बँगला काव्य की मधुरता का कोई सानी नहीं। साहित्य का नोबल पुरस्कार पाने वाले भारत के अकेले कवीन्द्र रबिन्द्रनाथ ठाकुर बंगलाभाषी ही थे।  वे विश्व के ऐसे अकेले कवि हैं जिनकी रचनाओं को दो देशों का राष्ट्रीय गान बनने का सम्मान प्राप्त हुआ है।

यह तो हुई एक जानकारी, इसके साथ हम नित्यानंद गायेन की बंगाली रचना से मुखातिब होंगे, जिसका अनुवाद श्रीमती सरोज सिंह ने किया है - 




कैनिंग नदी

ক্যানিং নদী (मूल रचना )
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ক্যানিং নদী মোজে গেছে 
দু ধারে অসংখ মানুষের বসবাস 
দাদু বলতেন 
এক সময় এই নদী নাকি ছিল খুব রাগী ,
দুরন্ত। 
আসত যখন জোয়ার 
মনে হত 
আসছে সেই অহঙ্কারী ইংরেজ অফিসার 
লার্ড ক্যানিং 
এক মাতালের মত 
তাই এর নাম ছিল মাতলা নদী 
এখন আর সেই রাগ নেই 

বুড়ো হয়ে গেছে 
ভাটা পড়লে দেখা যায় তার তলে পাঁক 
ধসে যায় নৌকো 
কাপড় গুছিয়ে পার করে তাকে সব 
নদী ও বুড়ো হয়ে যায় গো মানুষের মতো
কত -কত মাছ , চিংড়ি 
কত -কত জলীয় জীব বাস করতো আগে 
তুমি তো ছিলে সুন্দর বনের জীবন রেখা 
মেলা লাগতো 
ছেলে -মেয়ে , বউ , মা , বাবা 
সবাই আসতেন 
মাঝিরা খেয়া টানতেন 
ফুল , প্রদীপ , বাতাসা দিয়ে 
তোমার পূজা করতেন 

আমি বুঝলাম 
তোমার অবস্থা 
আর মানুষের গল্প এক হি 
তুমি সুখিয়ে যাচ্ছ 
আমি পাচ্ছি অসীম বেদনা 
আমি দেখতে চাই আবার 
তোমার সেই যৌবন। ... ......................................"নিত্যানন্দ গায়েন"



कैनिंग नदी (अनुदित )
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कैनिंग नदी सूख गई है 
दोनों किनारों पर है 
असंख्य लोगों का बॉस-बसेरा 
दादू बताते थे 
एक समय, इस नदी की नाक पे गुस्सा बसता था 
बेकल 
जब भी ज्वार आता 
लगता मानो 
आ रहा है, वही अहंकारी अंग्रेज अफसर 
लार्ड कैनिंग 
एक माताल की तरह 
तभी इसका नाम था 'मातला' नदी 
वैसा गुस्सा अब और रहा नहीं

बूढ़ी हो गई है 
भाटा पड़ते ही उसके तल पर देखा जाता है पंक 
धंस जाती है नौका 
कपड़े बचाकर उसे पार करते हैं सब 
नदी भी मनुष्य की तरह बूढ़ी हो जाती है 
पहले कितनी-कितनी मछलियाँ, झींगे 
कितने-कितने जलीय जीव उसमे वास करते 
तुम तो सुन्दर वन की जीवन रेखा थी 
मेला लगा करता था 
लड़के-लड़कियां, बहु, माँ-बाबूजी 
सभी आते थे 
नाविक-गण नौका खींचते 
पुष्प, प्रदीप, बताशा अर्पित कर 
तुम्हारी पूजा करते

मैं समझ गया 
तुम्हारी अवस्था 
और मानव-कथा, एक ही है 
तुम सूखती जा रही हो 
मैं पा रहा हूँ असीम वेदना 
मैं देखना चाहता हूँ पुन:
तुम्हारा वही यौवन


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मूल रचना :- नित्यानन्द गायेन , हिंदी अनुवाद :- सरोज सिंह 








इसी के साथ आज का कार्यक्रम संपन्न, मिलती हूँ कल फिर सुबह 10 बजे परिकल्पना पर....

9 comments:

  1. बहुत बढ़िया अनुवाद प्रस्तुति हेतु आभार!

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  2. अनेकता में एकता का रूप देखने को मिल रहा है ।सभी भाषाओँ के कवियों को पढ़ना रुचिकर लग रहा ।

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  3. नित्यानद मेरे प्रिय कवियों में से एक है . उनसे मिलना अब तक संभव नहीं हो पाया है , पर वो लिखते अचूक है . उन्हें और अनुवादक को दिल से बधाई .

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  4. बहुत ख़ूबसूरत रचना.. बांगला रचना पढने का अवसर बहुत दिनों बाद मिला.. अनुवाद भी उतना ही सुन्दर है जितनी मूल रचना!! दोनों को बधाई!!

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. वाक़ई सच कहती है रश्मि जी बांग्ला कविता की मधुरता का कोई सानी नहीं ....और वो भी भाई नित्या की हो तो भावों की बहुलता उत्पन्न हो जाती है !! चिर स्मरणीय रचना है यह तुम्हारी !!

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  7. रश्मि प्रभा जी का दिल से आभार . आप सभी मित्रों के प्रति भी मैं आभार प्रकट करता हूँ .
    -नित्यानंद गायेन

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