Latest News



अच्छा लगता है एक विराम के बाद आना कभी इनसे मिलना कभी उनसे ... एक से बढ़कर एक हैं सब और सबसे बढ़कर रवीन्द्र प्रभात जी , जो देश विदेश से सबको पारखी की तरह ढूंढकर ला रहे हैं ! कोई भी पूजा हो, यज्ञ हो ... सबके साथ के बाद कुछ रह ही जाता है , पर रवीन्द्र जी घबराते नहीं ! कहते हैं कि नाव चलाना हर नाविक को आता है, पर असली नाविक वह है , जो भंवर से बाहर निकल लाए .... साहित्य के मंच पर रवीन्द्र जी ने एक कुशल नाविक का परिचय दिया है . आरसी प्रसाद सिंह की रचना , जो हमेशा मेरी जुबान पर रही , रवीन्द्र जी ने उसके शब्द शब्द को अपने व्यवहार में उतारा है -


' न पड़ता दिखाई यदि हो किनारा
अगर हो गई आज प्रतिकूल धारा
क्षुधित व्याघ्र सा क्षुब्ध सागर गरजता
अगर अंध तूफ़ान कर ताल बजता
अरे शोक मत कर समझ भाग्य जागे
उड़ा पाल माझी बढा नाव आगे ... ; 


चलिए इस प्रेरक प्रसंग के साथ हम कुछ जाने माने रचनाकारों की प्रेरक पंक्तियाँ सुनें , तो सबसे पहले
चलिए मोना एस कोहली से सुनते हैं ... मोना जिसे बाबुशा के नाम से सब जानते हैं --

ज़िंदगी,

चलती है अपनी ही चाल॥

इसने मुझे सुना नही
मैंने इसे बुना नही,

कलेजे से चिपके रहे कितने मलाल ॥

हर रोज़ सुबह आती रही
हर शाम सुबह जाती रही,

हम ही टिके हैं बड़े हैं अलाल॥

रंगों की रंगीनी के कई दीवाने
रंगों की बातें चितेरे ही जाने,

हमने तो देखे हैं काले गुलाल॥

ज़मीन के फकीरों की जन्नत की बातें,
सितारों का मंज़र,हसीं चाँद रातें ...

ग़ालिब को खुश रखता था ये ख़याल॥

न दो जून रोटी, बदन पे न कपड़े
मिटटी के घर और छत पे हैं खपड़े

खुदा के जहाँ में हैं ऐसे भी हाल ॥

भ्रम है क्या पत्थर और क्या है हीरा ?
क्यों चक्की देख के रोये कबीरा,

बड़ा ही पेचीदा है ये सवाल॥

आँगन में कितनी ही यादें पड़ी हैं
हर एक घर में फ़िर भी दीवारें खड़ी हैं ,

रिश्तों ने झेले हें कितने अकाल ॥

अब तो दुकानों में बिकती हैं खुशियाँ,
बिकते हैं सच और बिकती है दुनिया -

खड़े हर गली में कितने दलाल !!

चाहे अल्लाह बोलो चाहे राम बोलो
बहा खून हर दम कोई नाम बोलो,

क्यों नाम पर यूं मचा है बवाल ॥




इनके बाद सुनिए एस.एम् हबीब क्या कहते हैं -

"सकारात्मकता ही जीवन ऊर्जा का स्त्रोत है" एक घटना याद आती है, एक शाम यूँ ही छत में बैठा हुआ था कि पास के पीपल वृक्ष से एक पीत वर्ण पत्ता पवन के साथ बहता मेरी गोद में आ गिरा... जाने क्यूँ मुझे उस टूटे पत्ते में "जीवन ऊर्जा" का स्त्रोत नजर आया.... वह टूटा हुआ पत्ता मुझे अपनी आप बीती सुनाता हुआ सा प्रतीत हुआ.... वही आपके समक्ष निवेदित है...

'पर्ण-कथन'

तरु से टूटा मैं एक पर्ण
हुआ पृथक, खोया निज वर्ण
था एक समय, मेरी गति से
संगीत समीर में घुल जाता,
था दूर दूर से वृन्द खगों का
ताल मिलाने उड़ आता,
होता था तब जीवन मेरा
उल्लासमय प्रतिपल, प्रतिक्षण
सर सर की जब मैं डोल-डोल
ध्वनि नभ में था बिखराता
मेरे तानों में मस्त झूम
स्वर में सुमधुर दस दिस गाता
प्रफुल्लचित्त तब प्रकृति का
हो जाता था सम्पूर्ण चरण...
फिर घुमा यह काल-चक्र
औ’ वय के एक ही झोंके से
छीना मुझसे अस्तित्व मेरा
इस क्रूर नियति ने धोखे से
मेरा था तब चीत्कार उठा
विलग मातृ से हो कण कण...
अब इस दुनिया की खातिर
मैं केवल पत्ता टूटा हूँ
यदि विश्वास दिलाने का
करता प्रयत्न तो झूठा हूँ
सृष्टी तो है समझी बैठी
कर लिया मैंने है मृत्यु वरण
बतलाऊं भी तो मैं किसको
समझाउंगा यह सत्य अटल
जननी से होकर दूर सदा
होते हैं बंद ना प्राण पटल
सच है जीता हूँ थलग-अलग
हुआ मैं किन्तु असक्त नहीं
रचना मुझको है नव विधान
कह् दूं मैं विधि का भक्त नहीं
आज नहीं तो कल कहना है
दुनिया ने मुझको दूजा कर्ण...
तरु से टूटा मैं एक पर्ण
हुआ पृथक खोया निज वर्ण.




ब्रह्मांड की धुरी से भरत तिवारी जी के एहसास .....

कहीं कोई सिरा अधूरा नहीं

ब्रहमांड के अंग
गिने नहीं
समा गया
रचना जब विधाता की हो
तो उसका आदि अन्त कहाँ
कल्पना की सीमा के विस्तार के कई अंतों के बाद
कई प्रकाश वर्षों के अन्त के अन्त में
मैं कहीं ये लिख रहा हूँ
वो वहाँ से लिखा रहा है
आप यहाँ लिखा देख रहे हैं
उसके जाल मे उलझन नहीं है
कोई अटकन नहीं
कहीं कोई सिरा अधूरा नहीं
सब जुड़े हैं
सारे सन्देश अंतर से वहाँ उसके पास जा रहे निरंतर
वो ही करा देता है विनाश
वो ही बचा सकता है
वो ही करा सकता है द्वेष
प्रेम वो खुद है
असंख्य ब्रह्मांड मे फैला प्रेम
वो रास्ता है जो उस तक जाता है
उसको चुन कर हम उस तक पहुँचे
मनुष्य योनी वो देता है सिर्फ इसलिए |
......

भरत तिवारी



और आखिर में मन का आईना लिए अंजू चौधरी हमारे बीच हैं -


मन का आईना


मन के आईने में किस किस बात को याद रखोगे

मस्ती कि धुन में नाचता बचपन ...या
हो रिश्तो कि आड़ या..मजबूरियों का बंधन
हालातो से बंधे इस मन का क्या नाम रखोगे
जीवन है समझोता या किसी व्यापारी का है सौदा
आ गई आंधी रिश्तो में भेदभाव की
क्या तुम अब इसकी भी जंग लड़ोगे ?

संस्कारों का हुआ है मालिया मेट यहाँ
जो करता है हकीकत बयाँ यहाँ
यहाँ कुर्सी तो नहीं ..बटवारे की बात जरुर रखोगे
कौन कौन सी बात याद रखोगे
जब से बदल है खून के रिश्ते ...
क्या तुम अब उस सच का आईना भी तोड़ोगे ?

क्या बाद उन्हें पानी का नाम दोगे?
टूटी यादे ...बढती प्यास
ना पूरी होती इच्छाएँ ...
टूटा आईना क्या हर वक़्त अपने साथ रखोगे ?
मन के आईने में किस किस बात को याद रखोगे ........

(..अंजु चौधरी ..(अनु..))..


========================================================================
चलिए अब चलते हैं कार्यक्रम स्थल की ओर जहां दूसरे चरण के कार्यक्रमों की जानकारी दी जा रही है , जो इसप्रकार है :


इसी के साथ देते हैं आज के कार्यक्रमों को विराम, कल फिर उपस्थित होंगे सुबह ११ बजे परिकल्पना पर, तबतक के लिए शुभ विदा ! 

15 comments:

  1. सभी रचनाएं बेहतरीन भाव लिये हुये ..रचनाकारों को बधाई के साथ शुभकामनाएं ..।

    जवाब देंहटाएं
  2. परिकल्पना एक नये आयाम गढ रही है…………आज का अन्दाज़ और रचनाकार दोनो बहुत पसन्द आये।

    जवाब देंहटाएं
  3. सभी रचनाकारों की गहन रचनाएँ ... सुन्दर रचनाओं को पढवाने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. हिंदी ब्लॉगजगत की खुबसूरत कल्पनाओं में से एक है यह परिकल्पना, अनुपम प्रस्तुति !

    जवाब देंहटाएं
  5. ब्लॉगोत्सव अपने लक्ष्य को प्राप्त करे, यही है शुभकामनाएं !

    जवाब देंहटाएं
  6. मस्त रचनाएं है, हबीब भाई से तो कल ही मुलाकात हुई थी, "काफ़ी विद हबीब"

    जवाब देंहटाएं
  7. बाबुशा को पढना हमेशा अच्छा लगता है... नई संवेदना की कविता लिखती हैं वे.... अनु जी कि कविता भी बेहतरीन है... मन को आइना दिखा देती है... इन कविताओं से परिकल्पना समृद्ध हो रही है...

    जवाब देंहटाएं
  8. shaandaar Rachnayen...vishesh tour se Bharat Tiwari ji ki rachna sochne per vivash karti hai....Sadhuwad.....

    जवाब देंहटाएं
  9. हम तो सुंदर कविताओं के भंवर में फंसे है :)

    जवाब देंहटाएं
  10. सुन्दर कवितायें एक साथ पढ़ने को मिल। आभार।

    जवाब देंहटाएं

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

:) :)) ;(( :-) =)) ;( ;-( :d :-d @-) :p :o :>) (o) [-( :-? (p) :-s (m) 8-) :-t :-b b-( :-# =p~ $-) (b) (f) x-) (k) (h) (c) cheer
Click to see the code!
To insert emoticon you must added at least one space before the code.

 
Top