मैं समय हूँ, ब्लोगोत्सव की कार्यवाही चल रही है और मैं सारे स्वर-व्यंजन के साथ पूरी गतिविधियों पर नज़र रख रहा हूँ . उत्सव गीत के साथ आज के कार्यक्रम का समापन हो रहा है . सभी अतिथियों को मंच पर बुलाया गया है, ताकि पूरा समूह उत्सव की अनुभूति से सराबोर हो सके .रचयिता: डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" के इस उत्सव गीत को स्वर दिया है श्रीमती अमर भारती ने....
आईये आप भी इस गीत को स्वर दीजिये मेरे साथ -यहाँ क्लिक करें


और आईये इस सन्देश के साथ समापन करते हैं हम आज के कार्यक्रम का -

!! मातृ-भाषा के प्रति - - भारतेंदु हरिश्चंद्र !!

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।

अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन ।

उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय ।

निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय
लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय ।

इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग
तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग ।

और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात
निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात ।

तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय
यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय ।

विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार ।

भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात
विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात ।

सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय
उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय ।

() () ()

हमें गर्व है हिंदी के इस प्रहरी पर ....यहाँ क्लिक करें

इसके साथ ही आज के कार्यक्रम का समापन हो रहा है , कल अवकाश का दिन है .....मैं पुन: उपस्थित होऊंगा परसों यानी दिनांक १७.०४.२०१० को प्रात: ११ बजे परिकल्पना पर .....तबतक के लिए शुभ विदा !

9 comments:

  1. हमारे जो साथी आज समयाभाव अथवा अन्‍य व्‍यस्‍तताओं के चलते न तो पढ़ पाए हैं, न सुन ही पाए हैं और न ही अपने विचार बतला पाए हैं। उनके लिए कल का पूरा दिन है। आप तन्‍मयता से पढि़ए और अच्‍छी बातों के अतिरिक्‍त अपने सुझाव और सलाह से भी इस टिप्‍पणी कॉलम को सुस‍ज्जित करिएगा।

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  2. समापन के बाद अब आप इसका पूरी सूक्ष्‍मता से मापन कर सकते हैं।

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  3. अच्छा चल रहा है। मेहनत झलकती है प्रयत्न में।
    सार्थक सामाजिकता दिखती है इस में!

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  4. इस शुभ प्रयत्न के लिए आपकी जितनी तारीफ की जाए, कम है।

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  5. प्रथम दिन का उत्सव सम्पूर्ण गरिमामय रहा ! ज्ञानजी की उक्ति महनीय है इस उत्सव के लिए - "सार्थक सामाजिकता दिखती है इसमे।"
    उत्सव के अगले दिन की प्रतीक्षा !

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  6. शानदार रहा आज का आयोजन...मयंक जी की बात निराली/

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आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

 
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