बेटियाँ घर की खिलखिलाती हवाएं होती हैं 
आँगन की खुशबू 
दो घरों के मध्य सेतु 
गर्भ में ही उनकी मौत 
ओह !!!
कितने हैवान हो तुम 
न पिता योग्य न माँ योग्य 
न दादा दादी,नाना नानी ....
तुम जो भी हो ........ सत्य है कि जल्लाद हो .............

डॉक्टर का कमरा.
My Photoमहिला अपनी एक साल की बेटी को गोद में और सोनोग्राफी की रिपोर्ट हाथ में लिए होने वाली कन्या का गर्भापात कराना चाहती है. 
तर्क है छोटी छोटी दो बेटियों को कैसे संभालेगी?
डॉक्टर ने सलाह दी कि लाओ, इस गोद में बैठी बेटी को मार देते हैं. फिर बस एक होने वाली रह जायेगी.
महिला स्त्ब्ध!!
यह तो पाप होगा.
आज उसके आँगन से दोनों बेटियों के चहकने के आवाज आती है.

कोई 
हत्या महज हत्या नहीं होती!! 
परिस्थिति के अनुरूप 
समय की गति में
नहीं होती हत्या 
जो  होती हैं बहादुरी 
आत्मरक्षा 
और 
कर्तव्य से प्रेरित
कुछ होती हैं कायरता 
लाचारी 
और 
कमजोरी 
जैसे की आत्महत्या
कुछ 
मानसिक रुग्णता 
यानी कि 
विद्वेष, नफ़रत 
और 
बदले की भावना से जनित
किन्तु
कुछ होती हैं मानसिक विकृतता 
भयानक रुप 
निरीहता पर प्रहार 
जो अक्षम्य है 
जैसे की 
भ्रूण हत्या!!!

वो कली जब गोद आई ,
साँस थी महक गयी ,
धीरे से जब मुस्कुराई ;
मोती से झोली भर गयी ,
'माँ' कहा उसने मुझे ;
मुझको तो जन्नत मिल गयी ,
उंगली पकड़ कर जब चली;
खुशिया ही खुशिया छा गयी ,
है मुझे गर्व खुद पर ;
था लिया निर्णय सही ,
भ्रूण हत्या को किया था ;
द्रढ़ता से मैंने नहीं,
जो कही कमजोर पड़कर 
दुष्कर्म मै ये कर जाती ,
फिरकहाँ नन्ही कली 
कैसे मेरे घर खिल पाती ,
ये महकेगी ,ये चहकेगी ,
सारे घर की रौनक होगी ,
मेरी बिटिया की किलकारी 
पूरी दुनिया में गूंजेगी .
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
आने दो रे आने दो, उन्हें इस जीवन में आने दो
जाने किस-किस प्रतिभा को तुम
गर्भपात मे मार रहे हो
जिनका कोई दोष नहीं, तुम
उन पर धर तलवार रहे हो
बंद करो कुकृत्य – पाप यह,
नयी सृष्टि रच जाने दो
आने दो रे आने दो, उन्हें इस जीवन में आने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
जिस दहेज-दानव के डर से
करते हो ये जुल्मो-सितम
क्यों नहीं उसी दुष्ट-दानव को
कर देते तुम जड़ से खतम
भ्रूणहत्या का पाप हटे, अब ऐसा जाल बिछाने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
बेटा आया, खुशियां आईं
सोहर-मांगर छम-छम-छम
बेटी आयी, जैसे आया
कोई मातम का मौसम
मन के इस संकीर्ण भाव को, रे मानव मिट जाने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
चौखट से सरहद तक नारी
फिर भी अबला हाय बेचारी?
मर्दों के इस पूर्वाग्रह मे
नारी जीत-जीत के हारी
बंद करो खाना हक उनका, उनका हक उन्हें पाने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
चीरहरण का तांडव अब भी
चुप बैठे हैं पांडव अब भी
नारी अब भी दहशत में है
खेल रहे हैं कौरव अब भी
हे केशव! नारी को ही अब चंडी बनकर आने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
मरे हुए इक रावण को
हर साल जलाते हैं हम लोग
जिन्दा रावण-कंसों से तो
आंख चुराते हैं हम लोग
खून हुआ है अपना पानी, उसमें आग लगाने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
नारी शक्ति, नारी भक्ति
नारी सृष्टि, नारी दृष्टि
आंगन की तुलसी है नारी
पूजा की कलसी है नारी
नेह-प्यार, श्रद्धा है नारी
बेटी, पत्नी, मां है नारी
नारी के इस विविध रूप को आंगन में खिल जाने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो

अब हंसीं मुस्कान  भी , 
विश्वास के लायक नहीं
क्या कहेंगे, क्या करेंगे
कुछ यकीं, इनका नहीं
नज़र चेहरे पर लगी है, ध्यान केवल जेब पर
और कहते हैं कि  डरते क्यों ?भले इंसान हैं !
काम गंदे सोंच घटिया
My Photoकृत्य सब शैतान  के ,
क्या बनाया ,सोंच के 
इंसान को भगवान् ने
फिर भी चेहरे पर कोई, आती नहीं शर्मिंदगी  !
क्योंकि अपने आपको, हम मानते इंसान हैं !
हरकतें ऐसी कि शरमा
जाएँ, सब चौपाये भी !
गोश्त  ताजा  चाहिए  ,
जिससे टपकता खून हो !
जीव हत्या भी  करें, हम पेट भरने के लिए ! 
कष्ट दूजे का न समझे,फिर भी हम इंसान हैं !
बाप के चेहरे को देखो
सींग  दो दिखते वहाँ  !
कौन पुत्री जन्म लेगी 
कंस  के ,प्रासाद  में  !
जन्म से पहले ही जननी,मारती मासूम को  
पूतना अब माँ बनीं हैं,फिर भी हम इंसान हैं !
खिलखिलाती  बच्चियों से 
ही  ,धरा  रमणीय  रहती !      
प्रणय औरआसक्ति बिन  
स्रष्टि कहाँ निर्विघ्न होती !
अपने बाबुल हाथ,मारी  जा रही हैं, बच्चियां  !
जानकी को मार कहते हो कि, हम इंसान हैं  !
भ्रूण हत्या से घिनौना ,
पाप  क्या  कर पाओगे  !
नन्ही बच्ची क़त्ल करके ,
ऐश  क्या  ले  पाओगे  !
जब हंसोगे, कान में गूंजेंगी,उसकी सिसकियाँ  !
एक  गुडिया मार कहते हो कि, हम इंसान हैं !

कल शुरू किए गए इस विषय को हम यहीं विराम देते हैं और उपस्थित होते हैं एक मध्यांतर के बाद फिर एक नए विषय के साथ ....तबतक आप वटवृक्ष पर सुशीला श्योराण  ‘शील’ की क्षणिकाओं का आनंद लें.....यहाँ किलिक करें 

12 comments:

  1. कविता की सार्थकता दिख रही है , कल पर्यावरण आज कन्या भ्रूण ह्त्या |
    बहुत अच्छी पहल , और उस पहल में शामिल कुछ बहुत चुनिंदा रचनाएँ |
    बस इतना एहसान तू कर दे ,
    मुझको दुनिया में आने दे |

    सादर

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  2. नवरात्र में कन्या पूजन जरुरी है मगर घर मे नहीं !
    अज़ब मानसिकता पर प्रहार !

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  3. वो कली जब गोद आई ,
    साँस थी महक गयी
    धीरे से जब मुस्कुराई ;
    मोती से झोली भर गयी ,
    एक ख़्वाब अधूरे रह गए ना !!

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  4. ्भ्रूण हत्या पर जागरुक करती उम्दा पोस्ट

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  5. सभी रचनाओं का चयन एवं प्रस्‍तुति नि:शब्‍द करती हुई ....

    कोई मासूम जान आने से पहले धरा पर कत्‍ल होती,
    तब-तब कोई आंसू मेरी आंख में झिलमिलाता रहा ।

    निशाने पे जाने कितनी और ज़ाने होंगी अभी यहां,
    बेबसी पर उनकी मेरा अन्‍तर्मन बिलबिलाता रहा ।
    इरादों को इनके नेक नीयत बख्‍श दे या खुदा अब तो,
    बेटियों को नेमत समझें मन में ये इल्‍तज़ालाता रहा ।

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  6. बहुत सुन्दर और सार्थक रचनाएँ...

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  7. रश्मि जी -बहुत ही सामयिक विषय को लक्ष्य कर आपने यह सार्थक पोस्ट प्रस्तुत की है .आपने इस पोस्ट में मेरी अभिव्यक्ति को स्थान दिया इसके लिए हार्दिक आभार अभिव्यक्त करती हूँ .वास्तव में कन्या भ्रूण हत्या हमारे समाज के दोगले व्यवहार का नतीजा है जो दूसरों से सब यह अपेक्षा करते हैं कि कन्या जन्म पर वे दुखी न हो पर अपने परिवार में कन्या जन्म कोई नहीं चाहता .बदलाव आया है सोच में पर मंजिल अभी बहुत दूर है .

    हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

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  8. हाल ही में दिली में हुए एक रेप केस पर मैं चाहता हूं आप अभी कुछ लिखे इस पूरे मुद्दे पर मैने एक जगह एक पोस्ट पढी है आप भी अवश्य पधारे और अपनी राय दे socialissues.jagranjunction.com/2012/12/19/%e0%a4%9c%e0%a4%ac-%e0%a4%a4%e0%a4%95-%e0%a4%ac%e0%a5%87%e0%a4%b9%e0%a5%8b%e0%a4%b6-%e0%a4%a8%e0%a4%b9%e0%a5%80%e0%a4%82-%e0%a4%b9%e0%a5%81%e0%a4%88-%e0%a4%a4%e0%a4%ac-%e0%a4%a4%e0%a4%95-%e0%a4%9a/

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