती हूँ ..
लेकिन तुम सिर्फ भोगने के सुख को ढूंढते हो ,
और मुझसे एक दासी के रूप में समर्पण चाहते हो ..
और तब ही मेरे शरीर का वो पत्नी रूप भी मर जाता है .
जीवन की अंतिम गलियों में जब तुम मेरे साथ रहोंगे ,
तब भी मैं अपने भीतर की स्त्री के
सारे रूपों को तुम्हे समर्पित करुँगी
तब तुम्हे उन सारे रूपों की ज्यादा जरुरत होंगी ,
क्योंकि तुम मेरे तन को भोगने में असमर्थ होंगे
क्योंकि तुम तब तक मेरे सारे रूपों को
अपनी इच्छाओ की अग्नि में स्वाहा करके
मुझे सिर्फ एक दासी का ही रूप बना चुके होंगे ,
लेकिन तुम तब भी मेरे साथ सम्भोग करोंगे ,
मेरी इच्छाओ के साथ..
मेरी आस्थाओं के साथ..
मेरे सपनो के साथ..
मेरे जीवन की अंतिम साँसों के साथ
मैं एक स्त्री ही बनकर जी सकी
और स्त्री ही बनकर मर जाउंगी
एक स्त्री ....
जो तुम्हारे लिए अपरिचित रही
जो तुम्हारे लिए उपेछित रही
जो तुम्हारे लिए अबला रही ...
पर हाँ , तुम मुझे भले कभी जान न सके
फिर भी ..मैं तुम्हारी ही रही ....
एक स्त्री जो हूँ.....
......... पर मैं - रश्मि प्रभा करती हूँ एक सवाल
जीवित लाशों की ढेर से दहशत नहीं होती तुम्हें ?
मुस्कुराते हुए
अपनी बेटी को आशीर्वाद देते
तुम्हारी रूह नहीं कांपती - कि
कल किसके घर की दामिनी होगी
किसके घर की अरुणा शानबाग
और इस ढेर में कोई पहचान नहीं रह जाएगी !!!
मेरी रचना को मान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार रश्मि दीदी |
जवाब देंहटाएंसुंदर ... शिवम आपकी रचना बताती है कैसे आप सामाजिक सरोकोर से अंदर तक जुड़े हो ... !!
जवाब देंहटाएंइसे कहते हैं क्रांति ....जो बात आज तक स्त्रियों ने कही और पुरुषों ने सुनी ..आज पुरुष दोहरा रहे हैं और दुनिया सुन रही है ....यह संकेत ....एक उज्जवल शुरुआत है ...अब बादल छँट जायेंगे ....पूर्ण विश्वास है ...रश्मिजी इन्हे हम तक पहुँचाने के लिए आभार ....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंआभार!
परिवर्तन को जन्म देती मार्मिक कविता
जवाब देंहटाएंदहशत होती है
जवाब देंहटाएंबस उसे जो खुद
अभी लाश नहीं
हुआ है पूरी तरह
लाशों से कहाँ
पूछा जाता है
वो तो दहशत
पैदा करती है
लाश होती है
इसीलिये हर
चीज जिसमें
जीवन होता है
उसे नहीं पचती है
बेटियाँ जहाँ जीवन
होता है वहाँ
सुखी भी होती है
दहशत तो लाशों
से ही होती है
लाशें ज्यादा होती हैं
इसलिये दहशत
तो होती ही है !
बहुत सुंदर कारवां बना है :)