माँ,
तुमने अपनी आदतों से 
समझौता,सहनशीलता,चुप रहने की खासियत बताई 
पर,
जब सूरज माथे पर होता है 
दूर दूर तक जल से भरा एक टुकड़ा बादल का 
नज़र नहीं आता 
पसीने से सराबोर चेहरा 
मन को तरबतर कर जाता है 
तो माँ 
सिर्फ तुम पर गुस्सा आता है 
और तुम्हारे पूजा घर पर । 
दिल करता है चीखूँ 
- चीख निकलती भी है तुम पर 
एक ज़िद का मन्त्र 
मेरे दिलोदिमाग की परिक्रमा करता है 
लेकिन अकस्मात तुम्हारी चुप्पी 
मुझे एहसास दिला जाती है 
कि तुम सही कहती हो !
मुस्कुराओ मत माँ,
मेरी बात सुनो -
खुद को मेरे गुस्से के हवाले कर 
तुम जो लगातार सीख देती हो 
उसे समझते हुए 
जाने-अनजाने सीखते हुए 
मुझे तुम अच्छी नहीं लगती 
.... 
तुम्हारे हूँ  … हूँ का जादू 
धीरे धीरे मुझे शांत कर देता है 
और कहीं न कहीं यह ख्याल पनपता है 
कि तुम 
बहुत अच्छी हो माँ 

रश्मि प्रभा 


माँ ! तुम याद बहुत आती हो.....
सुधा ओम ढींगरा


मेरा बच्चा, 
जब हँसता, 
रोता, 
अठखेलियाँ करता है, 
ऐसा लगता है 
मानों लौट आया हो 
बचपन मेरा. 
बच्चे को देख 
जब ख़ुश होती हूँ तो 
महसूस होता है 
तुम मुझ में खड़ी-- 
मुझी को निहारती हो..... 
माँ! तुम याद बहुत आती हो....... 

पता है माँ, 
बच्चे को जब दुलारती हूँ, 
प्यार करती हूँ, 
सोए को जगाती हूँ, 
रूठे को मनाती हूँ, 
वही बातें मुहँ से निकलती हैं 
जो तुम 
मुझे कहा करती थी-- 
मेरे होंठों से लोरी भी तुम्हीं सुनाती हो.... 
माँ ! तुम याद बहुत आती हो..... 

सुना तुमने, 
मैं वैसे ही गुस्सा हुई 
बच्चे पर, 
जैसे तुम मुझ पर होती थी, 
आवाज़ भी वही 
और अंदाज़ भी वही. 
कुदरत की कैसी यह लीला है? 
माँ बनने के बाद, 
माँ की महिमा 
और भी बढ़ जाती है-- 
पल- पल इसका आभास कराती हो..... 
माँ! तुम याद बहुत आती हो...... 

हर माँ, 
हर लड़की में बसती है, 
माँ बनने के बाद वह उभरती है. 
नया कुछ नहीं 
किस्सा सब पुराना है 
सदियों से चला आ रहा फसाना है-- 
इस बात को ढंग से समझाती हो...... 
माँ! तुम याद बहुत आती हो...... 

क्षण -क्षण, 
बच्चे में ख़ुद को 
ख़ुद में तुम को पाती हूँ, 
जिंदगी का अर्थ, 
अर्थ से विस्तार, 
विस्तार से अनन्त का 
सुख पाती हूँ-- 
मेरे अन्तस में दर्प के फूल खिलाती हो... 
माँ! तुम याद बहुत आती हो......




सुनो माँ ----माँ माँ माँ अनहद नाद की तरह ,गूंजती हो ---यकीन है तुम मुझे सुन रही हो
विधुल्लता
मेरा फोटो



सुनो माँ 
तुम थी, तो थी हरियाली 
और कोई जलन मालूम ना थी 
बीच यात्रा में छूटा  सा ----
तुम्हारा मौन ,अब भी आवाज़ लगाता  है ''बेटा ''
ढेर से शब्दों के बावजूद अवाक -हूँ 
माँ माँ माँ अनहद नाद की तरह ,गूंजती हो 
भीतर  -बाहर,उत्सव में दुःख में सुख में 
आस-पास ,हरदम नेह का नीड़ बुनती सी तुम 
महसूस होती हो 
तुम पास हो ,ये अहसास है 
इस कोलाहल में /इस शून्य में अपनों -अजनबियों में 
फिर भी शेष हो ,मुझमें  
मेरी इस दुनिया में 

माँ मुझे यकीन है तुम मुझे सुन रही हो 
स्मृति जल में डूबते-उतराते ,बीते कई सालों में 
सारे मौसमों में बीतती रही तुम 
तुम्हारे ना होने पर कई दुःख आये और चले गए 
कई सुख आये और -रह गये 
तुम्हारी देह गंध -अब भी साढ़ीयों के ढेर में ताजा है 
और उस चौड़े जरी के पाट  वाली हरी साढी में तो तुम  ज्यादा ही याद आती हो 
पहनती हूँ जब-जब तुम्हारा स्पर्श जीवंत हो उठता है 
इसके अलावा भी 
दाल के छौंके में ,आम की मैथी लौंजी में 
लाल मिर्च की चटनी में ,आटे  बेसन के लड्डुओं में 
खट्टी -मीठी सी तुम मौजूद हो 
हर पल परछाई सी होती हो पास,
हमारी छोटी उपलब्धियों पर हमें विशिष्ट बना देने वाली माँ 
तुम्हारे कुछ अनमोल शब्द /कुछ सीखें /सौगातें 
तुम याद आती हो ता बस आती हो 
पेड़ नहीं काटना /बाल नहीं काटना/गुरूवार को हल्दी का उबटन करना /केले के पेड़ को  पूजना 
सूर्य उपासना करना ---
मंत्रोचार की ध्वनि में 
तुम्हारे निष्ठूर देवी देवताओं को पूजती हूँ आज भी 
भरसक कोशिश करती हूँ उन्हें निभाना  तुम्हारी खातिर 
अक्सर रातों में जब नींद नहीं आती 
आसमान से एक तारा चुन लेती हूँ -मान लेती हूँ तुम्हे 
आँख भर आती है तब 
इससे पहले की कोई आंसू इस लिखे पर गिरे 
उससे पहले थाम लेती हो 
मुझे यकीन है
सुनो माँ 
तुम मुझे सुन रही हो 

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