बहुत संभालकर पगडंडियां बनाई थीं
रास्तों में तब्दील करने से पहले
सारे कंकड़ बटोरे
पंथियों की थकान को
वृक्ष की छांव मिले
इसके लिए वृक्ष लगाये
नैसर्गिक सौन्दर्य के लिए
पंछियों का आह्वान किया
शक की परिभाषा से विमुख रही
..................
शिकारी आये
वृक्ष कटे
रास्तों पर पत्थर बरसाए गए
ठेस लगी
तो प्रभु की उदास मुस्कान दिखी
और सुना उनका स्वर !
.....
सत्य का वीभत्स रस भी जीवन में होता है
जिससे सामना करने के लिए
काँटों के बाड़े लगाये जाते हैं
मीठी बोली में
थोड़ी खटास
और थोड़ा तीखा का जायका भी अहम् होता है
संस्कार के बीजों को कड़ी धुप का सामना भी करना होता है
ताकि कीड़े न लग जाएँ !
दरवाज़ा खुला रखो
पर सजग रहो
ॐ से चिंतन करो
सत्य शिव बनकर हाथ थाम लेगा सौंदर्य स्थापित करने के लिए
वह भी फांसी की,
क्यों,
क्योंकि मैं हत्या की दोषी हूं...
वह भी एक या दो नहीं...
मैं रोज एक हत्या करती हूं...
कभी अपने आत्मसम्मान को,
तो कभी अपने अस्तित्व को,
मैं नित नए तरीको से कत्ल करती हूं...
--
ओह, मैं भी कितनी मुर्ख हूं...
भला मुझे सजा क्यों मिले,
सजा तो जीवित को निर्जीव करने पर मिलती है...
पर मैं,
मुर्दा लाशों में महज खंजर घोपा करती हूं...
रोंदती हूं,
मर चुके अस्तित्व को,
और बस यूं ही कभी-कभी खुद को...
मुझे सजा मत दीजिए,
मुझे माफ कर दीजिए,
मेरी एक ओर गलती के लिए...
--
ओह हमारा कानून कितना कमजोर है।
हत्यारों के खुलेआम घूमने में उसे कोई गुरेज नहीं,
तभी तो मैं इतना आजाद महसूस करती हूं...
पथराये सपने: हिन्दू और मुसलमान(अमित आनंद)
अरसा पहले
सच मुच की आरती ,
मस्जिदें अजान मे गुनगुनाती रहती थीं,
तब
जबकि भूख ...
माँ के हाथों की लज्जत मे हुआ करती थी,
उसी दौर मे
एकाएक पागल हों गया था आदमी
कलाईयों मे राखी की जगह
तलवारें आ गयी थीं
औरतें -बच्चे काट डाले गए थे
जानवरों की तरह,
हाँ एक दम उसी दरमियाँ
जब
चूल्हों की आग
सुलगने लगी थी
दूसरों के घर
और
बेटियों के बदन पर....
उसी मारकाट के दौर मे
जब की
दो भाइयों ने
बाँट लिया था अपना आँगन,
कुछ फसलें कट चुकी थीं
कुछ का कटना बाकी था
वो दौर......
ओह
उस रेल-पेल
भागम भाग
मार काट मे
दो भाइयों की लाशें
जिन्दा बच गयीं थीं
जिन्हें हम आज
हिन्दू और मुसलमान कहते हैं!
चक्रव्यूह.. | सृजन(आभा खेत्रपाल)
मन का गांडीव मज़बूत नहीं
शंकाएँ कुंठाएँ भी एकत्रित
सहस्त्रों से है युद्ध करना
केवल आकांक्षाएं ही रिपु नहीं
पल-पल लड़ना, हर क्षण मरना
जीवन भर की है महाभारत
सिर्फ अठारह दिन की नहीं
सांसों के चक्रव्यूह
तेरा है तोड़ कहाँ !
जीवन के लाक्षागृह
तेरा क्यूँ कोई छोर नहीं
ना मैं भीष्म
ना ही मैं कृष्ण
ना मैं हूँ पार्थ
ना कोई साथ..
साहस है मुझे करना
ढाढस नहीं मुझे तजना
जीत हार से परे जीवन,
है जीना..
बस, यूँ ही जीना…
.
अभिव्यक्ति: "यादो की पोटली "(शोभना चौरे)
मेरे सिरहाने रखी
यादो की पोटली में
बंधी यादों ने
विनती कर मुझसे कहा -
अब तो मुझे खोल दो
कितने बार ही
खुश होती हूँ
जब तुम ये पोटली खोलती हो?
अब मेरी आजाद होने की बारी है
लेकिन ,तुम मुझे?
तह करके फिर से लगा देती हो
करीने से
और बांध देतो हो फिर पोटली में
मै तुम्हारी
इस करीने वाली आदत से
परेशान हो गई हूँ
यादो ने बड़ी मासूमियत
से कहा-
मुझे बिखरे रहना ही अच्छा लगताहै|
और यादो ने
बाहर निकलने के लिए
अपने लिए अपने कोना निकाल ही लिया
और मुझे मुंह चिढ़ाकर
बिखरने लगी
तुम्हारी मीठी याद
जब तुमने अपनी माँ की
आँखों में
अपने लिए प्यार का सागर देखा
तो तुमने महसूस किया
ईश्वर तुम्हारे पास है
जब तुमसे
सबंधित ,असंबंधित,और आभासी लोग भी
भी तुमसे अपार स्नेह रखते है
तब भी ईश्वर को तुमने
महसूस किया है
जब जब ,तुममे इर्ष्या द्वेष
के भाव जगे है
तब भी तो तुम्हारे अन्दर
बसे ईश्वर ने ही
तुम्हे उससे उबारा है |
तुम्हारी इन डबडबाई
आँखों को देखकर मै
तुम्हारे इन आंसुओ को
लेकर मै
वापिस पोटली में चली जाती हूँ
क्योकि
ये ही तो तुम्हारी पूँजी है |
यह क्रम आगे भी जारी रहेगा, आपको अब मैं ले चलती हूँ वटवृक्ष पर जहां आलोक उपाध्याय लेकर उपस्थित हैं अनकहे लफ्ज़ - यहाँ किलिक करें
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सभी रचनाओं का चयन अति-उत्तम ...
जवाब देंहटाएंयादों की पोटली पढ़ते-पढ़ते कुछ यादें ...
मेरे साथ यहां हाजि़र हैं ...
स्वाद यादों का
चखी है तुमने यादें
इनके स्वाद को जाना है
कभी मीठी याद
गुदगुदाती है मन को
फिर कभी कड़वी भी हो जाती है
कुछ खट्टी भी लगती हैं
कभी बहुत बुरी हो जाती हैं
लगता हैं इन्हें
भूल जाओ !!!
आपका इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (15-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
रचनाओं का उम्दा चयन,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत उत्कृष्ट रचनाएँ...
जवाब देंहटाएंएक एक रचना दिल के भीतर तक उतरती चली गयी.......
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई ! बहुत ही सुंदर !
~सादर!!!
अति सुन्दर रचनाओं को आपने प्रस्तुत किया है ..धन्यवाद !!
जवाब देंहटाएंअत्युत्तम अभिव्यक्ति लिए उत्कृष्ट रचनाएं !बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर रचनाएँ...
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट..
:-)
बेहद उम्दा रचनाएं , सत्य का वीभत्स रस विशेष पसंद आयी , "एक दर्द सभी को होता है", अब ये इंसान पर निर्भर करता है कि वो उस दर्द के आगे घुटने टेकता है या अपना कद और मजबूत करता है |
जवाब देंहटाएंसादर
अति उत्तम
जवाब देंहटाएं