माँ अपने आंसुओं को भूल सकती है
अपनी ख्वाहिशों का गला घोंट सकती है
पर अपने बच्चे की एक एक सिसकियों का हिसाब रखती है
रात भर लोरी बन
साथ चलती है
अँधेरे में वह अपने बच्चों पर जब चीखती है
तो एक एक चीख में सुरक्षा की दुआ होती है
जब माँ कमरे में बंदकर बच्चे को डराती है
तो उसके पीछे एक ही चाह होती है
- बन्द रास्तों की चेतावनी !..........
माँ के लिए माँ सी भावनाओं सा एहसास लगभग सबके पास होता है .... चलिए उन एहसासों का आँचल पकड़ें
कही-अनकही समन्दर जैसी माँ(प्रियंका गुप्ता)
अक्सर मुझे
नदी नहीं
समन्दर सी लगती है
ऊपर से गरजती लहरों भरी
तटों को बहा ले जाने को आतुर
पर अंदर से
धीर-गंभीर-शांत
जिसने अपने अंतस में
छिपाए हैं सैकड़ों राज़
ख़ुशियों की सीपियाँ
तो कभी
दुःखों की चट्टानें और झाड़ियाँ
जिसके अंदर
मछलियों की तरह
तैरते-पलते हैं
कई रंग-बिरंगे सपने
समन्दर...
जो कभी किसी से कुछ लेता नहीं
और अगर लेता है
तो चुका देता है सूद समेत
समन्दर...
जो आगे बढ़ कर
स्वागत करता है सबका
रहता है आतुर
नदी को ख़ुद में समा लेने को...
पर वो भी
कभी-कभी
शायद चाँदनी रात की ख़ामोशी में
जब बेचैन होता है
चाहता है
काश ! कोई तो होता
जो उसे भी आगोश में ले लेता...
हाँ, कभी-कभी
समन्दर में भी सुनामी आती है
जो अथाह तबाही मचाती है
पर क्या
समन्दर को तूफ़ानों का हक़ नहीं है ?
कभी-कभी
मुझे लगता है
माँ नदी होना चाहती है
पर
मैं कहती हूँ
माँ-
तुम कभी नदी मत होना
क्योंकि हर कोई समन्दर नहीं होता
और माँ
समन्दर ही है जो
नदी की तरह
कभी
अपना अस्तित्व नहीं खोता...
अस्मिता सिलाई की मशीन (लीना मल्होत्रा)
सिलाई की मशीन
जंग लगी पुरानी
जिसे हो चुका है गठिया
माँ के गुज़र जाने के बाद
मैं अपने घर उठा लाई हूँ
भूल चुकी है ये चलना
जैसे माँ नही चल पाती थी अपने अंतिम वर्षों में
रख दिया है इसे कोने में
जैसे माँ बैठ जाती थी एक कोने में
नाती पोतों बहुओं बेटों के बीच चुपचाप
जब भी मेरे दिन ऊब से घिस घिस कर फटते हैं
और उदासी सूराखों से झाँकने लगती है
मैं
उसे देखती हूँ इतने गौर से
जैसे पहली बार किसी गाँव में गोबर में टखनो तक डूबे ग्वाले को देखते हैं बच्चे दूध दुहते हुए ..
जब वह देखते हैं गोबर टखने और बाल्टी
उनमे से कोई उन्हें नही देखता
लेकिन हैरत की बात ये है
कि जब मैं इस सिलाई की मशीन को देखती हूँ
वह भी मुझे देखती है
जब मैं उसे घूरती हूँ वह मुझे घूरती है
मैं उससे बात करती हूँ वह मुझसे बात करती है
और जब मैं उन दिनों को याद करके मुस्कुराती हूँ यह भी मुस्कुराने लगती है
खो जाते हैं हम तब उन गर्वीले दिनों में
जब वह चलती थी
माँ चलाती थी
वह माँ के हाथ में रहती थी और मैं भी
संवारती थी माँ उसे और मुझे भी
रूठ जाती थी मैं माँ से टसुए बहाकर दरवाजे के पीछे
तोड़ देती थी वह अपनी सुई की टांग माँ के हाथ के नीचे
समझते थे पूरे घर में हम दोनों ही बस तब भी माँ की थकान
पूछते हैं घर वाले जब सिलना नही कुछ तो क्यों जगह घेरे बैठी है ये सिलाई की मशीन
कैसे कहूं कुछ बाते हैं जो ये सिलाई की मशीन ही समझ सकती है
इस औनी बौनी दुनिया में यही तो है पौनी
मेरी सहेली..बचपन की..
मैं नहीं मानता (दिवाकर नारायण)
मैं नहीं मानता
बड़े लोगों की बातें
कल पापा ने भी कहा
माँ बहुत प्यारी होती है
मैं नहीं मानता
सवेरे सवेरे गली में
गया था मैं
जहाँ पे आती है
मेरे पड़ोस की लड़की
वो भी छोटी है
मेरे ही जैसी
हम खेले
बहुत देर खेले
धूल में गिरकर
पानी में भीगकर
क्यों ना खेले
क्यों ना भीगे
लेकिन
माँ ने बहुत डांटा
थोड़ा मारा भी
क्यों कहते हो फिर
माँ बहुत प्यारी होती है
मैं नहीं मानता
हर सुबह
मुझे नहाना पड़ता है
क्यों नहाउँ मैं
मैं बड़ा नहीं
मैं बाज़ार नहीं जाता
मैं दफ़्तर नहीं जाता
फिर भी
मुझे नहाना पड़ता है
वो डाल देती है मुझे
पानी से भरी बाल्टी में
साबुन से कटकाटता हैं आँख
मैं रोता हूँ
फिर भी
कोई नहीं सुनता
क्यों कहते हो फिर
माँ बहुत प्यारी होती है
मैं नहीं मानता
अब मैं बड़ा हो गया हूँ
और
सब कुछ अच्छा लगता है
जब याद करता हूँ
उस बचपन को
लेकिन
एक बात अच्छी नहीं लगती
मेरा उसे बुरा कहना
मैने समझा है
उस ममत्व को
जो छुपा होता है
उस मार में, उस फटकार में
अगर कोई कहता है
माँ बहुत बुरी होती है
मैं नहीं मानता
मैं भी आभारी हूँ अपनी जन्मदात्री की .... !! (विभा रानी श्रीवास्तव)
मेरी माँ को गुजरे 33 साल गुजर गए .... :O दोषी भगवान हैं .... :(
मेरी भी आंतरिक ईच्छा .... ,
15 वर्ष तो गुजर गए ,
नकचढ़ी - मनसोख बेटी बने रहने में (माँ कुछ भी सिखाना चाहती ,उसमें मेरा टाल-मटोल होता ,किसी दिन .... किसी दिन अगर चावल चुनने बोलती ,मेरा सवाल होता *आज ही बनाना है ..... तब मुझे पढ़ना होता .... मुझे जब जो चाहिए ,तभी चाहिए होता .... पापा का नाश्ता-खाना निकलता ,उसी में मुझे खाना होता .... पापा के खाना खा के उठने के पहले ,मुझे उठ जाना होता .... अलग खाने से या पापा के खाने के बाद उठने से थाली हटाना होता .... जो मुझे मंजूर नहीं होता ,भैया जो नहीं हटाता .... ),(छोटी सी घटना ,मैं ,स्कूल के ,15 अगस्त के झंडोतोलन की हिस्सा थी .... मुझे नई ड्रेस चाहिए थी (वो तो एक बहाना था ,मुझे तो रोज नई चाहिए होता) 11अगस्त को स्कूल से आकर शाम में बोली मुझे नयी ड्रेस चाहिए...13अगस्त को शाम में नयी ड्रेस हाजिर .... लेकिन गड़बड़ी ये थी मुझे चुड़ीदार पैजामा चाहिए था वो सलवार था .... रोने-चिल्लाने के साथ सलवार के छोटे-छोटे टुकड़े कैंची से कर दी .... मझले भैया के बदौलत 14अगस्त को नई चुड़ीदार पैजामा हाजिर.... )
पापा ज्यादा प्यारे लगते ,
वे अनुशासन नहीं करते ....
भैया माँ को चढ़ाते ई *बबुआ के
दूसरा के घरे जाये के बा
लड़की वाला कवनों गुण नइखे ,
हंसले त छत उधिया जाला*
माँ की भृकुटी क्यों तनी रहती ,
मैं आज तक भी नहीं समझी ,
मैंने बेटी नहीं *जना है....
लेकिन भैया के मरने के साथ
आपका आत्मा से मरना खला है ....
एक बेटी-एक बहन एक समय में
दोनों की माँ की भूमिका अदा की है ....
एक हथेली की थपकी ,माँ कुछ पल सो जाय ....
और हर रात मेरी जागते कट जाती
आप ये नहीं सोचीं ,बचे हम ,
चारो(भाई-बहन) को भी आपकी जरुरत होगी...
*आप ये क्यों न सोची .... जो चला गया वो आपका न था ,
जो आपका था , आपके साथ था* ..... कुछ तो सोची होतीं ....
बिदाई के वक्त ,घर-भराई के चावल आपके आँचल के मोहताज रहे ....
जब पग-फेरे के वक्त या जब-जब घर आई ,
आपके आलिंगन की मोहताज रही ....
जिन्दगी ने जो लू के थपेड़े दिए ,
आपकी ममता शीतल छाँव तो देती ....
52 की हूँ दिमाग कहता है ,आज तक ,
आप ना होती .... दिल करता है .... आप होतीं ,
गोद में सर रख रोती-खिलखिलाती-सोती ....
आपको किसने हक़ दिया ,आप मेरे गोद में ,
चिरनिंद्रा में सो गईं .... माँ - मार्गदर्शिका ,
सखी खो गई .... आपने बीच मंझधार में छोड़ा है ....
मैं , जैसी हूँ .... जो हूँ .... आपने गढ़ा है ...
मध्यांतर पर जाने से पूर्व माँ के बाद चलिये चलते हैं पुरानी माँ की ओर ....यहाँ किलिक करें
मध्यांतर पर जाने से पूर्व माँ के बाद चलिये चलते हैं पुरानी माँ की ओर ....यहाँ किलिक करें
अपने बच्चे की एक एक सिसकियों का हिसाब रखती है ...माँ
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं एक से बढ़कर एक हैं ...
आभार इस प्रस्तुति के लिए
सादर
सभी रचनाएँ बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंमाँ पर लिखी सभी रचनायें मन को भावुक कर गयी-------सभी को बधाई
जवाब देंहटाएंमाँ ,, धरती का सबसे प्यारा शब्द | जितना बोलूं कम ही होगा |
जवाब देंहटाएंसादर