ग़ज़ल :
मच रहा है मुल्क में कोहराम क्यों ,
राजपथ पर बुत बने हैं राम क्यों ?
रोज आती है खबर अखवार में ,
रोज आती है खबर अखवार में ,
लूट, हत्या , ख़ौफ , कत्लेयाम क्यों ?
मन के भीतर ही खुदा है, राम है ,
मन के भीतर ही खुदा है, राम है ,
झाँक लो मिल जायेंगे ,प्रमाण क्यों ?
सभ्यता की भीत को तुम ढाहकर ,
सभ्यता की भीत को तुम ढाहकर ,
कर रहे पर्यावरण नीलाम क्यों ?
जिनके मत्थे मुल्क के अम्नों - अम्मां,
जिनके मत्थे मुल्क के अम्नों - अम्मां,
दे रहे विस्फोट का पैगाम क्यों ?
बोलते हम हो गए होते दफ़न ,
बोलते हम हो गए होते दफ़न ,
चुप हुये तो हो गए बदनाम क्यों ?
कुछ करो चर्चा सियासी दौर की ,
कुछ करो चर्चा सियासी दौर की ,
अब ग़ज़ल में गुलवदन- गुल्फाम क्यों ?
जबतलक पहलू में तेरे है प्रभात ,
जबतलक पहलू में तेरे है प्रभात ,
कर रहे हो ज़िंदगी की शाम क्यों ?
() रवीन्द्र प्रभात
कुछ करो चर्चा सियासी दौर की ,
जवाब देंहटाएंअब ग़ज़ल में गुलवदन- गुल्फाम क्यों ?
सामाजिक विसंगतियों पर खरा व्यंग्य प्रहार करती हुई ग़ज़ल! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
काव्यशास्त्र (भाग-3)-काव्य-लक्षण (काव्य की परिभाषा), आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
बहुत अच्छी गज़ल ..आज की विसंगतियों पर प्रहार करती हुई
जवाब देंहटाएंसुन्दर गज़ल
जवाब देंहटाएंआज के हालात पर जीवंत
रवीन्द्र जी ,मैं बलि जाऊं
जवाब देंहटाएंकविता है दिल ये लुभाऊ
आपकी गज़लें समाज का आईना होती हैं, जब भी पढो मन झूम - झूम जाता है ....सोचने को विवश कर देती है आपकी ग़ज़ल .....आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी गज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी रवीन्द्र जी यह गज़ल
जवाब देंहटाएंमच रहा है मुल्क में कोहराम क्यों ,
जवाब देंहटाएंराजपथ पर बुत बने हैं राम क्यों ?
रोज आती है खबर अखवार में ,
लूट, हत्या , ख़ौफ , कत्लेयाम क्यों ?
कुछ करो चर्चा सियासी दौर की ,
अब ग़ज़ल में गुलवदन- गुल्फाम क्यों ?
वाह प्रभात जी क्या बेमिसाल शेर निकाले हैं। दिल को छू गयी पूरी गज़ल। बधाई।
achchhee kavitai phoot rahee hai bhaiya Ravindr. donon hee gajalen achchhee ban padee hain. aise hee kahate rahiye miyaan.
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