हम सांप से ज्यादा जहरीले हो गए हैं
स्वार्थ के दांत कितने नुकीले हो गए हैं
हम सांप से ज्यादा जहरीले हो गए हैं ।
हर कोई समझने में करने लगा है भूल-
क्योंकि हमारे आवरण चमकीले हो गए हैं ।
वह तो उगलता है जहर डंसने के बाद -
हम उगल-उगलकर जहर पीले हो गए हैं ।
सुरक्षा की खातिर करता है वह इस्तेमाल-
पर हम लोटाकर जहर में गीले हो गए हैं ।
सांप सांप्रदायिक भी नहीं होता प्रभात-
और हम धर्म के नाम पर नीले हो गए हैं ।
() रवीन्द्र प्रभात
वह तो उगलता है जहर डंसने के बाद -
जवाब देंहटाएंहम उगल-उगलकर जहर पीले हो गए हैं ।
रविन्द्र जी ,
आपकी लेखनी की धार बहुत तीक्ष्ण है ...बहुत उम्दा गज़ल मिली पढने को ..आभार
आपकी अभिव्यक्ति की धार सचमुच काफी तीक्ष्ण है, शब्दों में गहराई छिपी होती है और हर शेर अपने आप में कुछ कहता है , आपका आभार प्रभात जी !
जवाब देंहटाएंसभ्यता का है जहाँ तकाज़ा
जवाब देंहटाएंवहाँ विषधरों के घर हैं
सांप तो यूँ ही बदनाम है
केंचुल हटाते आदमी का चेहरा ही
कोबरा होता है
विष ही विष भरा होता है
स्वार्थ के दांत कितने नुकीले हो गए हैं
जवाब देंहटाएंहम सांप से ज्यादा जहरीले हो गए हैं ।
raviendra jee
namaskar !
naye bimb lage , behad sunder lagi gazal , wo bhi hindi me aur bhi ahccha laga ,
sadhwad1
उम्दा ग़ज़ल और बिंब लाजवाब !
जवाब देंहटाएंयह तो कड़वा सच है हुजूर, आपने ग़ज़ल में ढालकर इसे प्रासंगिक बना दिया, साधुबाद !
जवाब देंहटाएंबढ़िया गज़ल है रवीन्द्र जी ।
जवाब देंहटाएंवाह वाह प्रभात जी !
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब ग़ज़ल.....
सांप सांप्रदायिक भी नहीं होता प्रभात-
और हम धर्म के नाम पर नीले हो गए हैं ।
शानदार शे'र.......
धन्यवाद
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आपको अनुरोध सहित सादर आमन्त्रण है
-अलबेला खत्री
सांप सांप्रदायिक भी नहीं होता प्रभात-
जवाब देंहटाएंऔर हम धर्म के नाम पर नीले हो गए हैं ।nice............................................nice
veri nice
जवाब देंहटाएंहर कोई समझने में करने लगा है भूल-
जवाब देंहटाएंक्योंकि हमारे आवरण चमकीले हो गए हैं ।
बहुत खूब ..
इन सफेदपोशो को समझ पाया है कौन
स्वार्थ के दांत कितने नुकीले हो गए हैं
जवाब देंहटाएंहम सांप से ज्यादा जहरीले हो गए हैं ।
...बढ़िया गज़ल ...
वाह..वाह...वाह...लाजवाब !!!
जवाब देंहटाएंसभी शेर एक से बढ़कर एक....सीख देती,कटाक्ष करती , बेहतरीन ग़ज़ल....