
आज मैं यानि सदा की कलम से (http://sadalikhna.blogspot.in/) कुछ जाने-माने व्यक्तित्व की कुछ ख़ास झलक से आपको मिलवाती हूँ .... सदा की नज़र-सदा की कलम । शुरुआत करती हूँ परिकल्पना उत्सव से । तो चलिये जिसने की इस उत्सव की परिकल्पना और महज तीन उत्सव के माध्यम से जिसने ब्लॉग जगत को कर दिया आंदोलित । आइए शुरुआत पहले उनके व्यक्तित्व से ही करती हूँ, क्योंकि परिकल्पना उत्सव की बात हो और चर्चा रवीन्द्र प्रभात जी की न हो तो सबकुछ बेमानी सा लगता है।
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लखनऊ जो नज़ाकत, नफ़ासत,तहज़ीव और तमद्दून का जीवंत शहर है, अच्छा लगता है इन्हें इस शहर के आगोश में शाम गुज़ारते हुए ग़ज़ल कहना, कविताएँ लिखना, नज़्म गुनगुनाना या फिर किसी उदास चेहरे को हँसाना ... पिछले लगभग दो दशक से हिन्दी में निरंतर लेखन करते हुए इनके अब तक दो उपन्यास, एक काव्य संग्रह, दो गजल संग्रह, दो संपादित पुस्तक और एक ब्लॉगिंग का इतिहास प्रकाशित हो चुकी हैं आप सिर्फ कुशल रचनाकार ही नहीं बल्कि ब्लॉगजगत के प्रति आपका योगदान सराहनीय व सम्माननीय भी है आपने अथक परिश्रम से एक मिसाल भी क़ायम की है एक प्रसिद्ध ब्लॉग विश्लेषक के रूप में, यह मैं ही नहीं आप सब भी जानते हैं इतना आसान काम नहीं है विश्लेषण करना यदि एक या दो व्यक्ति होते अथवा होती गिनती की कोई सीमा पर यहां तो अनगिनत ब्लॉगर मेरे जैसे व्यक्ति का एक नज़रिया कह रही हूँ (वर्तमान समय में तो हिन्दी ब्लॉग का आंकड़ा 22000) की संख्या को पार कर चुका है इस संख्या की गणना करने के साथ इन आंकड़ों से परिचित कराने में भी आदरणीय रवीन्द्र जी का ही योगदान है, आपके पास कलम और दिमाग की पैनी धार तो है ही परन्तु आपकी दूरदृष्टि एवं विलक्षण सोच ने आज हमें भागीदार बनाया परिकल्पना महोत्सव का ...

इस सकारात्मकता का भाव संजोने का सुखद परिणाम यह रहा है कि आप सम्मानित हुये हमारी आपकी नज़रों के साथ ही इन सम्मानों से भी ... संवाद सम्मान-2009, सृजनश्री सम्मान-2011, हिन्दी साहित्यश्री सम्मान-2011, बाबा नागार्जुन जन्मशती कथा सम्मान-2012, प्रबलेस चिट्ठाकारिता शिखर सम्मान-2012 आदि आपका यह ज़ज्बा यूँ ही क़ायम रहे इन्हीं शुभकामनाओं के साथ आप सभी से इजाजत लेती हूँ ।
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उनका प्रथम काव्य संग्रह बिखरे मोती ... जिसे उन्होंने अपनी माँ की पुण्य स्मृति को समर्पित किया है -और इस समर्पण में भी एकवेदना ही छुपी है -बिन माँ के उस घर में कैसे रह पाउँगा ? मन भीग जाता है इस पंक्ति के साथ ही जहां, वहीं उनके संस्कारों कीओजस्विता इस बात में झलकती है जब इस काव्य संग्रह का श्रेय अपने पिता जी को देते हैं, हकीकत तो ये है कि ‘बिखरे मोती’ हमारे बचपन से अब तक की जी हुई जिन्दगी के अनमोल लम्हात है, जिनको सफल प्रयासों से समीर जी ने एक वजूद प्रदान किया है.
आप के बारे में अधिक जानना हो कुछ इस तरह से भी ... आप एक ब्लॉगर हैं, कवि हैं, कथाकार हैं, व्यंग्य लेखक हैं,उपन्यासकार हैं, संस्मरणकार हैं, यात्रा वृत्तांत लेखक हैं और अब एक उपन्यासिका लेखक- “देख लूँ तो चलूँ.” जिसकी भाषाबिलकुल बातचीत वाली. लगता ही नहीं कि कोई दुरूह साहित्य पढ़ रहा है कोई! कहीं कहीं पर आध्यात्म और दर्शन का पुट भी देखने को मिलता है जब वो ओशो की तरह जीने की कला छोड़कर कहने लगते हैं कि मैं मृत्यु सिखाता हूँ. उपन्यासिका के कुछ अंश दिल को छू जाते हैं, कुछ व्यथित करते हैं, कुछ गुदगुदाते हैं, कुछ सोचने पर मजबूर करते हैं. एक हाईवे की ड्राईव के बहाने इन्होंने पूरा भारत दर्शन और भारतीय महात्म्य समझाया है.पर हम सभी समय के साथ बंधे हुये हैं समय के साथ चलना जरूरी होता है जैसे वैसे ही यह भी ध्यान रखना जरूरी हो जाता है कि अपनी बात कहते-कहते आपका समय हमने ज्यादा तो नहीं ले लिया ... इसी के साथ आप सभी से इजाजत लेती हूँ समीर जी के ही शब्दों में जो उनका हिन्दी भाषा के प्रति एक सम्मान ... व योगदान है इस तरह से, आप हिन्दी में लिखते हैं. आप हिन्दी पढ़ते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं, इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है. एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

अभी कहीं जयिएगा मत, क्योंकि मध्यांतर से पूर्व मैं आपको ले चलती हूँ वटवृक्ष पर जहां मीनाक्षी मिश्रा उपस्थित हैं अपनी कविता "मन दर्पण": "नाटक-नींद और मेरा रोज़" लेकर ....यहाँ किलिक करें
अच्छी चल रही है ये सीरीज़
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा ...पठनीय
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया परिचय खास शख्सियत का ...
जवाब देंहटाएंसीमा जी की कलम से दोनों शख़्सियतों के बारे में जानकार अच्छा लगा, निश्चित रूप से उम्दा है आपकी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया, यूं ही बढ़ता रहे परिकल्पना उत्सव का यह कारवां ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सारगर्भित प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (8-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (8-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
बहुत बढ़िया ...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंरविन्द्र जी का प्रयास निश्चित रूप से क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है |
जवाब देंहटाएंदोनों ही बड़ी शख्सियतें और दोनों का संतुलित परिचय |
सादर
बहुत रोचक परिचय...
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत के दो महान शख्शियत को आपकी कलम से जानना अच्छा लगा सीमा जी !!
जवाब देंहटाएंरवीन्द्र प्रभात जी तथा समीर जी जैसे विशिष्ट व्यक्तियों का परिचय आपकी कलम के द्वारा पढ़ कर बड़ी आनंदानुभूति हुई ! ब्लॉगजगत में नये-नये प्रवेश करने वाले लेखकों को इनका कितना सहयोग और प्रोत्साहन मिलता यह सर्वविदित है ! आप सभी को मेरी अनंत शुभकामनाएं एवं आभार !
जवाब देंहटाएंसदा जी बहतरीन परिचय रवीद्र प्रभात जी का एवं समीर जी का .....शुभकामनायें ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर परिचय. साधुवाद
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत से जुडी हुयी महान शख्सियतों का परिचय करवाने का अच्छा प्रयास इसके लिए आपको धन्यवाद !!
जवाब देंहटाएंkhash andaj me khash ki sundr prastuti
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