बचपन यानि मासूमियत ... धुप में भी चांदनी,कीचड़ सने पांव में भी सपने,भूख में भी आश्वासन की मुस्कराहट, ...... सारी दुनिया अपनी, ज़माना दुश्मन तो ठेंगे से . पांव में कांटे चुभ गए तो माँ की आँचल का मरहम सबसे अच्छी दवा होती है . आज भी -
आधुनिकता कितनी भी हो
वक़्त कितना भी आगे आया हो
गीतों की पिटारी को सबने सम्भाल रखा है
उम्र की थकान हो
या खराश हो
बच्चों के गाने की ख़ुशी आज भी मंद मीठी हवा सी लगती है ! ..... ज़रा हवा तो आने दो,खोल दो प्रतिस्पर्द्धा की खिडकियों को -
कहाँ गया वो बचपन,
भोला सा वो मन ...
वो दादी-नानी की कहानियां,
वो मिट्टी का आँगन...
वो घर-घर खेलना
गुड्डे-गुड़ियों की शादी रचाना
वो दोस्तों के साथ लड़ना
किसी से रूठना, किसी को मनाना ...
वो बारिशों में भीगना
वो कागज़ की नाव को तैराना
वो मेलों में घूमने का आनंद उठाना
और सर्कस की भीड़ में खो जाना
वो आइसक्रीम देखकर खुश हो जाना
वो चाकलेट्स के लिए जिद्द मानना
वो पापा की डर से पढ़ना
वो मम्मी से मार खाना
वो भैया से बाते छुपाना
और दीदी को बताना ...
कहाँ गया वो बचपन,
भोला सा वो मन ...
वो रात तो भूतो से डरना
और मम्मी से लिपट कर सोना
अब तो बस इस भागती दौड़ती जिंदगी में
जो बच गया है सोचने को
वो है बचपन की यादों का खिलौना....

कुछ पंक्तियाँ: कहाँ गया बचपन ..?(हिमांशु श्रीवास्तव)

कुछ बदल सा गया अब बचपन
हो गया है इसका आधुनिकरण,
चाँद तो आज भी आता है
पर क्यों नही कोई देखता,
बारिश तो आज भी होती है
पर क्यों नही कोई नहाता,
बुडिया का बाल आज भी बिकता है
पर क्यों नही कोई खरीदता,
क्यों नही कोई बचपन अब
दादी नानी की कहानी सुनता,
जकड गया है बचपन इस आधुनिकता में
घुट कर रह गया है बचपन
विचारोहीन मानसिकता में,
कुछ पल तो जीने दो उन्हें अपना जीवन
मत छीनो उनके दो पल....
दे दो उन्हें उनका बचपन
जाने कहां खो गया है बचपन
My Photoपिछ्ले कुछ सालों से।

मैं ढूंढ़ता रहता हूं बचपन को
मुहल्ले की सड़कों पर
पार्कों में, गलियों में, चबूतरों पर
पर कम्बख्त बचपन
मुझे कहीं मिलता ही नहीं।

नहीं दिखाई देती अब कोई भी लड़की
मुहल्ले की सड़कों पर
चिबड्डक खेलते हुये
रस्सी कूदते हुये या फ़िर
घरों के आंगन बराम्दों में
गुड़िया का ब्याह रचाते।
न पार्क में कोई लड़का
गिल्ली डण्डा, सीसो पाती या
फ़िर कबड्डी, खोखो खेलते हुये।

कहीं ऐसा तो नहीं
हमारे देश के सारे बच्चे
उलझ गये हों
कार्टून नेटवर्क,पोगो  और टैलेण्ट हण्ट के
मायाजाल में।

सिमट गया हो बचपन
सिर्फ़ वीडियो गेम और
कम्प्यूटर की स्क्रीन तक
या लद गया हो बचपन की पीठ पर
पसेरी भर का बोझा ज्ञान विज्ञान का
बस्ते के रूप में।

मुझे चिन्ता सिर्फ़ इस बात की नहीं
कि मुहल्ले की गलियों पार्कों में
पसरा सन्नाटा कैसे टूटेगा
कैसे दिखाई देंगे बच्चे यहां
चिन्ता तो इस बात की है
कि बच्चों की कल्पना का क्या होगा?
जो न सुनते हैं कहानियां किस्से
अब नानी दादी से
न उन्हें मालूम है कि क्या है
गुड्डे गुड़िया का खेल
न जाते हैं अब वे नागपंचमी,
दशहरे के मेलों में
न करते हैं भागदौड़,धमाचौकड़ी
गलियों और पार्कों में।

तो कल कहां से करेंगे ये बच्चे
नई नई विज्ञान की खोजें
नये नये आविष्कार
कैसे बनेंगे ये बच्चे
देश के भावी कर्णधार
कहां से आएगा इनके अंदर
गांधी नेहरू या आजाद का संस्कार।

विचारधारा: कहाँ गया मेरा वो बचपन...(श्रेष्ठ गुप्ता)

जैसे जैसे घड़ी की सुई चलती गई,
मेरा बचपन मुझसे दूर होता गया...
माँ की ममता में पला बड़ा,
अब दोस्तों के बीच बैठा पड़ा...
कहाँ गया मेरा वो बचपन...
वो पापा के कंधे पर घूमना,
और आज उनके ही कंधे से कंधे मिला के चलना...
दादा की ऊँगली को अपना सहारा बनाना,
और आज उन्हें ही अपने ऊँगली का सहारा देना...
कहाँ गया वो मेरा बचपन....
ना थी किसी की चिंता,ना था किसी का  डर ..
फिर क्यूँ है मुझे आज दुनिया से वैर...
वो सुबह सुबह अपनी हस्सी की खिल खिलाहट,
और आज की सुबह में कुछ अनहोनी की आहट...
कहाँ गया मेरा वो बचपन.....
माँ का वो आँचल जिसके नीचे हर जख्म भर जाता
वो दिन भी क्या थे ?जब सिर्फ माँ का ही नाम आता
क्यूँ ? बीत गया वो बचपन सुहाना 
जिसमें थें ,थोड़े आंसू तुतलाना लम्बी चौड़ी बातें
कहाँ गया वो बचपन सुहाना ?
बनाना मंदिर में जाकर प्रसाद चुराकर खाना
बचपन में लोगो से लड़ना चाकू से डराना
किसी को भी एक जम कर लगाना, 
कहाँ गया वो बचपन सुहाना ?
टीवी के आगे बैठकर उसका किरदार बन जाना 
पढ़ाई की बात सुनकर तिलमिला जाना सर में दर्द एवं बुखार आना
कितना पुराना हैं, सबको लुभाता हैं ये बहाना
कहाँ गया वो बचपन सुहाना ?
स्कूल की वों यादें जहाँ थी शिक्षक का हमें छड़ीवाला प्रसाद खिलाना
कहाँ गया वो बचपन सुहाना ?
हर बात में बन जाता था, कोई न कोई बहाना
गृहकार्य का लेते ही बीमारी का बहाना 
देख कर छड़ी पसीने की फुहारों का आना
आँखों से गंगा ,जमुना का आना, 
सरस्वती को न याद करने का हर्जाना हाथों से भरवाना
कहाँ गया वो बचपन सुहाना ?

"मन-मति": मेरा बचपन(महेन्द्र सिंह राणा 'आजाद')

Mahendra Singh Rana
"अब स्मृति बनकर रह गया मेरा बचपन
कहाँ गया वो मेरा खिलखिलाता बचपन,
धूल से सना थोड़ी चिपकी मिट्टी थी
धूप-छाँव की परवाक कतई न थी,
बीन पकड़कर बने थे कभी सपेरा
कहाँ गया वो खिलखिलाता बचपन मेरा।

अब स्मृति बनकर रह गया मेरा बचपन
कहाँ गया वो मेरा नासमझ बचपन,
मिट्टी, पत्थर, रेत दोस्त थे मूल
खेलने मे साथ देता कंकड़-धूल
हथोड़ा थामकर बने थे कभी ठठेरा
कहाँ गया वो नासमझ बचपन मेरा।

अब स्मृति बनकर रह गया मेरा बचपन
कहाँ गया वो मेरा शैतानी बचपन,
कभी लड़ते-झगड़ते तो फिर था प्यार
कभी मारते तो कभी पड़ती थी मार
पूरा दोस्तों के साथ था गुजरा
कहाँ गया वो शैतानी बचपन मेरा।

अब स्मृति बनकर रह गया मेरा बचपन
कहाँ गया वो मेरा असमर्थ बचपन,
खिलाती-पिलाती थी माँ हाथों से अपने
भविष्य के विषय पर बुन न सका सपने
कभी धोया न था खुद अपना चेहरा
कहाँ गया वो असमर्थ बचपन मेरा।"

परिकल्पना उत्सव-2012 , भाग : तृतीय और चौथा दिन । क्रम -दर-क्रम यह उत्सव अपने उफान पे है । 
कुछ नए और कुछ पुराने लेखकों की सशक्त रचनाओं के  संगम के साथ यह क्रम आगे भी जारी रहेगा, 
किन्तु एक मध्यांतर के बाद । परिकल्पना पर मेरी पुन: उपस्थिती हो उससे पहले चलिये आपको ले चलती
हूँ वटवृक्ष पर, जहां अपनी एक सशक्त कविता : "तीखी कलम से हिंदी की व्यथाएं" लेकर उपस्थित हैं नवीन 
मणि त्रिपाठी.....यहाँ किलिक करें 

11 comments:

  1. जो बच गया है सोचने को
    वो है बचपन की यादों का खिलौना....
    जिसे हम उम्र के हर पड़ाव पर .. अपने साथ रखते हैं और अपना मन बहलाते हैं ... सभी रचनाओं का चयन एवं प्रस्‍तुति अनुपम बन पड़ी है ... आभार

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  2. बचपन ,
    मेरा पसंदीदा विषय और शायद सभी का पसंदीदा , इतना कुछ लिखा जाता है बचपन के ऊपर कि उसमे से कुछ सर्वश्रेष्ठ छांटना सागर में मोती तलाशने के बराबर है | आपने बखूबी ये कार्य किया |
    बधाई
    और
    सादर धन्यवाद , सुबह को प्यारा(बचपन की यादों से) बनाने के लिए |

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  3. बचपन शब्द सुनते ही अतीत दस्तक देने लगता है...वापस बुलाने लगता है...

    सुन्दर संकलन दी....
    आभार
    अनु

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  4. बचपन जिंदगी का सुनहरा भाग है . वह जाकर लौटता नहीं ---बचपन -उसका कार्यकलाप -सब खो गया . रचनाओं का चयन बहुत बढ़िया है .बधाई .

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  5. कोई लौटा दे मेरे बीते हुये दिन ………इस भाव को प्रकट करती सभी रचनायें सराहनीय हैं।

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  6. भीनी भीनी यादों से भरे ,बचपन पर सभी लिंक्स शानदार ....!!
    आभार .

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  7. बेहतरीन प्रस्‍तु‍ति सभी रचनायें सराहनीय

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  8. बचपन की यादों को ताज़ी करतीं बहुत सुन्दर रचनाएँ!

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  9. बहुत धन्यवाद् आपका, जो आपने मेरी कविता को शामिल किया |

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