आज जब मैं सुबह-सुबह घर से दफ्तर के लिए निकला, तो मेरी छोटी बिटिया उर्वशी ने कहा -" पापा ! आपका दफ्तर आज बंद नहीं है? " मैंने कहा- "नहीं तो " उसने कहा- " मेरा स्कूल तो बंद है , ठीक से जाईयेगा !" मैंने कहा - क्यों ? उसने तपाक से कहा - " पापा मेरी सहेलियां कह रही थी कि हंगामा होने वाला है शहर में !" मैंने कहा बेटा कुछ भी नहीं होने वाला है , इसे बेबजाह तूल दिया गया है सांप्रदायिक तत्वों द्वारा .....वह कोई और प्रश्न करे इससे पहले मैं दफ्तर के लिए निकल गया !

आपको सच बताऊँ तो सडकों पर मैंने कुछ भी ऐसा नहीं देखा जो अन्य दिनों से भिन्न हो ! सोचता हूँ आज मनुष्य विश्व बंधुत्व की भावना को अपने अंतर से निकालकर सच्ची मानवता के दर्शन को क्यों भुला रहा है इन मंदिर-मस्जिद मुद्दों में उलझकर ?

आज हम भूल गए हैं गुरु नानक के उस अमर उपदेश को, कि-" अव्वल अल्लाह नूर उपाया कुदरत के सब बन्दे, एक नूर तो सब जग उपज्या कौन भले कौन भंदे "

भूल गए हैं हम अलामा इकवाल के उस सन्देश को, कि " मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी हैं हम वतन है हिन्दुस्ता हमारा "

भूल गए हैं हम गांधी की अमर वाणी को, कि " प्रभु भक्त कहलाने का अधिकारी वही है जो दूसरों के कष्ट को समझे "

भूल गए हैं हम तुलसीदास के धर्म की परिभाषा को, कि " पर हित सरिस धर्म नहीं भाई "

इसप्रकार-

मंदिर, मस्जिद, गिरजा, गुरुद्वारा तो शक्ति का साधन स्थल है ! परस्पर प्रेम, सौहार्य, एकता एवं धार्मिक-सांस्कृतिक सहिष्णुता का पूज्य स्थल है । सर्व धर्म समन्वय ही हमारी सभ्यता और संस्कृति का मूल प्राण है ।

अनेकता में एकता ही हमारी आन-वां और शान है ।

मित्रों !

निष्काम कर्म ही मनुष्य का धर्म है / मानवता का मूल मंत्र है ।

याद करो राष्ट्रीय कवि मैथली शरण गुप्त की वह पंक्तियाँ, कि "यह पशु प्रवृति है कि आप ही आप चारे, मनुष्य वही जो मनुष्य के लिए मरे "

याद करो रहीम के सत्य के प्रतिपादन को/सच्ची मानवता के दर्शन को -

" यो रहीम सुख होत है उपकारी के संग , बाटन वारे के लगे ज्यों मेंहदी के रंग "

याद करो कि सलीब पर चढाते हुए / अपने हत्यारों के लिए दुआ माँगते हुए इसाईयों के प्रवर्तक ईशा ने क्या कहा था ?

यही न कि " प्रभु इन्हें सुबुद्धि दे, सुख-शान्ति दे, ये नहीं जानते कि क्या करने जा रहे हैं "

याद करो- कर्बला के मैदान में / प्राणों की बलि देने वाले /अंतिम सांस तक मानव कल्याण हेतु दुआएं माँगने वाले मोहम्मद साहब ने क्या कहा था .......

आर्य समाज के प्रबर्तक महर्षि दयानंद ने अभय दान दे दिया क्यों अपने हत्यारों को ? महात्मा बुद्ध ने अपने धर्म के प्रचार में अन्य धर्मों के विरूद्ध द्वेष का प्रदर्शन क्यों नहीं किया ? स्वामी विवेकानंद , राम तीर्थ, रामकृष्ण परमहंस ने किसी धर्म के लिए अपशब्द क्यों नहीं कहे ?

सूफी संत आमिर खुसरो, हजरत निजामुद्दीन, संत कबीर, नामदेव क्यों सर्वस्व त्याग दिया मजहबी एकता के लिए अर्थात सर्व धर्म समन्वय के लिए ?

इस सबका एक ही उत्तर है कि हमारा धर्म बाद में है पहले हम भारतीय हैं ...!

आईये हम मिलकर शपथ लेते हैं कि ६० साल बाद आज इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के द्वारा दिया जा रहा अयोध्या विवाद का फैसला चाहे जिसके पक्ष में आये हम अमन और भाईचारे पर किसी भी प्रकार की आंच न आने देंगे !

जय हिंद !

11 comments:

  1. सही है सबसे पहले हम हिन्दुस्तानी .....

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  2. आईये हम मिलकर शपथ लेते हैं कि ६० साल बाद आज इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के द्वारा दिया जा रहा अयोध्या विवाद का फैसला चाहे जिसके पक्ष में आये हम अमन और भाईचारे पर किसी भी प्रकार की आंच न आने देंगे !

    जय हिंद !

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  3. हमारा धर्म बाद में है पहले हम भारतीय हैं ...!
    yahi sachch hai

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  4. आईये हम मिलकर शपथ लेते हैं कि ६० साल बाद आज इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के द्वारा दिया जा रहा अयोध्या विवाद का फैसला चाहे जिसके पक्ष में आये हम अमन और भाईचारे पर किसी भी प्रकार की आंच न आने देंगे !

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  5. सब समझ जाएं तो क्या बात है।

    बिटिया की तरह आज हर बच्चा चिंतित था अपने-अपने पापा के लिए।

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  6. Ravindr bhai, kaha jata hai n ki aadamee ek samaajik pashu hai yani pashu jo saamajik ho gaya ho, par pashutv se pooree tarah mukt n hua ho. har ek ke bheetar yah pashuta hamesha rahatee hai. jab tak vah vivek tale dabee rahatee hai, vah aadamee jaisa vyvhaar karata hai par kabhee-kabhee jab pashuta vivek par kabja kar letee hai, vah bilkul jaanvar ho jaata hai. tab use koi updesh yaad naheen rahata, tab use kisee bhagvan ka dar nahee hota. tab vah vahee karata hai, jo uska pashu chahata hai. balatkaar, hinsa, danga isee paashvik kshan ke nateeje hain. yah hamesha hote rahe hain, aage bhee hote rahenge. pashu manav bhee rahega aur viveksampann manushy bhee. yahee duniya ka dwandwatmak siddhaant hai.

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  7. "यह पशु प्रवृति है कि आप ही आप चारे, मनुष्य वही जो मनुष्य के लिए मरे "

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  8. बिलकुल सही कहा आपने । आज ऐसे ही सन्देश की जरूरत है। सार्थक पोस्ट। बधाई

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