सपने देखो तो ज़रूर
समझो सपनों की भाषा
निश्चित तुमको मिलेगी मंजिल
पूरी होगी आशा !
सपने साथ में हैं गर तेरे
तू मजबूर नहीं है
तूफानों से मत घबराना
मंजिल दूर नहीं है !
बड़े पते की बात है प्यारे
घबराकर मत रोना
आग में तपकर ही जो निखरे
है वही सच्चा सोना !
बुरा नहीं होता है प्यारे
आंखों का सपनाना
सपने सच भी होते हैं
यह मैंने भी है जाना !
सपने ही थे साथ सफर में
और तेरा हमसाया
कतरे की अब बात भुला दे
दरिया सामने आया !
नहीं असंभव बात ये कोई
फिर हो नई कहानी
तुम बन जाओ एक और
धीरू भाई अम्बानी ! ... स्व. सरस्वती प्रसाद 

एहसास है तो मंज़िल है 
चाहत है तो मंज़िल है 
हार है तो मंज़िल है  …


न जाने क्यूँ कुछ सवालों के जवाब नहीं होते
न जाने क्यूँ दिल होते हुए भी अरमान नहीं होते

यूँ तो ढूंढते हैं गम-ए-तन्हाई में कोई साथ
लेकिन कुछ पलों के हमराही नहीं होते,
बस चलती हैं साँसें यूँही किसी उम्मीद में
उन उम्मीदों में कहीं कोई आस नहीं होती...

फिर भी हाथों में थमी हैं अनदेखी-अनजानी डोर
खींचती है जो सपनों की पतंग आसमान की ओर

चाह कर मिलता नहीं सपनों का आशियाना
दुनिया ने हमेशा चाहा सपनों को आजमाना,
बेशक सवालों का नहीं मिलता कोई जवाब
शायद सवाल ढूँढता है खुद का कोई जवाब !

होती हैं कुछ ऐसी भी पहेली
जिसकी नहीं यहां कोई भी सहेली,

अँधेरी रातों में रौशनी की आस में
भटकती है वो जाने किसकी तलाश में...

आखिर होतें हैं कुछ ऐसे भी सवाल
जिनको मिलते नहीं कोई भी जवाब


आज अपनी दुनिया के माहिर नाम जब अपनी बीती जिंदगी की तरफ देखते होंगे तो एक हल्की सी मुस्कान होठों पर बिना किसी की बात सुने दौड़ी चली आती होगी| लाख रोको, ये मुस्कान नहीं मानने वाली. इस मुस्कान की वजह कुछ और नहीं बस वो भूले-बिसरे गीत हैं, जो कभी ख्वाब देखते हुए दोस्तों के साथ कॉलेज में गुनगुनाए थे. जिंदगी के वो पल जिनके बारे में सोचो तो लगता है जैसे अब भी कोई गीत अधूरा है. मानो पंख मिले तो एक बार फिर उस पल में जाकर उस अधूरे गीत को पूरा कर आएं. तितलियों का मंडराना हो या इक-दूजे को छेड़ते दो दोस्त, बस आँखों के सामने तैर जाते हैं वो पल. कितना अच्छा लगता था एक-दूसरे को चिढ़ाना. कितने ही बड़े हो गए हों हम, वो अल्हड़पन आज भी इस मन में छुपा बैठा है, मौका मिलता नहीं कि गुनगुनाने लगता है वो अधूरा, भूला-बिसरा गीत. उस गीत की न लय है न ही कोई ताल, फिर भी दिल गुनगुना उठता है.

एक बात बहुत खास है उस पल में, जो शायद हर उस खास शख्स ने जिए हैं जो उन पलों में शामिल थे. उस गोल्डन कॉलेज लाईफ को जीने वाले वो खास शख्स, कभी भी उस पल के एहसास से बाहर नहीं निकल पाते. वक्त बीतने के बाद भी उस पल का एहसास कम नहीं हुआ बल्कि वक्त के साथ उसकी चाहत बढती ही चली जाती है. इससे अलग गोल्डन लाईफ का एक गोल्डन सवाल भी है, जिसका जवाब आज तक नहीं मिल पाया- सिर्फ इतना सा सवाल कि दोस्ती जरूरी है या प्यार. बेशक सवाल छोटा सा है लेकिन इसका जवाब मिलना उतना भी आसान नहीं. वैसे तो इस सवाल के बहुत से जवाब हैं लेकिन सबसे बड़ा जवाब तो उस सवाल को जीने वाले पंछियों का है. अपनी ही धुन में मस्त रहने वाले अकेले पंछी की माने तो दोस्ती से बड़ी कोई जरूरत नहीं वहीँ, किसी खास के इंतज़ार में बैठे पंछियों की नज़र में- कोई खास तो बनता है यार. बेशक ये दोनों जवाब एक दूसरे से अलग हैं लेकिन एक बात ये भी सच है कि दोस्ती और प्यार बिना जिंदगी नहीं कटती|.कोई तो होना चाहिए चिढाने के लिए, रूठ जाओ तो मनाने के लिए, बर्थडे की आधी रात को जगाने के लिए. न तो प्यार बिना दोस्ती पूरी है और न ही दोस्त बिना प्यार, जरूरी तो दोनों हैं. हो सकता है वो पल दोबारा जीने का इक मौक़ा मिल जाए तो इन सवालों के जवाब भी मिल जाएं, ऐसा होना मुमकिन नहीं लेकिन ये आस शायद इतनी कोरी भी नहीं.

कुछ वक्त बाद ये दुनिया बिल्कुल सपनों की दुनिया बन जाती है. हम इस खूबसूरत दुनिया के साथ चल सकते हैं, हँस सकते हैं, जी सकते हैं लेकिन हमारी हकीकत उस पल को छू तक नहीं सकती. कोई माने या न माने, एक दुआ हम में से सभी ने की होगी, अपने उस सुनहरे पल में एक बार फिर लौट जाने की. अगर ये मौका मिल जाए तो? सोच कर ही कितना अच्छा लगता है न. हो सकता है कोई अपने दोस्त को दोस्त से ज्यादा कुछ खास एहसास देने में कामयाब हो जाए| कुछ टूटे हुए रिश्ते जुड़ जाएँ और दुश्मन दोस्त में बदल जाएं| आखिर एक धागे में पिरोए हुए मोती ही तो हैं हम. वही दोस्त, वही मस्ती, हाँ! हो सकता है पहले प्यार का चेहरा कुछ बदला सा हो. कॉलेज लाईफ खत्म होते ही बहुत कुछ बदल जाता है लेकिन उस पल में मिली वो खुशी नहीं बदलती. गोल्डन डेज़ में वापस जाने का ख्वाब संजोए गोल्डन रिश्ते जिन्होनें खून के रिश्तों से भी ज्यादा साथ निभाया, आज भी कितने खास लगते हैं न!

कोई फिल्म हो या कहीं जाने का प्लान, याद तो आ ही जाता है वो दोस्त जिसने बिना कुछ पूछे हर सवाल का जवाब दे दिया, जिसने बिना वादा लिए अच्छे-बुरे वक्त में साथ देने का वादा कर लिया| वो पल जब अपने समवन स्पेशल के साथ फिल्म देखने के लिए दोस्त से उधारी मांगी और हाथ में पैसे थमाते हुए उसका कहना- ‘जा देख ले फिल्म मेरे बिना, मेरा भी दिन आएगा|’ अगले ही पल गले लगाकर ‘बेस्ट ऑफ लक बडी’ बोलते ही दिल जीत लिया| हर बार बिना बोले सब बात समझ जाना तो जैसे दोस्त का पहला फर्ज था| बर्थ डे की रात डेडिकेट की वो अधूरी अजीब सी कविता कितनी खास लगी थी, आज भी तो याद हैं वो बोल.

जिंदगी में अक्सर तोहफे का इंतज़ार करना पड़ता है लेकिन दोस्त शायद ऐसा एक खास तोहफा होता है जिसके लिए ये शब्द वाजिब नहीं. गोल्डन डेज़ का ये खास तोहफा न सिर्फ खुशियों को दुगना कर देता है बल्कि दुःख के पलों को इतना छोटा कर देता है कि उसका वजूद ही नज़र नहीं आता. गोल्डन डेज़ के ये दोस्त उस पल में किसी समवन स्पेशल की जगह भी खाली रखते हैं. उस खास के आते ही शुरू हो जाती है दोस्त और उसके समवन स्पेशल को मिलाने की होड़. भाभी हो या जीजा, हार मान जाएं तो दोस्त किस बात के! वैलेन्टाइन्स डे में जितना क्रेज दोस्तों को था उतना तो खुद को भी नहीं. उस समवन स्पेशल को स्पेशल महसूस कराने के लिए न जाने कितनी मिन्नतें की थीं लेकिन जुबां उस वक्त कुछ भी न बोल सकी. आँखों से भेजा वो पैगाम आज भी अनसुना है शायद. उन गोल्डन डेज़ में वापस लौट जाने का मौक़ा मिलने पर हो सकता है दिल की बात जुबां तक आ जाएं. 

उस अधूरी प्रेम कहानी के पूरा होने का इंतज़ार दोस्तों को आज भी है. उस दिन देखा वो सपना आज भी पूरा होने का इंतज़ार कर रहा है. बेशक, ये सुनहरा ख्वाब पूरा होना इतना तो आसान नहीं लेकिन उम्मीद करना बेमानी भी नहीं. आखिर भूला-बिसरा वो गीत आज भी पूरा होने का इंतज़ार कर रहा है.


वक़्त बीत गया कुछ लिखा नहीं, कुछ कहा नहीं|  आज फिर यूँही कलम चलने लगी और दिल के कुछ जज्बात शब्दों में उकेरने की एक नयी कोशिश कर रही हूँ|  मेरी हर लिखावट हर कहानी के पीछे किसी न किसी शख्स से जुडी बातें या उसकी यादें होती हैं| इन दिनों कुछ ऐसा ही हुआ कि लगा ज़िन्दगी कभी रूकती नहीं  चाहे कितने ही आंसू बहा लो| न ही किसी को दोष देने से हालात ठीक होते हैं| ज़िम्मेदारी लेनी पड़ती है हर उस बात की जिसके लिए आप ज़िम्मेदार हैं| सिर्फ हालातों या किसी और को दोष देने से कुछ नहीं होता| हम जो चाहते हैं उसे हासिल कर लेते हैं और कई बार कुछ चाहतों के हाथों मजबूर होकर रिश्ते तोड़ देते हैं|

गलती किसकी है, क्यों है ये जानने की न तो हिम्मत होती है न ही इच्छा, कहीं न कहीं एक ग़लतफहमी को बनाए रखने की जिद होती है| एक ऐसी ग़लतफहमी जो खुद को तसल्ली देने के लिए काफी हो| प्यार का सप्ताह चल रहा है बोले तो वेलेंटाईन वीक, बहुत से दिल टूटे होंगे तो कई.. जुड़े होंगे| जिनके दिल जुड़े उनके लिए ये वीक लकी चार्म और जिनके टूटे उनके लिए अनलकी चार्म| अभी कुछ दिन  पहले  ही किसी ने  कहा कि यार दिल टूटे तो बहुत दर्द  होता है लेकिन कई बार आप न चाहते हुए भी उस शख्स  से दूर  जाने  पर  मजबूर  हो जाते  हैं| उलझन तो होती है लेकिन अगर आप खुद से या कहें अपने सेल्फ रिस्पेक्ट से प्यार करते हैं तो ये कदम उठाना ज़रूरी हो जाता है| लगा बात में दम तो है|

इस बारे में सोचा तो समझ आया, ज़िन्दगी की शुरुआत से लेकर खत्म होने तक हम हमेशा रिश्तों में उलझे रहते हैं| कभी कोई नया रिश्ता जुड़ा तो कभी पुराना टूट गया| एक नया रिश्ता जुड़ा तो हम ख़ुशी से फुले नहीं समाते और जब कोई रिश्ता टूट जाए तो ऐसा लगता है मानों ज़िन्दगी खत्म हो गयी| कुछ रिश्ते पहले से बने होते हैं जिन्हें हम खून का रिश्ता कहते है, इनसे अलग होने की टीस तो होती है लेकिन शायद इतनी नहीं कि लगे अब ज़िन्दगी में कुछ बाकी नहीं|

खून के ये रिश्ते अगर दूर जाते हैं तो इनके पास होने का एहसास होता है क्योंकि इनके टूटने की वजह एक नए रिश्ते का जुड़ना होता है| कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं जो हम जोड़ते हैं हमेशा साथ चलने के लिए लेकिन वक़्त कुछ ऐसा खेल खेलता है कि ये रिश्ते यादें बनकर हमेशा के लिए दिल की किताब में दबे रह जाते हैं| इन रिश्तों के टूटकर भी जुड़े रहने का तो यकीन होता है लेकिन कहीं न कहीं कुछ सवाल सामने आकर खड़े हो जाते हैं|
चाहे दोस्ती हो या प्यार ये रिश्ते हम खुद जोड़ते हैं| जब ये रिश्ते जुड़ते हैं तो लगता है कि दुनिया की सारी खुशियाँ हमें मिल गयी हैं| कुछ वक़्त पहले एक शख्स से मिली, उससे बात करते हुए ऐसा लगा की रिश्तों को समझने के लिए भी कोई इंस्ट्रूमेंट होना चाहिए| उससे बात करते करते ऐसा लगा की चाहे दिमाग की कितनी भी तारीफ़ की जाए लेकिन भावनाएं हमेशा प्रबल होती हैं| कई बार हम सही रिश्ते को इसलिए खो देते हैं क्योंकि हमें लगता है की वो शख्स गलत है जिससे हम रिश्ता रखना चाहते हैं| और इस प्रबल भावना के चलते कुछ गलत लोगों को अपने साथ रखने की जिद बाँध लेते हैं|

कभी यह भावनाएं हमें ताकत देती हैं तो कभी हमें कमजोर बना देती हैं| गलती किसीकी नहीं, बस जरूरत होती है कि हम असलियत से भागना छोड़कर उसे मानें| हमेशा हालातों का रोना रोकर ज़िन्दगी नहीं बिताई जा सकती| प्यार और जज्बात हर दिल में होते हैं लेकिन हमारे जज्बातों  की वजह से किसी को ठेस पंहुचे ये कहाँ तक सही है, इस बारे में हमें सोचना है| आखिर किसी भी रिश्ते की पहल कहीं न कहीं हमारी तरफ से होती है, हालातों की तरफ से नहीं| कदम तभी साथ निभाते हैं जब इरादे सच्चे हों|

"रिश्ता" इस शब्द में बहुत गहराई है, लेकिन जब हम इस गहराई को अपनों से छुपाने की कोशिश करते हैं तो यही रिश्ते अनसुलझे सवाल बन जाते हैं| अपनों को धोखा देते हैं किसी और को पाने के लिए और जब ये साथ छूटता है तो अबूझ पहेली बन जाता है| रह जाते हैं तो बस कुछ सवाल| ये हमारे हाथ में है कि हम किसीकी ज़िन्दगी से चोट देकर जाना चाहते हैं या उसके सवालों का जवाब बनना चाहते हैं| रिश्ता बनाईये लेकिन एक अनसुलझी पहेली नहीं| उम्मीद है बहुत जल्द इस अनसुलझे सवाल का जवाब कहीं न कहीं ज़रूर मिलेगा|

पाब्लो नेरुदा के शब्दों में-

अब मैं उसे प्यार नहीं करता हूँ....
उसमें कोई शक, नहीं
लेकिन शायद उसे प्यार करता हूँ|

इसी के साथ मैं रश्मि प्रभा आपसे विदा लेती हूँ कल सुबह 10 बजे परिकल्पना पर फिर मिलने के वादे के साथ। 


5 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (09-11-2013) "गंगे" चर्चामंच : चर्चा अंक - 1421” पर होगी.
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
    सादर...!

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  2. माँ सरस्वती प्रसाद
    माँ स्वर्गीय नहीं होती :(

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  3. कुछ और नायाब मोती
    सीपियाँ खुद कहाँ दिखाती हैं :)

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