ओह्हो, कितना गुरुर होता है खुद पर 
जब पान के इक्के सा कोई लिखनेवाला मिल जाता है 
हर बाजी उसकी 
और जीत हमारी  … मेरा मतलब कि पढ़नेवाला सुकून से भर उठे तो लिखनेवाला और लिखने को उद्दत होता है।  तो गुज़ारिश है किशोर दिवसे से कि लिखते जाएँ, बस लिखते जाएँ  … 


Kishore Diwase के  ब्लॉग की कुछ झलकियाँ हैं परिकल्पना रंगमंच पर  … 



इश्क कीजै फिर समझिए जिंदगी क्या चीज है ....

न जाने क्यों अपने देश में सहज प्यार पर सेक्स की दहशत सवार होती है!सौन्दर्य की उपासना या आसान से दोस्ताना रिश्ते या तो सहमे हुए होते हैं या फिर उस प्रेम के भीतर "आदिम भूख "चोरी छिपे सेंध लगाने लगती है.दरअसल शुरुआत ही गलत होती है.प्यार और सेक्स को अलग रखकर सोचा  ही नहीं जा रहा है.इसलिए घरेलू रिश्ते तो घबराहट की सीमा में नहीं आ पाते लेकिन बतौर प्रशंसा दर्शाया गया प्यार भी रिश्ते की तलाश करने की हड़बड़ी पैदा कर देता है.आसन सा जुमला है इन दिनों कहने के लिए ,"बड़ा ख़राब समय है "लेकिन कुछ हद तक भरोसे के संकट के इस दौर में स्त्री-पुरुष का हर आयु वर्ग असुरक्षितता की भावना के जबरदस्त चक्रवात में उलझा हुआ है.
            चलते-चलते यूँ ही किसी कार्ड गैलरी में रखे वेलेंटाइन डे के रंगीन कासिदों पर  अपने दद्दू की नजर पड़ते ही उनका दिमाग हरकत में आने लगता है,"यार अखबार नवीस !क्यूँ इतना हौवा बनाकर रखा है ...इतना असह्जपन क्यूँ है?"
                          हम लबों से कह न पाए हाल-ऍ-दिल कभी 
                           और वो समझे नहीं ख़ामोशी क्या चीज है 
जगजीत सिंह के बोल का सम्मोहन तोड़कर मैं बाहर आता हूँ,"दरअसल प्यार के प्रदर्शन को समझने की शुरुआत ही गलत तरीके से करते हैं..... सो स्वीट आफ यु ... आई लव यु...या आई लव यु आल ... चुम्बन या फ़्लाइंग किस भी अपनापन दर्शाने का नव-आधुनिक अंदाज है.यह मात्र किसी की अच्छाई,खासियत के प्रति सराहना का रिश्ते की गहराई के आधार पर व्यक्त किया जाने वाला छुआ या अनछुआ प्रदर्शन है.किसी भी लिहाज से इसे शारीरिक अंतरंगता की हद तक जाकर सोचना मूर्खता होगी."
                           प्यार एक इबादत है..पूजा... एहसास...समर्पण...जूनून... सेन्स आफ अप्रीसिएशन तथा तहे दिल प्रशंसा की अभिव्यक्ति है.यह नामदार रिश्तों से शुरू होकर अनाम रिश्तों को छूती है....ईश्वर की आराधना  कर प्रकृति के अंग -प्रत्यंग को सहलाकर सूफी समर्पण के साथ -साथ समूची मानवता को बाहुपाश में लेता है यही प्यार.तब प्यार का चरम ,सेक्स की दिशा में जाने की बात समझना या ले जाना दिमागी दिवालियापन है.प्यार का सेक्स संबंधों में रूपांतरण विवाह के जायज रिश्ते की जरूरत बन सकता है लेकिन बुनियाद कभी नहीं.
                          बे इश्क जरा आदमी की शान ही नहीं 
                          जिसको न होवे इश्क वो इंसान ही नहीं
यक़ीनन वो इन्सान ही नहीं जिसने इश्क के रंगों को ... उसके अलहदा चेहरों को पहचाना ही नहीं  और न ही एहसास किया."हे री मैं तो प्रेम दीवानी" कहने वाली मीरा का कृष्ण के प्रति समर्पण इश्क का सूफियाना अंदाज है.बुल्लेशाह,ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती ,बाबा फरीद,निजामुद्दीन औलिया और कई सूफी संत हैं जिन्होंने कहा,"ईश्वर के प्रति इश्क समर्पण की परकाष्ठा है और कुछ भी नहीं पीड़ित मानवता के दुःख-दर्द का निवारक है यह इश्क.!"
                             इश्क ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया 
                               वर्ना हम भी आदमी थे काम के 
गलत है....प्रेम पहले अँधा होता था ,अब नहीं."डोंट फाल इन लव "  बात यूँ होनी चाहिए कि प्रेम कि भावना आपको बेहतर इंसान बनाए,"राइजिंग इन लव".हाँ,वेलेंटाइन डे को अपने दद्दू बिलकुल बुरा नहीं मानते.उनका सिर्फ इतना ही कहना है नौजवान दोस्तों से के "यारों!किसी का दिल मत दुखाना....प्यार का इजहार दिलों को जीतने के लिए होना चाहिए ,दिलों को ठेस पहुँचाने के लिए नहीं.यह तो किसी के प्रति प्यार दिखाने का महज प्रतीक है इसे शालीनता और अक्सेपटेंस चाहिए ... फूहड़ता या वाहियातपन  या जबरदस्ती नहीं.जरा सोचें कि मिठास भरी यादें मिली या कसैलेपन का अहसास!वेलेंटाइन डे को सिर्फ रूमानी इश्क समझने वालों को यह ख्याल रहे कि,"  It's beautiful necessity of our nature is to love something ".   सच्चा प्यार उन भूतों क़ी तरह होता है जिसके बारे में बातें तो ह़र कोई करता है पर बहुत कम लोग उसे देख ,महसूस और समझ पाते है.

                     मैं भी अपने मन में कभी-कभी यही सोचने लगता हूँ ,"नहीं है मुझे संपत्ति क़ी हवस ... न मैं भूखा हूँ सम्मान का....न खुशियों  में ही हमेशा डूबता रहूँ....मैं तो बस इतनी ही ख्वाहिश रखता हूँ... यही गुजारिश है कि मेरे दिल में इतना प्यार हो कि मैं लोगों को और लोग मुझे हमेशा प्यार करते रहें ... हमेशा... हमेशा...हमेशा...


एक चेहरे पे कई चेहरे लेते है लोग

" शेख चिल्ली कही के ... तेरी ओकात क्या है?अगर तुझमे इतनी ही हिम्मत होती तब खुद को छिपा कर मुझे काहे ओढ़ लेता !"" देख बकवास मत कर... बेगैरत होंगे तुझे ओढने वाले ... मै नहीं फटकता तेरे पास जरा भी. भला किसको नहीं मालूम के अगर किसी ने तुझे नोच लिया तब सब कुछ उजागर हो जायेगा.... दूध का दूध और पानी का पानी...."
चेहरे और मुखोटे के बीच अंतर द्वन्द चल रहा था.दोनों ही एक दुसरे को हीचा दिखने पर तुले हुए थे.मुखोटा अपने बहुमत की वजह से दम्भोक्ति कर रहा था और चेहरा मायूसी के सदमे से कुछ पल के लिए पहले मुरझाता फिर अपनी देह के अंतर ताप से ओजस्वी बनकर प्रखर हो उठता.
" मुझे नहीं, .. शर्म तो तुझे आणि चाहिए, यह तो मेरी जिंदगी की व्यावहारिक मजबूरी है जो मुझे तेरा साथ लेना पद रहा है.तू तो सिर्फ वक्त की जरूरत है- यूज एंड थ्रो ! मेरा पारदर्शी पण काल जाई  है, शाश्वत!  तमतमाया चेहरा पूरे तीखेपन परंतू सोजन्यता से मुखोटे पर वक् प्रहार कर रहा था.
                      यकायक दोस्ती का दावा करने वाली एक बड़ी मछली बड़ा सा मुह खोलकर छोटी मछली को निगल जाती है.उसे कोई मोका है नहीं मिलता दोस्त- दुश्मन का मुखोटा परखने का.बाकी कुछ मछलिया दरी सहमी सी एक कोने में बाते करने लग जाती है . घर में रखे शीशे के मछली घर से निगाहे हटाकर पल भर के लिए आँखे मूंदने पर सारी दुनिया का रंगमंच जिंदगी  की शक्ल में सामने उभरता है.
  " एक चहेरे पे कई चेहरे लगा लेते है लोग"
चेहरे नहीं शायद मुखोटे कहना अधिक सटीक होगा.इस काल खंड का यह क्रानिक फिनामिना लग रहा है . अपनी जरूरतों के हिसाब से चेहरे पर मुखोटा फिट कर लो.हर बेईमान के लिए इमानदार का, पापी के लिए धर्मत्त्मा का,सियार के लिए शेर का मुखोटा या खाल तैयार है.ओढने या ओढाने वाले दोनो किस्म के लोग  है लेकिन 
                         सचाई छूप नहीं बनवात के उसूलो से ,के खुश्बू आ नहीं सकती कभी कागज के फूलो से.
मुखोटो की बाजारू दुनिया  में परफ्यूम छिडके कागज के फूलो से सुगंध काफूर होने में देर नहीं लगती.ठीक उसी तरह्बनावत के उसूल भी इसे उजागर होते है जैसे पानी में किया गया पाखाना .पर अहि चेहरे और मुखोटो का संघर्ष चल रहा है.
आज का दिन मेरा है ... गरजकर मुखोटा डरा रहा है चेहरे और चेहरों को... मुखोटो के साथ साथ रहकर कुछ इंसान अपना चेहरा तक भूल गए है."
         " कल मेरा सच जब सामने आएगा जब  मै जगमगाने लगूंगा... चेहरा यह सोचकर मायूसी पर काबू पाने की कोशिश करता है "" घमंडी मुखोटो की सल्तनत अपनी छद्म छवि की आतिश बाजियों परा इतरा रही है " चेहरों का कुनबा अपनी पीड़ा छिपाकर " वो सुबह  कभी तो आएगी " यही सोचकर तमाम लांछन सहकर भी ." ईश्वरीय न्याय के प्रति आश्वस्त है.
चेहरों का सच और मुखोटो के फरेब को समझकर अनदेखा करने वाले इस बात को जान ले की, सच्चाइया दबी कहा है झूठ से  जनाब  , कागज़ की नाव कहिये समंदर में कब चली?
दुनिया के समंदर में भी अपनी- अपनी इमेज या छवि को लेकर भी चेहरों के कुनबे और मुखोटो की सल्तनत में छिड़ी है जंग.घाट प्रतिघात के अनेक मोके और यलगार के दृश्य जिन्दागे के केनवास पर रोजाना देख रहे है हम लोग.छवियो को बनाने- बिगाड़ने , धवल और मलिन करने के सायास कर्मकांड दैनन्दिनी के जीवन चलचित्र का अनिवार्य हिस्सा बन चुके है.
     बहरहाल, चेहरे और मुखोटो के बीच जारी है  अनथक  अंतर द्वन्द और इस महासमर के रन बाकुरे है आप और हम सब . सवाल इस बात का है की किसके लिए कब, कौन ,कहाँ ,कैसे , और किस तरह का आइना दिखता है.और आइना देखने और सिखाने के बाद चेहरों और मुखोटो के पवित्रीकरण की प्रक्रिया किस तरह शुरू होती है.
        कुनबा और सल्तनत ... निजाम तो दोनों के एक ही है.चेहरे एउर मुखोटे दोनों ही जिंदगी की सच्चाई है. आईने में अपना चेहरा देखना आज की जरूरत है .फिर भी,... कब जाओगे आईने के सामने?शायद यह बात मन के किसी कोने से गूंजेगी सभी के भीतर
        जाने कैसी उंगलिया है, जाने क्या अंदाज है
        तुमने पत्तो को छुआ था , जड़ हिलाकर फेक दी 
  सच चाईया


ठिठुरती रात की बात

जब चली सर्द हवा मैंने तुझे याद किया 

ये सर्द रात ,ये आवारगी,ये नींद का बोझ 
हम अपने शहर में होते तो घर चले जाते


बढ़ते शहर में मौसम को जीने का अंदाज भी चुगली कर जाता है.या फिर यूँ कहिये के बदलते वक्त में मौसम को जीने की स्टाइल भी "अपनी अपनी उम्र" की तर्ज पर करवटें बदलने लगती हैं.सर्दियों का मौसम अपना अहसास दिलाने लगा है यह भी सच है की शहर के बन्दे अब मौसम का मजा लेने लगे हैं.और उसका अंदाज भी खुलकर व्यक्त करते है सब लोग.
       यूँ ही काम ख़त्म कर चाय पीने के बहाने ,दिमाग पर पड़ते हथौड़ों को परे हटाकर उसे कपास बनाने की नीयत से लोग स्टेशन या बस स्टेंड के चौक पर इकठ्ठा हो जाया करते हैं.करियर की चिंता के तनाव को चाय की चुस्कियों में हलक से नीचे उतारती नौजवान पीढ़ी के चेहरे सर्वाधिक होते हैं.बाकी तो सर्विस क्लास और दो पल रूककर अपनी चाहत  बुझाने को रुकते हैं लोग.
प्लेटफार्म पर इन्तेजार में बैठे उस शख्स को ठोड़ी पर हाथ रखे देर रात तक सोचने की मुद्रा में देखने पर ऐसा लगा मानो वह मन में कह रहा हो... हम अपने शहर में होते तो ....! खैर अपनी -अपनी मजबूरी!
                       ठण्ड काले में सूरज भी सरकारी अफसर हो जाता है 
                      सुबह देर से आता है और शाम को जल्दी जाता है 
दिन छोटे हो गए.नीली छतरी सांझ को जल्दी ही मुंह काला कर लेती है.यह अलग बात है की सफ़ेद-पीले बिजली से रोशन"सीन्स के देवदूत"अँधेरे को उसी तरह मुंह चिढाते हैं मानो शैतान बच्चों की कतार लम्बी जीभ निकलकर कह रही हो...ऍ ssssss !  
चौक चौराहों पर ... सड़क किनारे आबाद खोमचों -ठेलों पर पहली दस्तक मकई के भुट्टों ने दी थी.पीछे-पीछे मेराथान्रेस में दौड़ते आ गए बीही ,गजक ,गर्मागर्म मूंगफली के दाने और गुड पापड़ी.
                     घरों और शादी के रिसेप्शन में गाजर का हलवा और लजीज व्यंजनों के साथ मौसम को जीना सीखते शहर के बन्दों को देखकर बदलते मिजाज को भांपने में दिक्कत नहीं होती.
 खाते-पीते " घर के लोगों की खुशकिस्मती है पर " पीते -खाते "लोगों को देखकर ख़ास तौर पर मन उस वक्त कचोटता है जब सरी राह चलते चलते किसी कोने में दिखाई दे जाता है -
                        मुफलिस को ठण्ड में चादर नहीं नसीब 
                        कुत्ते    अमीरों के हैं लपेटे  हुए लिहाफ 
आने वाले दिनों में सर्दियाँ तेज होंगी तब अपनी तबीयत बूझकर मौसम से जूझना और उसका लुत्फ़ उठाना दोनों ही करना होगा.क्या सर्दियों में यह बेहतर नहीं होगा की समाज सेवी संगठन मानसिक आरोग्य केंद्र ,मातृछाया ,वृद्धाश्रम या  अनाथाश्रमों की पड़ताल कर उन्हें यथा  संभव मदद करने की पहल करें?वैसे सच तो यह है की यह मौसम सबसे आरोग्यकारी है. सुबह-सुबह लोगों को तफरीह करते और गार्डन-मैदान में बैड मिन्टन खेलते देखा जा सकता है.
                       सर्दियों में जो अकेले हैं वे सोचेंगे "सर्द रातों में भला किसको जगाने जाते"दिल बहलाने को तो ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है के यादों का कफन ओढने वालों को ठण्ड का एहसास नहीं होता लेकिन ग़रीबों और बेसहारों की मदद करना भी हमारे कर्तव्य का अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए.अब यह भी क्या सोचने की बात है के दूल्हा  अपनी दुल्हन के मेहंदी से रचे हाथों को देखकर क्या कह रहा होगा, यही ना कि-
                        दिल मेरा धडकता है इन ठण्ड भरी रातों से 
                       तकदीर मेरी लिख दो मेहंदी भरे हाथों से 
बहरहाल ,मुद्दे कि बात यह है कि ख़ुशी या गम में पीने वाले संयम में रहें.अपनी और खास तौर पर बुजुर्गों कि तबीयत का विशेष ध्यान रखें.एक बात मेरे नौजवान दोस्तों के लिए जो अपने -अपने प्यार क़ी मीठी यादों में खोकर यही कहते हैं=
                      इस ठिठुरती ठण्ड में तेरी यादों का गुलाब 
                     इस तरह महका के सारा घर गुलिस्तान हो गया 

इसके साथ ही आज का कार्यक्रम सम्पन्न, 
मैं रश्मि प्रभा मिलती हूँ कल फिर सुबह 10 बजे परिकल्पना पर......

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