ग़ज़ल
आज अपने आप में क्या हो गया है आदमी ,
जागने का वक़्त है तो सो गया है आदमी ।

भूख की दहलीज़ पर जगता रहा जो रात- दिन ,
चंद रोटी खोजने में खो गया है आदमी ।

यह हमारा मुल्क है या स्वार्थ का बाज़ार है ,
सेठियों के हाथ गिरवी हो गया है आदमी ।

पेट की थी आग या कि बोझ बस्तों का उसे ,
छोड़ करके पाठशाला जो गया है आदमी ।

झांकता है कौन मन के राम को रहमान को-
मंदिर-मस्जिद मुद्दों में बस खो गया है आदमी ।

कुर्सियों की होड़ में बस दौड़ने के बास्ते ,
नफ़रतों का बीज आकर बो गया है आदमी ।

() रवीन्द्र प्रभात

12 comments:

  1. पेट की थी आग या कि बोझ बस्तों का उसे ,
    छोड़ करके पाठशाला जो गया है आदमी ।

    बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  2. पेट की थी आग या कि बोझ बस्तों का उसे ,
    छोड़ करके पाठशाला जो गया है आदमी ।

    झांकता है कौन मन के राम को रहमान को-
    मंदिर-मस्जिद मुद्दों में बस खो गया है आदमी ।

    कुर्सियों की होड़ में बस दौड़ने के बास्ते ,
    नफ़रतों का बीज आकर बो गया है आदमी ।

    गजल में शब्द का सटीक प्रयोग हुआ है , पढ़कर मन प्रसन्न हो गया !

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  3. झांकता है कौन मन के राम को रहमान को-
    मंदिर-मस्जिद मुद्दों में बस खो गया है आदमी ।

    कुर्सियों की होड़ में बस दौड़ने के बास्ते ,
    नफ़रतों का बीज आकर बो गया है आदमी ।

    ......bahut hi achhi samyik rachna

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  4. झांकता है कौन मन के राम को रहमान को-
    मंदिर-मस्जिद मुद्दों में बस खो गया है आदमी ।

    कुर्सियों की होड़ में बस दौड़ने के बास्ते ,
    नफ़रतों का बीज आकर बो गया है आदमी ।

    बहुत अच्छी गज़ल ...सच ही आदमी खो गया है इंसानियत खो गयी है ..

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  5. कुर्सियों की होड़ में बस दौड़ने के बास्ते ,
    नफ़रतों का बीज आकर बो गया है आदमी ।
    सभी शेर बेहतरीन

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  6. उम्दा ग़ज़ल...........

    सराहनीय पोस्ट !

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  7. VAAH, SAMAYIK GHAZAL.BADHAI. KAASH SARE LEKHAK ISI TARAH KI RACHANAYE KARATE RAHE.

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