कभी - कभी व्यक्ति विवश हो जाता है जब परिस्थितियाँ प्रतिकूल हो जाती है . कुछ ऐसा ही हुआ आज हमारे साथ . उत्सव का चौथा दिन था सुबह श्री रवि रतलामी जी के साक्षात्कार के साथ आज के कार्यक्रम की शुरुआत हुई . तबतक सबकुछ सामान्य था जैसे ही श्री अरविन्द श्रीवास्तव जी का आलेख प्रकाशित हुआ बिजली चली गयी . इनवर्टर से उस दौरान अन्य प्रक्रिया तो पूरी कर ली गयी, किन्तु उसके बाद की प्रक्रिया पर अवरोध उत्पन्न हुआ, जिसका मुझे खेद है!

बाद में जब इतनी देर बिजली जाने का कारण जानना चाहा तो पता चला कि ट्रान्सफार्मर जल जाने के कारण ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई ! खैर अब बिजली आ गयी है और आज के तमाम पोस्ट प्रकाशित किये जा चुके हैं इसलिए बिना किसी भूमिका के शेष कार्यक्रम का लिंक दिया जा रहा है ताकि आपको कोई असुविधा न हो !

  • रवीन्द्र प्रभात

आज के शेष कार्यक्रम के लिंक इसप्रकार है -
 

इसी के साथ आज का कार्यक्रम संपन्न, मिलते हैं पुन: तरोताजा होकर दिनांक २३.०४.२०१० को प्रात: ११ बजे परिकल्पना पर ....तबतक के लिए शुभ विदा !

3 comments:

  1. आपकी मेहनत के आगे इस छोटी मोटी बाधा कोई अर्थ नहीं रखती .. अच्‍छे लिंको के लिए शुक्रिया !!

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  2. himanshu ji ki kavita ' शायद आज मैं मिलूँगा तुमसे' बहुत अच्छी लगी. परिकल्पना पर रवीन्द्र जी का प्रयास वाकई बहुत बड़ा है. नतमस्तक हूँ.

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