मैं समय हूँ !

मैंने कहीं चिटठा चर्चा करते  अनूप शुक्ल को देखा है तो कहीं उड़न तस्तरी प़र सवार होकर ब्लॉग भ्रमण करते समीर लाल  को ....कहीं सादगी के साथ अलख जगाते  ज्ञान दत्त पांडे को देखा है तो कहीं शब्दों के माया जाल में उलझाते अजित वाडनेकर को .......कहीं हिन्दी के उत्थान के लिए सारथी का शंखनाद तो कहीं मुहल्ला और भड़ास का जिंदाबाद ......कारवां चल रहा है लोग शामिल हो रहे है और बढ़ता   जा रहा है दायरा हिन्दी का कदम-दर कदम .....!


इस कारवां में शामिल रहे है उदय प्रकाश , विष्णु नागर , विरेन डंगवाल , लाल्टू , बोधिसत्व और सूरज प्रकाश जैसे वरिष्ठ साहित्यकार तो दूसरी तरफ़ पुण्य प्रसून बाजपेयी और रबिश कुमार जैसे वरिष्ठ पत्रकार ....कहीं मजबूत स्तंभ की मानिंद खड़े दिखे है मनोज बाजपेयी जैसे फिल्मकार तो कहीं आलोक पुराणिक जैसे अगड़म-बगड़म शैली के रचनाकार ......कहीं दीपक भारतदीप का प्रखर चिंतन दिखा है तो कहीं अरविन्द मिश्र के विज्ञान कथा का अजीबो गरीब संसार ...कहीं रेडियो वाणी का गाना तो कहीं कबाड़खाना ....

मगर हिंदी चिट्ठाजगत में एक ऐसा भी व्यक्ति है जो व्यक्तियों  से ऊपर है ...जिसमें समाहित है पूरा अंतरजाल ...जो अंतरजाल पर अपना सार्थक हस्तक्षेप ही नहीं रखता अपितु ज्ञान बाँटते चलो की निति का अनुसरण भी करता है , नाम है रवि रतलामी

मैं समय हूँ !

ब्लोगोत्सव-२०१० के चौथे दिन  उस समर्पित चिट्ठाकार को उपस्थित होते देख रहा हूँ ...रवीन्द्र प्रभात के हर प्रश्नों पर वेवाक राय देते हुए !




 मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद


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