हम जो कुछ कह रहे, लिख रहे - वो हमारे विचार हैं 
व्यथा अंदरूनी बनकर ही निकलती है 
चाह अपनी है 
कल्पना अपनी है 
विषय अस्तित्व है 
तभी तो कहा - दामिनी स्व का माध्यम है ...
पर सैनिक हर स्व को हिकारत से देख रहे 
रूह उनकी - देश के कर्णधारों से कोई प्रश्न नहीं कर रही 
उन्होंने हर कर्तव्य निभाया 
पर कभी एक क्षण के लिए ही उनकी स्थिति पर गौर करना - अपनी सोच के साथ 

 रश्मि प्रभा 


कभी अभिमन्यु ...कभी हुसैन की तरह

"मेरे शब्दों का क़त्ल 
इसी मजहबी झाडी की आड़ से किया था तुमने 
मेरे शब्द तड़फते रहे थे 
मेरे शब्दों की गोद में एक छोटे बच्चे सा दुबका हुआ 
मासूम सा सच भी था
कभी अभिमन्यु कभी हुसैन की तरह 
कभी दुर्योधन कभी यजीद नामजद भी हुए थे 
पर भगवान् के भी खेमे थे ...अल्लाह की भी सरहदें थीं 
और दर्द की आवाजें अनहदें थीं 
हम कातर लोग जब क़त्ल होते हुए अंतिम समय में तड़फते हैं 
तो अल्लाह की भाषा में वह हलाल होता है
क़ानून की नज़र में वह हराम होता है 
यह दीगर बात है कि 
अल्लाह के लिए हर हलाल पर मानवता को मलाल होता है  
गाँधारी की ही तरह आयशा भी अय्यास की अय्यासी पर रोई होगी 
हर सच से मजहब का सीमित सा सरोकार होता है 
कातिलों का एक खेमा हर मजहब के शामियाने में सोता है 
फर्क क्या पड़ता है 
कि क़त्ल हो चुके अभिमन्यु की लाश पर कोई उत्तरा जैसा रोता है 
या किसी वक्त की किसी कर्बला में 
हुसैन की शहादत पर फातिमा का क्या होता है    
यह मजहब है शंखनाद से शुरू और सूफियान पर ख़त्म होता है 
आयशा की बेटियों में फाहिशा कहाँ से आयीं ये भी बतलाओ 
देवदासी की उदासी का भी सबब मुझे समझाओ 
कबीलों के क़ानून और खुदगर्जी के खुदा से सच की शिनाख्त मत करना 
मर चुके हो तुम बार -बार अबकी बार मत मरना 
बात जब सच की हो तो खुदा कौन ?..भगवान्  कैसा ??
भगवान् हों मेरे या तेरा खुदा 
इनकी सनद का मोहताज सच है कैसे बता ?
सच का  चश्मा लगाओ फिर शिनाख्त करो
मजहबी झाड़ी की आड़ में बैठे हुए गिरोहों में 
कुछ कातिल तो तेरे हैं ...कुछ कातिल तो मेरे हैं
मेरे शब्दों का क़त्ल 
इसी मजहबी झाडी की आड़ से किया था तुमने 
मेरे शब्द तड़फते रहे थे 
मेरे शब्दों की गोद में एक छोटे बच्चे सा दुबका हुआ 
मासूम सा सच भी था
कभी अभिमन्यु कभी हुसैन की तरह ." 

------ राजीव चतुर्वेदी 


"बदलना है इस बार नियति"

भूतकाल का शोक
भविष्य का भय
और 
वर्तमान का मोह 
बस इसी में उलझे रहना ही
नियति बना ली
जब तक ना इससे बाहर आयेंगे
खुद को कहाँ पायेंगे?
और सोच लिया है मैंने इस बार 
नही दूंगी खुद की आहुति 
बदलना है इस बार नियति 
भूतकाल से सीखना है 
ना कि भय को हावी करना है 
और उस सीख का वर्तमान में सदुपयोग करना है 
जलानी है एक मशाल क्रांति की 
अपने होने की
अपने स्वत्व के लिए एकीकृत करना होगा 
मुझे स्वयं मुझमे खोया मेरा मैं 
ताकि वर्तमान न हो शर्मिंदा भविष्य से 
खींचनी है अब वो रूपरेखा मुझे 
जिसके आइनों की तस्वीरें धुंधली न पड़ें 
क्योंकि 
स्व की आहुति देने का रिवाज़  बंद कर दिया है मैंने   
गर हिम्मत हो तो आना मेरे यज्ञ में आहूत होने के लिए 
वैसे भी अब यज्ञ की सम्पूर्णता पर ही 
गिद्ध दृष्टि रखी है मैंने 
क्योंकि 
जरूरी नही हर बार अहिल्या या द्रौपदी सी छली जाऊं  
और बेगुनाह होते हुए भी सजा पाऊँ 
इस बार लौ सुलगा ली है मैंने 
जो भेद चुकी है सातों चक्रों को मेरे 
और निकल चुकी है ब्रह्माण्ड रोधन के लिए ................

वंदना गुप्ता 


पुरुष के नाम ......

आज झूल रही हूँ जिंदगी और मौत के बीच
जीना था मुझे, उनको और उन जैसों को देनी थी सीख और समझ
इस दिशा में करना था काम ।
मेरे आहत और टूटे शरीर के भीतर थी एक ज्वलंत जीजीविषा और दबंग मन
कि कुछ ऐसा करूं कि आगे ऐसा ना हो किसी के साथ, ना बनें हमारी छोटी छोटी खुशियां दुखभरी दास्तान ।
बताऊं उनको जो बनते हैं हमारे पिता, नेता, मार्गदर्शक, पथ प्रदर्शक
कि जब तुम ही अपना आचरण स्वच्छ न रखो, तुम ही स्त्री की इज्जत ना करो तो तुम्हारे बच्चे, और ये आम आदमी क्या सीखेंगे, किस राह पर चलेंगे ।
गलत करोगे गलत को आश्रय दोगे तो यही समाज मिलेगा और कल को तुम्हारी बहु बेटियां यही भुगतेंगी ।
माँओं को भी विनती है सिखायें बेटों को करें नारी का सम्मान ।
मेरी ये टूटी फूटी देह साथ नही दे रही मेरा, इसलिये अलविदा............ पर
जारी रखना ये संघर्ष ताकि औरत पा सके इस समाज में अपना सही स्थान और सम्मान और फिर ना हो किसी की ऐसी हिम्मत ।

 आशा जोगळेकर 

हमें शान्ति चाहिए...

हम कहते है हमें शान्ति चाहिए,
वो बोले
हमने इतना बेआबरू  तुमको  किया,
कभी छाती की छलनी
अभी सर धर लिया,
तुम अब भी शान्त हो
अब इस से ज्यादा शान्ति का भी क्या करोगे...
शान्ति नहीं तुम्हे शर्म चाहिए,
हमने कहा 
शर्म तो चली गयी बेशर्म हो...
चाहे कुछ भी हो अब शान्ति ही अपना धर्म हो...
तो हमें शान्ति चाहिए...

(कुँवर जी)

सर कटा भी है सर झुका भी है....

                  खबर है कि सीमा पर पाकिस्तान फ्लैग वार्ता करने को तैयार है... तैयार है मतलब? जिसने पड़ोसी और शान्ति के लिए बार बार पहल करने वाले स्वयंभू दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक राष्ट्र की सीमा का उयलंघन किया हो, हर तरह से बड़े और शक्तिशाली देश के एक सैनिक का सर काट लिया हो, सीमा पर युद्ध जैसे हालात पैदा किए हों, फ्लैग वार्ता भी करने को वही तैयार होता हो। भारत जैसा सक्षम देश उस देश को फ्लैग वार्ता के लिए पुकारता रहे जिसका खर्च ही विकसित देशों की चापलूसी से चलता हो।
                  सीमा पर सीज़ फायर होने के बावजूद गोलीबारी होना कोई अतिशयोक्ति नहीं है। विशेष रूप से उन दो देशों की सीमाओं पर जो आजन्म एक दूसरे के विरोधी हों गोली बारी की घटना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। आश्चर्य की बात यह भी नहीं कि एक दूसरे के जवानों को लक्ष्य कर के चलाई गयी गोली किसी सैनिक को लगे और वो शहीद हो जाए। ये अक्सर होता है और सैनिक की सेवा मे देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त करता है जो बहुत असामान्य घटना नहीं है। वास्तव मे एक देश जो हर तरह से सक्षम है, ताकतवर है और सम्प्रभु है उसकी सीमा का उलंघन करना और उसके एक सैनिक का सिर काट ले जाना पूरी तरह से उस राष्ट्र की अस्मिता पर हमला है, सीधे सीधे अपमान है... और उससे भी चिंताजनक बात यह.... कि भारत जैसे राष्ट्र के शीर्ष नेतृत्व की आँखों मे पानी की एक लकीर नज़र नहीं आती... निंदा प्रस्तावों और कड़े संदेशों की वही रटी रटाई सरकारी खानापूर्ति  देख कर आत्मा विहीन विशाल शरीर होने जैसा  भ्रम होता है।
                मनुष्य के विकास के साथ ही लड़ाइयाँ अस्तित्व मे हैं... पर सैन्य परम्परा की अपने कुछ अलिखित नियम भी रहे हैं...1992 मे रिटायर हो चुके और कारगिल को छोड़ कर भारत के साथ हुई सभी लड़ाइयों मे हिस्सा ले चुके ब्रिगेडियर राज बहादुर शर्मा बताते हैं जिस समय शान्ति वाहिनी सेना बंगलादेश मे पाकिस्तानी सेना को खदेड़ रही थी अपने सीनियर अधिकारी के साथ वो भी मोर्चे पर थे। पाकिस्तानी सेना किसी विदेशी सहायता की आशा मे समुद्र की ओर भाग रही थी। भारत की सेना की गति रोकने के लिए जगह जगह कुछ पाकिस्तानी टुकड़ियाँ सड़कें रोक कर खड़ी थीं। थ्री नॉट थ्री का ज़माना था, एक स्थान पर प्रतिरोध हटाने के लिए सैनिकों मे आमने सामने की संगीन वाली लड़ाई छिड़ गयी... उन्होने अपने अफसर के साथ देखा... कि सामने थोड़ी दूर पर ही एक पाकिस्तानी सैनिक ने एक भारतीय सैनिक के दोनों हाथ काट दिए थे... यह देख कर आफ़िसर का खून खौल उठा और इसका बदला लेने के लिए उन्होने बाकी टुकड़ियों को छोड़ कर तीन तोपों का मुंह केवल उस टुकड़ी की तरफ खुलवा दिया। उसमे बहुत से पाकिस्तानी सैनिक ढेर हुए और बहुत से पकड़े भी गए... लेकिन ऐसा नहीं हुआ, कि किसी सैनिक का हाथ काट कर या इस तरह की किसी हरकत से उनका अपमान किया जाता।

                   आज शहीद हेमराज के घरवालों को फख्र है कि बेटा सीमा पर शहीद हो गया... लेकिन उनकी मांग है मेरे बेटे का सर ले आओ... सेना मे सैकड़ों जवान कई दिन से खाना नहीं खा रहे हैं... उन्हें यह अपमान लगता है... अपनी आन पर हमला लगता है ऐसे मे देश का शीर्ष नेतृत्व खानापूर्ति करते रहने के अपने पुराने ढर्रे पर कायम है जो किसी भी तरह उचित नहीं है । सीने पर गोली खा कर शहीद हो जाना ज़रूर किसी सैनिक के लिए गर्व हो सकता है, यह एक सैनिक के लिए अप्रत्याशित भी नहीं। लेकिन इस तरह आतंकियों की तरह की धृष्टता भारत की अस्मिता पर सीधा सीधा प्रहार है और इसे बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। इस कृत्य का जवाब मजबूती से सुनिश्चित किया जाना चाहिए... और किया ही जाना चाहिए। 

पद्म सिंह 

6 comments:

  1. सीने पर गोली खा कर शहीद हो जाना ज़रूर किसी सैनिक के लिए गर्व हो सकता है, यह एक सैनिक के लिए अप्रत्याशित भी नहीं। लेकिन इस तरह आतंकियों की तरह की धृष्टता भारत की अस्मिता पर सीधा सीधा प्रहार है और इसे बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। इस कृत्य का जवाब मजबूती से सुनिश्चित किया जाना चाहिए... और किया ही जाना चाहिए।

    किया ही जाना चाहिए .... !!

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  2. इस कृत्य का जवाब मजबूती से सुनिश्चित किया जाना चाहिए... और किया ही जाना चाहिए।
    बिल्‍कुल ...

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  3. इस कृत्य का जवाब मजबूती से सुनिश्चित किया जाना चाहिए... और किया ही जाना चाहिए।
    बिल्‍कुल ...

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  4. इस कृत्य का जवाब मजबूती से सुनिश्चित किया जाना चाहिए... और किया ही जाना चाहिए।

    ....इसके अलावा और कोई विकल्प होना भी नहीं चाहिए...

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  5. किया ही जाना चाहिए।और कोई विकल्प नहीं..

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  6. रश्मिजी ...राजीव जी की कविता ने नि:शब्द कर दिया ....!
    सभी लिंक्स श्रेष्ठ थे ...यह कहने की ज़रुरत नहीं .....:)

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