बहुत सी शिकायतें भरी थीं मन में
साफ़ कर दिया है उन्हें
दीये में मुस्कान की बाती डाल
बातों से भर दिया है
सारे चेहरे जगमगाने लगे हैं
एक एक बताशा दिया है सबको
............. आत्मा तृप्त होकर सो गई है
माँ लक्ष्मी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई है
गणेश जी इत्मीनान से लड्डू खा रहे
……।
दीवाली की जगमगाती शुभकामनाएँ आप सबको :)
पर यह भी सच है,
रंग रोगन साफ
सफाई और घर
गन्ने की बनी
सुंदर सी लक्ष्मी
गणेश पूजा अर्चना
मिट्टी के दिये
तेल बाती मोमबत्तियां
चकरी फुलझड़ियां
सजी संवरी गृहणियां
उत्साह से सरोबार
बच्चे जवान बुड्ढे
बुड़िया लड़के लड़कियां
मन के अंदर जगमगाहट
झिलमिलाती बाहर
की रोशनियाँ
सजे हुऐ लबालब
भरे हुए बाजार
बर्तन भांडे कपड़े
लत्तों की भरमार
ये सब देखा था
कुछ ही दिन पहले
की जैसी हो बात
आज भी बहुत कुछ
वहीं का वहीं है
मशीन उगलने
लगी हैं लक्ष्मी
रोशनी से आँखें
चकाचौंध हैं
पठाके हैं कान फोड़
आवाज है धुआं है
घबराहट है जैसे
रुक रही सांस है
दीपावली रोशनी का
खुशी का त्योहार
तब भी था अब भी है
बस बदली बदली
लगता है एक ही चीज
पहले जहां होता था
इंतजार किसी के
आने का बेकरारी से
इंतजार आज भी होता है
पर बैचेनी के साथ
उतना ही उसी के
आकर चले जाने का !
आकर चले जाने का !
तभी तो जलाती हैं अमृता तन्मय
कवित्व-दीप ....
सत्य को सत्यता की सत्ता से भी
उपलक्षित करने के लिए
श्रेष्ठ को श्रेष्ठता की श्रेणी से भी
उपदर्शित करने के लिए
और सुन्दर को सुंदरता की समृद्धि से भी
उपपादित करने के लिए
विभिन्न रूपों और विभिन्न स्तरों पर
शब्दों एवं अर्थों के सहभावों व समभावों की
अभिनव अभिव्यक्ति अनवरत होते रहना चाहिए
और चिर प्रतिद्वंद्वी अन्धकार मिटता रहे
इसलिए कवित्व-दीप सतत जलते रहना चाहिए....
आदि काल से ही कवि को
कालज्ञ , सर्वज्ञ , द्रष्टा अथवा ऋषि
अमम आत्मनिष्ठा से कहा जाता है
प्रमाणत: उसकी रचनात्मक कल्पनाशीलता में
आकाश की व्याप्ति भी वाङ्मुख होकर
निर्बाध बहा जाता है
इसलिए तो भिन्न-भिन्न आयामों से
सम्पूर्ण मानवीय ज्ञान को
कवित्व के आलोक में पढ़ा जाता है
इस स्वयं प्रकाशित एवं आप्त उद्घाटित
सहजानुभूति के लिए
हर ह्रदय में प्रेमानुराग प्रज्वलित होते रहना चाहिए
और ये चिर प्रतिद्वंद्वी अन्धकार मिटता रहे
इसलिए कवित्व-दीप सतत जलते रहना चाहिए....
मन उद्दाम भाव-भूमि से लेकर
उद्दिष्ट अनुभव-आकाश तक कुलांचे भरता है
अपने ही चाल की विशिष्टता से विस्तार पा
चमकृत होता रहता है
और अकथ आनंद-आस्वाद को
पल-प्रतिपल पुन: पुन: पाता रहता है
इस प्रेय उद्गार एवं गेय मल्हार की
अभिव्यक्ति के लिए
अप्रतिम तथा अमान्य संवेग
सदैव प्रस्फुटित होते रहना चाहिए
और चिर प्रतिद्वंद्वी अन्धकार मिटता रहे
इसलिए कवित्व-दीप सतत जलते रहना चाहिए....
अत: अतिशयोक्ति नहीं है कि
कवित्व ही
समस्त वस्तुओं का मूल है
अमृत-सा ये अमर फूल है
ये चेतना का चिंतन है
तो अस्तित्व का ये कीर्तन है
प्रेम का ये समर्पण है
तो विरह में भी मिलन है
ये समृद्धि का प्रहसन है
तो दरिद्रों का भी धन है
दुःख में ये धैर्य है
तो सुख का शौर्य है
हर पाश का ये प्रतिपाश है
तो अन्धकार में प्रकाश है.....
दीपों के त्योहार से हमें और क्या चाहिए ?
बस ये चिर प्रतिद्वंद्वी अन्धकार मिटता रहे
इसलिए कवित्व-दीप सतत जलते रहना चाहिए .
( उपलक्षित---संकेतित , उपदर्शित---व्याख्या करना
उपपादित---सिद्ध करना , वाङ्मुख---ग्रंथ की भूमिका
उद्दाम---स्वतंत्र , उद्दिष्ट---चाहा हुआ )
() अमृता तन्मय
परिकल्पना ब्लॉगोत्सव में आज इतना ही .......मिलती हूँ कल फिर सुबह 11 बजे परिकल्पना पर !
() अमृता तन्मय
परिकल्पना ब्लॉगोत्सव में आज इतना ही .......मिलती हूँ कल फिर सुबह 11 बजे परिकल्पना पर !
परिकल्पना में उल्लूक की कल्पना को स्थान दे कर जो सम्मान दिया उसके लिये दिल से आभार !
जवाब देंहटाएं्दोनो ही प्रस्तुतियाँ बेहद उम्दा
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाएं !
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
नई पोस्ट आओ हम दीवाली मनाएं!
(h)
जवाब देंहटाएंयहां भी छा गए
जवाब देंहटाएंउल्लूक है महान बतला गए
आप की नजर है छत्र छाया है फिर हर तरफ उल्लू की खबर है :P
हटाएंकवित्व-दीप सतत जलते रहना चाहिए .
जवाब देंहटाएंचयन एवं प्रस्तुति सराहनीय ...
आभार