सम्बन्ध बनाया है तो खैरियत पूछनी ही चाहिए .... करीबी व्यक्ति अचानक दूर हो जाये तो कई कारण हो सकते हैं . कारण जाने बगैर अटकलें लगाना गलत होता है . ब्लॉग की दुनिया तो इस पार उस पार की है - पड़ोस में महीनों नहीं जा पाते तो विदेश कैसे जाएँ !
विचारणीय रचना =
Apanatva: छुई मुई(सरिता)
नदी जब
पहाड़ी पथरीले
रास्ते से
चट्टानों से
टकरा टकरा कर
कल कल नाद
करते हुए
बिना कोई
विराम किये
निरंतर बस
आगे बडती है
कितनी अल्हड
तब लगती है ।
पर मैंने
इसका वो
शांत सौम्य
और गंभीर
स्वरुप भी
देखा है
स्वयं के
अस्तित्व को
समतल को
किया है अर्पित
और यों
शांति कर ही
ली अर्जित ।
अब देखने
मे आता है
दूर से फेंका
एक छोटा
सा कंकर भी
अनगिनत
तरंगे पैदा
कर जाता है ।
दिल की बातें: हम ऐसे क्यों है ....(सुनील कुमार)
रसोई में काम करती हुई पत्नी के चेहरे की खीझ साफ दिखाई दे रही थी | कारण था घर में काम करने वाली बाई यशोदा का ना आना | मुझे याद आ रहा था छुट्टी लेने से पहले वह कुछ पैसे मांग रही थी | बाबूजी कुछ पैसे की सख्त ज़रूरत है "| मैंने पत्नी की तरफ इशारा करते हुए कहा "कुछ पैसे इसको दे दो"| उत्तर में पत्नी का क्रोधित स्वर सुनाई दिया "घर में एक भी पैसा नहीं है | उसी समय पत्नी बोली " किसी तरह से एक हज़ार रुपये सोनू के जन्मदिन पर गिफ्ट देने के लिए रखे हैं अगर कुछ नहीं देंगे तो उसका मूड ख़राब हो ख़राब हो जायेगा | कुछ दिनों तक वह काम पर नहीं आई और एक दिन अचानक फिर काम पर आ गयी और उसी तन्मयता से काम करने लगी | पत्नी ने गुस्से से पूछा इतने दिन कहाँ थी ? उसने अपना चेहरा उठाया और बोली कुछ दिनों से मेरा बेटा बीमार था और तीन दिन पहले चल बसा | मैंने चेहरे पर नकली क्रोध लाते हुए कहा इलाज कहाँ कराया उसने कहा सरकारी अस्पताल में, बाहर इलाज में तो हजार पाँच सौ लग जाते | वह मेरे पास कहाँ! मैंने कहा तो मांग लेती वह बोली अगर आप दे देते तो सोनू के जन्मदिन पर गिफ्ट कैसे आती ? और फिर उसका मूड ख़राब हो जाता .........
यह कह कर वह ऊपर वाले मकान के सीड़ियाँ चढ़ गयी और धकेल गयी मुझे गहरी खाई में कुछ सोंचने के
लिए कि हम ऐसे क्यों है ......
ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र: तुम कहाँ हो ?(वंदना गुप्ता)
तुम शायद भूल गए वो पल,
जब उन नन्हे हाथों से
अपने पहले लड़खड़ाते कदम मेरी तरफ बढ़ाये थे.....
तुम शायद भूल गए...
जब मैं तुम्हारे लिए घोडा बना करता था
तुम्हारी हर बेतुकी बातें सुना करता था,
परियों कि कहानियां सुनते सुनते
मेरी गोद में सर रख कर न जाने तुम कब सो जाते थे,
जब मेरे बाज़ार से आते ही
पापा कहकर मुझसे लिपट जाते थे,
अपने लिए ढेर सारे खिलोनों कि जिद किया करते थे.
तुम शायद भूल गए...
जब दिवाली के पटाखों से डरकर मेरी गोद में चढ़ जाया करते थे,
जब मेरे कंधे पर सवारी करने को मुझे मनाते थे,
जब दिनभर हुई बातें बतलाया करते थे...
आज जब शायद तुम बड़े हो गए हो,
ज़िन्दगी कि दौड़ में कहीं खो गए हो,
आज जब मैं अकेला हूँ,
वृद्ध हूँ, लाचार हूँ,
मेरे हाथ तुम्हारी उँगलियों को ढूंढ़ते हैं,
लेकिन तुम नहीं हो शायद,
दिल आज भी घबराता है,
कहीं तुम किसी उलझन में तो नहीं ,
तुम ठीक तो हो न ....
यही जानना ज़रूरी है .... तुम ठीक तो हो न ???
इसी के साथ आज का कार्यक्रम संपन्न, मुझे अनुमति दीजिये ...शुभ विदा !
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंसुनील कुमार जी का लेख " हम ऐसे क्यों है ..." पढ़कर दिल भर आया । बढ़िया प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंदिल भर आया...
जवाब देंहटाएंबस! इसके आगे और क्या कहें...
~सादर !!!
मेरे हाथ तुम्हारी उँगलियों को ढूंढ़ते हैं,
जवाब देंहटाएंलेकिन तुम नहीं हो शायद,
दिल आज भी घबराता है,
कहीं तुम किसी उलझन में तो नहीं ,
तुम ठीक तो हो न ....
यही जानना ज़रूरी है .... तुम ठीक तो हो न ???
बहुत सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंsundar prastuti..
जवाब देंहटाएंअपनों का ख्याल कि तुम ठीक तो हो न , एक इतनी सी बात जानने की इच्छा हमेशा ही रहती है |
जवाब देंहटाएंकुशल चयन |
सादर