ग़ज़ल :
मच रहा है मुल्क में कोहराम क्यों ,
राजपथ पर बुत बने हैं राम क्यों ?

रोज आती है खबर अखवार में ,
लूट, हत्या , ख़ौफ , कत्लेयाम क्यों ?

मन के भीतर ही खुदा है, राम है ,
झाँक लो मिल जायेंगे ,प्रमाण क्यों ?

सभ्यता की भीत को तुम ढाहकर ,
कर रहे पर्यावरण नीलाम क्यों ?

जिनके मत्थे मुल्क के अम्नों - अम्मां,
दे रहे विस्फोट का पैगाम क्यों ?

बोलते हम हो गए होते दफ़न ,
चुप हुये तो हो गए बदनाम क्यों ?

कुछ करो चर्चा सियासी दौर की ,
अब ग़ज़ल में गुलवदन- गुल्फाम क्यों ?

जबतलक पहलू में तेरे है प्रभात ,
कर रहे हो ज़िंदगी की शाम क्यों ?
() रवीन्द्र प्रभात

11 comments:

  1. कुछ करो चर्चा सियासी दौर की ,
    अब ग़ज़ल में गुलवदन- गुल्फाम क्यों ?
    सामाजिक विसंगतियों पर खरा व्यंग्य प्रहार करती हुई ग़ज़ल! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    काव्यशास्त्र (भाग-3)-काव्य-लक्षण (काव्य की परिभाषा), आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!

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  2. बहुत अच्छी गज़ल ..आज की विसंगतियों पर प्रहार करती हुई

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  3. सुन्दर गज़ल
    आज के हालात पर जीवंत

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  4. रवीन्द्र जी ,मैं बलि जाऊं
    कविता है दिल ये लुभाऊ

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  5. आपकी गज़लें समाज का आईना होती हैं, जब भी पढो मन झूम - झूम जाता है ....सोचने को विवश कर देती है आपकी ग़ज़ल .....आभार !

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  6. बहुत अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति. आभार.

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  7. अच्छी लगी रवीन्द्र जी यह गज़ल

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  8. मच रहा है मुल्क में कोहराम क्यों ,
    राजपथ पर बुत बने हैं राम क्यों ?

    रोज आती है खबर अखवार में ,
    लूट, हत्या , ख़ौफ , कत्लेयाम क्यों ?

    कुछ करो चर्चा सियासी दौर की ,
    अब ग़ज़ल में गुलवदन- गुल्फाम क्यों ?
    वाह प्रभात जी क्या बेमिसाल शेर निकाले हैं। दिल को छू गयी पूरी गज़ल। बधाई।

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  9. achchhee kavitai phoot rahee hai bhaiya Ravindr. donon hee gajalen achchhee ban padee hain. aise hee kahate rahiye miyaan.

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