सच के रूप अलग अलग होते हैं , रख दो खुलकर तो कई एहसास थरथरा उठते हैं ....



मां जब तुम थोड़ा डरती हो और तुम्हारा दिल धक से रह जाता है तो शर्मीला टैगोर जैसी लगती हो। तुम्हारी आंखें और आंचल भी उसी जैसा लगता है। प्रकाश तुम्हारी आंखों से परावर्तित होकर ज्यादा चमकदार लगती है। पापा को शक हो न हो मुझे हमेशा लगता रहा है तुम पर कोई दूसरे घर की बालकनी से कोई आइना चमकाता रहता है। मेरी आंखें चैंधिया जाती हैं मां। हां ये सच है कि सबसे टपका तो मां पर अटका। अपनी शादी के लिए दसियों लड़की से प्रेम करने, और तमाम लड़कियों को जानने के बाद मैं भी पापा की तरह ही तुम्हें चिठ्ठी लिख रहा हूं कि तुम्हारे जैसी नहीं मिल रही।

ऐसा नहीं था कि मिलने वाली बुरी हैं बल्कि वो बेमिसाल हैं। नहीं-नहीं तुम्हें बहलाने के लिए ऐसा नहीं कह रहा, ना ही अपनी नादानी परोस रहा हूं। गहराई से बेसिक सा अंतर बतला रहा हूं कि उनकी आवाज़ में खनक तो था पर झोले में सूप से झर-झर गिरते गेहूं जैसी आवाज़ का रहस्य नदारद था। लड़कियां मिली जिन्होंने प्यार दिया लेकिन किसी ने अपने जुल्फों को सहलाते हुए यह नहीं कहा कि सैंया भोर को होने दे, तू तो रात बन कर मेरे साथ रह।

मां कोई तुम जैसा बहरूपिया नहीं मिला। गाए जा चुके गीत के बाद की लम्बी चुप्पी ना बन सका। मैं भी नहीं। हर बार दोहरा लिए जाने के बाद भी मरना मुकम्मल चाहा लेकिन चीख की गुंजाईश बनी रही। हम प्रेम में भी थे और उससे बाहर भी लेकिन होना हर बार सिर्फ प्रेम में चाहते रहे। यही वजह रहा कि मैं ता-उम्र प्रेम में रहा।

मां मैंने बहुत कोशिश की, गली-गली की खाक छानी, पहाड़ में रहने वाली लड़की हो या सरकारी स्कूल में गिनती से दसवीं तक पढ़ने वाली जिसके कि मां बाप पहले ही सोच चुके थे कि यह हाई स्कूल नहीं जाएगी उससे तक प्रेम किया। लड़की तो क्या मैंने शराब तक से प्रेम की और आदतन तुम जानती होगी कि मैं इन शर्तों के बाद कैसे जिया होऊंगा। तुम्हारे जमाने में धमेंद्र चुन-चुन कर मारता था, लोग खोज खोज कर बदला लेते हैं। मकान मालिक किराया बढ़ाने का मौका तलाशता है। बाॅस एवज में एक्ट्रा काम लेने का सोचता है। सरकार गैस, डीजल से लेकर पानी तक का दाम बढ़ाने बैठी है। सभी अवसर की तलाश में हैं। मुझे कोई हड़बड़ी नहीं। मैं किसी महान लक्ष्य के लिए पैदा भी नहीं हुआ। तुम्ही बताओ मैंने अपने स्कूली दिनों में भी - नन्हा मुन्ना राही हूं, देश का सिपाही हूं कभी गाया ? नहीं गाया ना। मैंने भी केवल प्रेम किया है।

ईश्वर में हमारे जड़ों में दुख कुछ वैसे ही डाला जैसे तुम बड़ी श्रद्धा से सीधा आंचल कर तुलसी में जल देती हो। मैं लाख अभागा सही लेकिन तुम शर्मीला टैगोर की तरह दिल पर हाथ रख कर कह सकती हो कि तुम्हें मेरी यह तारीफ पसंद नहीं आई? आखिर तुम भी एक लड़की हो। एक उम्रदराज़ खूबसूरत औरत जिसके अंदर एक लड़की के अनगिनत ख्वाब पोशीदा है।... ना-ना आज मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिए। हालांकि मैं शादी की उम्र का हो गया हूं फिर भी। तुम ये भी मत समझना कि मैं अपने बड़े हो जाने का सबूत तुम्हारे ही साथ फ्लर्ट करके दे रहा हूं।

सची माता गो, आमि जुगे जुगे होई जनोमो दुखिनी।
सागर
http://apnidaflisabkaraag.blogspot.com/




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सागर की इस सारगर्भित अभिव्यक्ति के बाद आइए चलते हैं उत्सव की ओर :


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इसी के साथ आज का कार्यक्रम संपन्न, मिलते हैं कल ११ बजे पुन: परिकल्पना पर, तबतक के लिए शुभ विदा !

8 comments:

  1. अब तो केवल परिकल्पना की ही धूम है चहूँ और, हार्दिक बधाईयाँ !

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  2. सचमुच लाजवाब है परिकल्पना की प्रस्तुति,साधुवाद !

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