अगली सदी के हैं ये ख़्वाब बेहतरीन
अपाहिजों के खेल में अंधे तमाशबीन

तारीफ़ यूँ करेंगे गूंगे भी बेहिसाब-
संसद करेगा पागलों की बात पर यकीन

भैंस से होगी बड़ी न अक्ल की दौलत-
भटकेंगे हुनर वाले अपनी ही सरजमीन

बनायेंगे यक़ीनन ऊँची ईमारतें पर-
होंगे न पास उनके आकाश या जमीन

इस मुल्क के मजदूर भी बच्चों के बास्ते-
पानी का घूँट पीकर बन जायेंगे मशीन

होंगे वही विधायक मंत्री के दावेदार-
जनता को भैंस मानकर बजायेंगे जो बीन
() रवीन्द्र प्रभात

8 comments:

  1. लाजबाव व्यंग्य रचना , यही है कड़वा सच जिसका आंशिक रूप अभी से दिखाई देने लगा है !

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  2. बहुत बढ़िया व्यंग्य, बधाईयाँ !

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  3. व्यंजल हो तो ऐसा, हम तो मस्त हो गए भैया !

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  4. बनायेंगे यक़ीनन ऊँची ईमारतें पर-
    होंगे न पास उनके आकाश या जमीन

    इस मुल्क के मजदूर भी बच्चों के बास्ते-
    पानी का घूँट पीकर बन जायेंगे मशीन
    बढिया रचना व्यंग नही ये एक कडवी सच्चाई है। धन्यवाद

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