नन्हें हाथों का स्पर्श माँ को नई ज़िन्दगी देता है,नन्हीं कहानियों में जीवन का सार होता है .....
शशि पुरवार http://sapne-shashi.blogspot. in/ की नाविक ..... कलम की मजबूत पतवार नन्हीं नन्हीं बूंदों से भी बातें करती हैं - सहजता और सरलता से . छोटी छोटी कहानियों में पूरा दर्शन समाया है, जो वटवृक्ष की छांव सा प्रतीत होता है =
1 लघुकथा -- पतन
भोपाल जाने के लिए बस जल्दी पकड़ी और आगे की सीट पर सामान रखा था कि किसी के जोर जोर से रोने की आवाज आई, मैंने देखा एक भद्र महिला छाती पीट -पीट कर जोर जोर से रो रही थी .
" मेरा बच्चा मर गया ...हाय क्या करू........ कफ़न के लिए भी पैसे नहीं है ..
मदद करो बाबूजी , कोई तो मेरी मदद करो , मेरा बच्चा ऐसे ही पड़ा है घर पर ......हाय मै क्या करूं ."
उसका करूण रूदन सभी के दिल को बैचेन कर रहा था , सभी यात्रियों ने पैसे जमा करके उसे दिए ,
" बाई जो हो गया उसे नहीं बदल सकते ,धीरज रखो "
"हाँ बाबू जी , भगवान आप सबका भला करे , आपने एक दुखियारी की मदद की ".....
ऐसा कहकर वह वहां से चली गयी , मुझसे रहा नहीं गया , मैंने सोचा पूरे पैसे देकर मदद कर देती हूँ , ऐसे समय तो किसी के काम आना ही चाहिए .
जल्दी से पर्स लिया और उस दिशा में भागी जहाँ वह महिला गयी थी . , पर जैसे ही बस के पीछे की दीवाल के पास पहुची तो कदम वही रूक गए .
द्रश्य ऐसा था कि एक मैली चादर पर एक 6-7 साल का बालक बैठा था और कुछ खा रहा था . उस भद्र महिला ने पहले अपने आंसू पोछे , बच्चे को प्यारी सी मुस्कान के साथ , बलैयां ली , फिर सारे पैसे गिने और अपनी पोटली को कमर में खोसा फिर बच्चे से बोली -
"अभी आती हूँ यहीं बैठना , कहीं नहीं जाना "
और पुनः उसी रूदन के साथ दूसरी बस में चढ़ गयी .
मै अवाक सी देखती रह गयी व थकित कदमो से पुनः अपनी सीट पर आकर बैठ गयी . यह नजारा नजरो के सामने से गया ही नहीं ,लोग कैसे - कैसे हथकंडे अपनाते है भीख मांगने के लिए , कि बच्चे की इतनी बड़ी झूठी कसम भी खा लेते है , आजकल लोगो की मानसिकता में कितना पतन आ गया है .
2 लघुकथा -- सत्य
कमला आज शांत थी , काम होने के बाद बोली -
" ताई मै कभी भी 15 दिन काम पर नहीं आउंगी "
" क्यूँ ..? आजकल कितनी छुट्टी लेती हो ""
" ताई घरवाला बीमार है , अस्पताल में भरती है, खाना पीना भी बंद हो चूका है , गुर्दा भी काम नहीं कर रहा , बहुत दारू पीता था , नहीं सुनता था , इसीलिए यह हाल हुआ , अब कभी भी मर जायेगा " चिंता की लहर उसके मुखमंडलपर साफ़ नजर आई .
" ओह तो पहले बता देती , ले लो छुट्टी , अभी तो तुम्हे साथ में ही होना चाहिए , मत आओ काम पर "
" नहीं ताई अभी नहीं , फिर तो 15 दिन घर पर रहना ही होगा , बिरादरी वाले भी आते है तब , काम करना भी जरूरी है , पेट व घर चलाने के लिए काम तो करना ही पड़ेगा , फिर अभी खर्चा तो होना ही है ,पैसा कहाँ से आएगा . वह तो चला जायेगा पर काम तो नहीं रूक सकते . क्या खाना नहीं चाहिए पेट को , सभी करना पड़ता है , यह सब तो चलता रहता है. मै जब काम पर नहीं आउंगी आपको खबर कर दूँगी आप समझ जाना " कहकर शांत मन से वह चली गयी . जीवन का अमिट सत्य आसानी से कह गयी .
3 लघुकथा -- गरीब कौन
" मसाले का ,कपडे धोने का पत्थर लाया हूँ बाई ...." सामने के घर पर घंटी बजाकर एक आदमी ने कहा .
" अच्छा ,कितने का है भैया "
" 150रू का सिल बटना है , 200 रू कपडे का "
" सिल दे दो पर सही पैसे बताओ , यह बहुत ज्यादा है "
" नहीं बाई , बोनी का समय है , फिर काला पत्थर भी है, तोड़ कर बनाना पड़ता है , सिर्फ मेहनत का पैसा ही बोल रहा हूँ , ठीक है 125 में ले लो "
" नहीं 80 रू में दो "
" नहीं पुरता बाई घर चलाना पड़ता है ,घूम घूम कर बेचता हूँ , 2 ही तो है मेरे पास, भाजी पाला भी तो आज महंगा हो चुका है "
" नहीं नहीं देना हो तो दो , नहीं तो रहने दो "
" बाई तुम नौकरी वाले हो, बड़े बंगले में रहते हो , क्या...... 10-15 रू के लिए ऐसा मत करो "
" हो भाई , नौकरी है तो क्या हुआ , हमारे पीछे बहुत खर्चे व काम रहते है , इससे ज्यादा नहीं दे सकते "
" बाई जाओ 100 में ही ले लो ....थोडा सा मायूस होकर बोला "
उसने 100 रू दिए उस आदमी को और गौरान्वित भाव आये चहरे पर जैसे किला फतह कर लिया हो . उस आदमी ने रू लिए और जाते जाते कहा ----
" बाई , सुखी रहो , मै सोचूंगा बहन के घर गया था , तो 50 रू का मिठाई फल दे कर आया , तुम के लेना मेरी तरफ से ".
और वहां से चला गया . अब गरीब कौन वह पत्थर बेचने वाला या बंगले वाली ,यह सोचने वाली बात है .
4 लघुकथा -- विचार
कमला बाई के पति का 15 दिन पहले ही स्वर्गवास हुआ था ,कि पुनः 15 दिन के बाद उसका बड़ा बेटा भी स्वर्ग सिधार गया , यह खबर सुनकर सभी परेशान हो गए कि बेचारी कितने कष्ट सह रही है दुःख का पहाड़ टूट गया उसपर ,
15 दिनों के बाद पुनः कमला काम पर आने लगी पर पहले की अपेक्षा अधिक शांत थी . एक दिन मैंने उसके दुःख में शामिल होने के उदेश्य से बात की शुरुआत की --
" तुम्हारे घर में कौन कौन है कमला , अभी तो बहुत परेशानी होती होगी , यह अच्छा नहीं हुआ ,बहुत दुःख हुआ सुनकर . "
" नहीं बाई घर तो पहले जैसा ही चल रहा है , बड़ा बेटा भी बाप की तरह दारु पीता था , घर में कोई मदद नहीं करता था इसीलिए बहु भी बहुत पहले उसे छोड़कर मायके चली गयी थी ,बाप बेटे दोनों ने अपने कर्म की सजा भुगती है , दारु से भी कभी किसी का भला हुआ है आजतक . "
" हाँ वह तो है , लोग सब कुछ जानने के बाद ऐसी गलती करते है "
" बस मुझे तो अपने नाती की चिंता है ,जहाँ माँ होगी वह तो वहीँ रहेगा ,सोचती हूँ छोटे बेटे के साथ लगन कर दूं बड़ी बहु का , जिससे अपना खून अपने घर आ जाये , मेरा बेटा बहुत सुन्दर ,ऊँचा पूरा है , अच्छा कमाता है वही घर भी चलाता है , बस बहु के मायके खबर कर देती हूँ .उसके माता पिता राजी कर लेंगे . "
" अच्छा विचार है तुम्हारा बेटा तैयार है "
" हाँ वह तैयार है , बहु को भी मना लेंगे, बस जल्दी बरसी करके यही काम करूंगी . मेरा नाती भी घर आ जायेगा फिर ".
मै उसकी समझदारी पर उसे देखती ही रह गयी . एक संतुष्ट भाव था चहरे पर . झोपड़ी में रहने वाली कितनी आसानी से जीवन के पन्नो को समेटती जा रही थी . आज अशिक्षित होकर भी उसके विचार कितने ऊँचे है .
5) डर --
मथुरा से हरिद्वार जाने के लिए बस में सामान रखकर 2 नो. की जैसे सीट पर बैठने लगी , तभी कंडक्टर ने कहा की नहीं इस सीट पर नहीं बैठना है , सभी को मना कर रहा था बैठने के लिए . सभी यात्री आने के बाद बस तेजी से अपने गंतव्य की तरफ चल पड़ी .काफी दूर जाने पर सुनसान इलाका शुरू हो गया था , सभी यात्री को शांत बैठने के लिए कहा गया था क्यूंकि इलाका आतंकी क्षेत्र में आता था शायद . कोई कुछ समझ पाता इतने में गोली की आवाज आई और उस 2 नो की सीट पर एक आदमी बैठा था उसके आर -पार हो गयी गोली . सभी यात्री घबरा गए ड्राईवर ने तेजी से बस की गति बढा दी और भगाता रहा बस ,जब तक दूसरा गाँव नहीं आया . सभी के चेहरे पर भय के बदल छाए थे . जिस व्यक्ति को गोली लगी थी वह खून से लथपथ कहार रहा था , और बडबडा रहा था कि -
" हे ईश्वर , यह क्या किया तुने , तेरे दर्शन कर मुझे क्या मिला ....... पानी पिला दो कोई ......मेरे घर फ़ोन कर दो , मेरा मोबाइल जेब में है ले लो " करूण पुकार थी .
पर आश्चर्य किसी ने भी उसे हाथ नहीं लगाया ,कोई भी मदद के लिए आगे नहीं आया ,मैंने पानी की बोतल लेकर उसे पानी पिलाना चाहा तो सभी ने रोक दिया ," नहीं पानी नहीं पिलाना .
यह सब दिमाग देखकर सुन्न हो चूका था ,क्या मानवता भी ख़त्म हो गयी . सभी की आवाजे गूंज रही थी .पुलिस केस है ...... हाथ मत लगाओ ........वगेरह .
आगे एक गावं में ड्राईवर ने बस रोकी , एक रिक्शे वाले को पैसे दिए , और उस आदमी को रिक्शे में बिठाकर कहा कि " जिला अस्पताल छोड़ देना ".
यह कैसा डर है जो ऐसी परिस्थिति में भी मदद करने से रोक रहा है . कहाँ खो गयी मानवता या कार्यवाही के डर से इतनी स्वार्थी हो गयी थी .
शशि पुरवार की इन लघुकथाओं के बाद एक मध्यांतर तो होना ही चाहिए.........,किन्तु उससे पहले मैं ले चलती हूँ आपको वटवृक्ष पर जहां दिलीप उपस्थित हैं अपनी गजल के साथ ....यहाँ किलिक करें
namaskaar rashmi ji
जवाब देंहटाएंbahut sundar prastuti parikalpana ki
abhaar hamen bhi shamil karne ke liye .
हर लघुकथा स्वयं में विशेष है , मुझे तो बहुत पसंद आयीं |
जवाब देंहटाएंसादर