'जिन खोजा तिन्ह पाइया गहरे पानी पैठ
जो बुरा डूबन डरा रहा किनारे बैठ '..... नहीं डरता मैं , तभी आपकी आँखों से जो रह गए ओझल उनको कुशल तैराक की तरह गोते लगाकर लाता हूँ . कहाँ किस ब्लॉग में कौन सी विलक्षणता मिल जाए - न तुम जानो , न हम ... उम्र से न सपने आंके जा सकते हैं , न सपनों को पिरोने की कला !!!
आज मैं आया हूँ गुरनाम सिहं सोढी के सपनों के साथ , वे कहते हैं -
खुशी की आँखो से देखा तो पानी के बुलबुले सी नज़र आई ज़िन्दगी, बिखरे सपनो की याद आई तो एक पहाड़ सी नज़र आई ज़िन्दगी, कभी बिखरा सपना तो कभी एक नई उम्मीद नज़र आई ज़िन्दगी, हर सुबह की किरण के साथ आई ज़िन्दगी, कभी हार तो कभी जीत नज़र आई ज़िन्दगी ..


कल और कल के बीच मैं

हर बार जब भी उदास होता हूँ,
उस गुज़रे वक्त मे खो जाता हूँ,
कुछ सोचने लगता हूँ
और धीरे धीरे मेरी सोच बिखर सी जाती है,
चीनी के कुछ दानो की तरह,
बेतरतीब, यहाँ-वहाँ,
हर जगह,
ज़रा से दाने, और कहाँ कहाँ फैल जाते हैं,

फिर सोचता हूँ कि अपनी सोच को एक दिशा दे दूँ,
कोशिश करता हूँ कि आगे ही चलूँ,
बार बार पीछे मुड़े बिना,
एक नदी की तरह,
रास्ते के हर पत्थर को सिर्फ देखते हुए,

पर उस सोच की नदी के आगे,
पुरानी यादों का एक समन्दर है,
जिस की गहराई मे पत्थर भी मोती सा चमकता है,

और मैं बस वहीं जीना चाहता हूँ,
कल्पनाओं और सपनों की गहराई मे,
किसी चमक की तलाश मे,

पर जानता हूँ कि ये जीना नहीं,
बस भटकना है; जीने और मात्र होने के बीच मे,
और फिर शुरु हो जाती है कोशिश
उस वक्त से बाहर आने की,

खुद से कहता हूँ कि उस वक्त मे कुछ खास न था,
और जानता भी हूँ कि ये झूठ नहीं,
ये तो मेरी कल्पना है जो उन दिनो को सुन्दर बनाती है,

ये आज भी भरपूर है खुशियों से,
दोस्तों से, अपनों से,
सुनहरे कल के सपनो से,

कोशिश करता हूँ आज मे जीने की,
पर फिर चला जाता हूँ आने वाले कल मे,
कैसा होगा जीवन मेरा आने वाले पल मे,

बीते कल की यादों और आने वाले कल की कल्पना के बीच,
कई बार आज को जीना भूल जाता हूँ
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पहले कौन बोलेगा?

अब तो हम रुठ गए एक दूसरे से,
जाने किस बात पे, या शायद बेवजह,
अब ना कोई बात होगी, ना कोई किसी को मनाएगा,
और इस बारे मे कोई किसी को कुछ नहीं बताएगा,
पर इक बात बताओ,

गर कहीं हम मिल गए तो?
और अगर कभी बात करनी पड़ जाए,
तो पहले कौन बोलेगा?
क्या होगी कोई नई सी बात,
या कोई पुराना किस्सा कोई खोलेगा,

क्या अन्जानो सा परिचय होगा?
या बस एक दूसरे का हाल ही पूछेँगे,
"कौन पहले झगड़ा था" इस पे शिकायत होगी,
या बिना कुछ कहे दूर रहने का सबब पूछेँगें,

तुम बस मुस्कुरा कर रह जाओगी,
या वही चपर चपर पुरानी होगी,
तुम भी सुनाओ कुछ अपनी नई बात कोई,
मेरे चुप रहने पर शायद तुम्हारी वही शिकायत होगी,

क्या एक दूसरे की नई ज़िन्दगी का पूछेगें,
या तब भी किसी तीसरे का ज़िक्र बीच में आएगा,
तुम पूछोगी कि कविता लिखने के लिए कोई प्रेरणा मिली,
और मैं बस हँस के रह जाऊँगा,

डरता हूँ कहीं यूँ तो न होगा,
आँखों में खालीपन और लबों पे नक्ली मुस्कान हो,
कहीं हम इधर उधर ही देखते रहें,
या शायद किसी बहाने से कतरा कर निकल जाने का इन्तज़ार हो,

पर जानता हूँ ऐसा नहीं होगा,
हम दोस्त हैं, एक दूसरे से अन्जान नहीं,
रुठ गए तो मिलने पर बात भी ना करें,
इतने भी हम नादान नहीं,

पर सोच रहा हूँ,
अगर कभी बात करनी पड़ जाए तो,
तो पहले कौन बोलेगा????
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गुरनाम सिहं सोढी
http://aapkamitrgss.blogspot.com/



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गुरनाम सिंह सोढ़ी की इन दोनों अभिव्यक्तियों के बाद आईए चलते हैं कार्यक्रम के दूसरे चरण में कुछ मनमोहक रचनाओं की  महक के बीच :


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इसी के साथ आज बाईसवें दिन का कार्यक्रम संपन्न हुआ, कल उत्सव में अवकाश है, मिलते हैं परसों यानी २९ जुलाई को सुबह ११ बजे परिकल्पना पर , तबतक शुभ विदा !

11 comments:

  1. गुरनाम जी की दोनो ही कवितायें बेहद शानदार हैं।

    जवाब देंहटाएं
  2. सटीक लेखन,शानदार कवितायें......बधाईयाँ !

    जवाब देंहटाएं
  3. सचमुच ऐसा उत्सव अंतरजाल पर पहली बार देखा है, गज़ब का संयोजन और संचालन देखकर हतप्रभ हूँ !

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  4. यह प्रस्तुति भी खूब रही, बधाई आप सबों को !

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  5. गुरनाम जी के लाजवाब रचनाएं पढ़ कर स्तब्ध हूँ ... कमाल का लिखते हैं वो ...

    जवाब देंहटाएं
  6. अनुपम और अद्वितीय है ये रचनाएँ , आभार !

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  7. सुन्दर और शानदार प्रस्तुति !

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  8. दोनो ही रचनाएं बहुत अच्‍छी लगी ...प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर कवितायें हैं....
    पर सोच रहा हूँ,
    अगर कभी बात करनी पड़ जाए तो,
    तो पहले कौन बोलेगा????

    एक शेर याद आ रहा है...
    "दुश्मनी जम के करो, मगर इतनी गुंजाइश रहे,
    फिर कभी दोस्त बने तो शर्मिन्दा न होना पड़े."

    सादर बधाई और आभार...

    जवाब देंहटाएं
  10. पर उस सोच की नदी के आगे,
    पुरानी यादों का एक समन्दर है,
    जिस की गहराई मे पत्थर भी मोती सा चमकता है,

    खुद से कहता हूँ कि उस वक्त मे कुछ खास न था,
    और जानता भी हूँ कि ये झूठ नहीं,
    ये तो मेरी कल्पना है जो उन दिनो को सुन्दर बनाती है

    जवाब देंहटाएं

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