कैलाश शर्मा कहते हैं कि = कार्यकाल में देश के सुदूर जनजातीय और ग्रामीण क्षेत्रों में भ्रमण के दौरान असीम गरीबी,शोषण,भ्रष्टाचार और मानवीय संबंधों की विसंगतियों से निकट से सामना हुआ, जिसने मन को बहुत उद्वेलित किया. समाज में व्याप्त विसंगतियाँ जब मन को बहुत उद्वेलित कर देती हैं, तो अंतस के भाव कागज़ पर उतर आते हैं... अंतस के भाव हाइकु में क्षणिक अवधि के साथ गहरे उभरते हैं .....
अकेले चलो
मिलता नहीं साथ
मंज़िल तक.
(२)
गलती एक
सज़ा उम्र भर की
कैसा इन्साफ?
(३)
नभ में चाँद
नदी में परछाईं
दोनों है दूर.
(४)
राहों का शोर
मन का सूनापन
दोनों हैं साथ.
(५)
रिश्तों में गाँठ
पड़ी जो एक बार
सुलझी कब?
हाइकु
वक़्त बदला
मौके के अनुसार
रिश्ते बदले.
(२)
माँ की ममता
छलकती आँखों से
डूबा है मन.
(३)
सपने आते
यादों को जगा जाते
क्यों चले जाते?
(४)
दर्द दिल में
बरसती है आँख
पता नहीं क्यूँ?
(५)
शोषण करो
दोष दो गरीबों को
किस्मत पर.
(६)
समझ जाता
जो होता मन बच्चा
बहलाने से.
(७)
कच्ची दीवारें
मज़बूत हैं रिश्ते
गिरेंगी नहीं.
हाइकु के छोटी छोटी पुतलियों के साथ आइये मिलिए अरुन शर्मा "अनंत" से
पराया धन
बढ़ाता परेशानी
मन में चिंता
बुरी नज़र
जलाती तिल तिल
प्रेम संसार
क्रोधित मन
समझता कब है
अपनी भूल
ज्ञानी ह्रदय
बड़ा शांत स्वभावी
प्रकृति जैसा
फूल के पीछे
पड़ी हवा दिवानी
भौंरा पागल
शाम - सबेरे
है ठण्ड झकझोरे
शीत ऋतु की
घूमा मंदिर
भगवान को पाया
मन भीतर
माँ की ममता
अथाह पारावार
एक गंभीर नज़र गंभीर शक्स पर = संगीता स्वरुप
बिखरे मोती: दीप बन कर देखो .... / हाइकु
मन का दीप
रोशन कर देखो
खुशी ही खुशी
माटी का दिया
एक रात की उम्र
ज्योति से भरा ।
आम आदमी
लगा रहा हिसाब
कैसे हो पर्व ?
लगाएँ बाज़ी
परंपरा के नाम
पत्तों का खेल ।
बम - पटाखे
क्षण भर की खुशी
धुआँ ही धुआँ ।
दीयों की बाती
उजियारा फैलाती
स्वयं जलती ।
मध्यांतर पर जाने से पहले एक नज़र वटवृक्ष पर झांक लेना जरूरी तो नहीं ?.......जरूरी है मेरे दोस्त
यदि जरूरी समझें तो झांक लें एक नज़र वटवृक्ष पर ...... मैं मिलती हूँ एक विराम के बाद ।
अच्छे और गहरे भाव लिए हाइकू |
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बढ़िया हाइकु....
जवाब देंहटाएंमजा आ गया पढ़कर....
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जवाब देंहटाएंमेरे हाइकु परिकल्पना ब्लॉगोत्सव में शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार..
जवाब देंहटाएंयहाँ अपने हाइकु देख बहुत सुखद लगा ... आभार रश्मि जी
जवाब देंहटाएंबहुत अर्थपूर्ण हाइकु
जवाब देंहटाएंआदरणीया आपने मुझे इस काबिल समझा और परिकल्पना मंच पर स्थान दिया आपका ह्रदय के अन्तःस्थल से अनेक-२ धन्यवाद. आदरणीय कैलाश सर और आदरणीया संगीता स्वरुप जी के हाइकु पढ़कर खुद को बहुत खुशनसीब महसूस कर रहा हूँ . सादर
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