जब -
बीमार अस्पताल की
बीमार खाट पर पडी
मेरी बूढ़ी बीमार माँ
खांस रही थी बेतहाशा
तब महसूस रहा था मैं
कि, कैसे -
मौत से जूझती है एक आम औरत ।
कल की हीं तो बात है
जब लिपटते हुये माँ से
मैंने कहा था , कि -
माँ, घबराओ नही ठीक हो जाएगा ..... ।
सुनकर चौंक गयी माँ एकवारगी
बहने लगे लोर बेतरतीब
सन्न हों गया माथा
और, माँ के थरथराते होंठों से
फूट पडे ये शब्द -
"क्या ठीक हो जाएगा बेटा !
यह अस्पताल ,
यह डॉक्टर ,
या फिर मेरा दर्द ........?
बीमार खाट पर पडी
मेरी बूढ़ी बीमार माँ
खांस रही थी बेतहाशा
तब महसूस रहा था मैं
कि, कैसे -
मौत से जूझती है एक आम औरत ।
कल की हीं तो बात है
जब लिपटते हुये माँ से
मैंने कहा था , कि -
माँ, घबराओ नही ठीक हो जाएगा ..... ।
सुनकर चौंक गयी माँ एकवारगी
बहने लगे लोर बेतरतीब
सन्न हों गया माथा
और, माँ के थरथराते होंठों से
फूट पडे ये शब्द -
"क्या ठीक हो जाएगा बेटा !
यह अस्पताल ,
यह डॉक्टर ,
या फिर मेरा दर्द ........?
() रवीन्द्र प्रभात
भावपूर्ण अभिव्यक्ति....वाकई....कुछ ठीक होने वाला नहीं...ये दुनिया है ऐसे ही चलेगी
जवाब देंहटाएंhttp://veenakesur.blogspot.com/
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जवाब देंहटाएंविना जी,
जवाब देंहटाएंयही सच है कि हमारे देश में सब कुछ राम-भरोसे ही चल रहा है , शासन-प्रशासन अथवा अस्पताल ही क्यों न हो ?
सचमुच मार्मिक है यह अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंअज के हालात को देख कर तो यही लगता है कि ये दर्द और बढेगा
जवाब देंहटाएंबहुत गहरे भाव लिये रचना के लिये धन्यवाद।
बहुत ही गहराई लिये प्रत्येक शब्द, सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत गहरे भाव लिये अभिव्यक्ति के लिये धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंachchhee lagee kavitaa, vilkul praasangik !
जवाब देंहटाएंaapki kalam mein gahan anubhutiyon ka saar hai ...
जवाब देंहटाएंसार्थक लेखन के लिए शुभकामनाये.......
जवाब देंहटाएं“20 वर्षों बाद मिला मासूम केवल डॉन से"
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