मंदिर-मस्जिद मुद्दों में बस खो गया है आदमी ।
ग़ज़ल
आज अपने आप में क्या हो गया है आदमी ,
जागने का वक़्त है तो सो गया है आदमी ।
भूख की दहलीज़ पर जगता रहा जो रात- दिन ,
चंद रोटी खोजने में खो गया है आदमी ।
यह हमारा मुल्क है या स्वार्थ का बाज़ार है ,
सेठियों के हाथ गिरवी हो गया है आदमी ।
पेट की थी आग या कि बोझ बस्तों का उसे ,
छोड़ करके पाठशाला जो गया है आदमी ।
झांकता है कौन मन के राम को रहमान को-
मंदिर-मस्जिद मुद्दों में बस खो गया है आदमी ।
कुर्सियों की होड़ में बस दौड़ने के बास्ते ,
नफ़रतों का बीज आकर बो गया है आदमी ।
() रवीन्द्र प्रभात
GREAT !
जवाब देंहटाएंपेट की थी आग या कि बोझ बस्तों का उसे ,
जवाब देंहटाएंछोड़ करके पाठशाला जो गया है आदमी ।
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
शानदार गजल।
जवाब देंहटाएंsahee kaha
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गजल।
जवाब देंहटाएंपेट की थी आग या कि बोझ बस्तों का उसे ,
जवाब देंहटाएंछोड़ करके पाठशाला जो गया है आदमी ।
झांकता है कौन मन के राम को रहमान को-
मंदिर-मस्जिद मुद्दों में बस खो गया है आदमी ।
कुर्सियों की होड़ में बस दौड़ने के बास्ते ,
नफ़रतों का बीज आकर बो गया है आदमी ।
गजल में शब्द का सटीक प्रयोग हुआ है , पढ़कर मन प्रसन्न हो गया !
झांकता है कौन मन के राम को रहमान को-
जवाब देंहटाएंमंदिर-मस्जिद मुद्दों में बस खो गया है आदमी ।
कुर्सियों की होड़ में बस दौड़ने के बास्ते ,
नफ़रतों का बीज आकर बो गया है आदमी ।
......bahut hi achhi samyik rachna
झांकता है कौन मन के राम को रहमान को-
जवाब देंहटाएंमंदिर-मस्जिद मुद्दों में बस खो गया है आदमी ।
कुर्सियों की होड़ में बस दौड़ने के बास्ते ,
नफ़रतों का बीज आकर बो गया है आदमी ।
बहुत अच्छी गज़ल ...सच ही आदमी खो गया है इंसानियत खो गयी है ..
प्रभावशाली गज़ल,
जवाब देंहटाएंकुर्सियों की होड़ में बस दौड़ने के बास्ते ,
जवाब देंहटाएंनफ़रतों का बीज आकर बो गया है आदमी ।
सभी शेर बेहतरीन
उम्दा ग़ज़ल...........
जवाब देंहटाएंसराहनीय पोस्ट !
VAAH, SAMAYIK GHAZAL.BADHAI. KAASH SARE LEKHAK ISI TARAH KI RACHANAYE KARATE RAHE.
जवाब देंहटाएं