अंक,रेखा,नाम,तिथि ..... इस आधार पर सशक्त पकड़ वाले सशक्त विचार ही रखते हैं . संभावनाओं के कई द्वार गणना के आधार पर खुलते हैं . सच पूछिए तो ज्योतिषी एक गहन ध्यान की प्रक्रिया है .... सत्य,सहज,विनम्र ....
धूम है हर तरफ कि इस माह यानि दिसम्बर 2012 में दुनिया ख़त्म हो जाएगी तो .... सबसे पहले हम सारी कटुता भूल जाएँ और संगीता जी के विचारों से अवगत हों =
जिस तरह जन्म और मृत्यु जीवन का सत्य है , उसी प्रकार आशा और आशंका हमारे मन मस्तिष्क के सत्य हैं। जिस तरह गर्भ में एक नन्हीं सी जान के आते ही नौ महीने हमारे अंदर आशा का संचार होता रहता है , वैसे ही किसी बीमारी या अन्य किसी परिस्थिति में बुरी आशंका भी हमारा पीछा नहीं छोडती। मन मस्तिष्क में आशा के संचार के लिए हमारे सामने उतने बहाने नहीं होते , पर आशंका के लिए हम पुख्ता सबूत तक जुटा लेते हैं। कुछ दिनों से लगातार 2012 दिसम्बर के बारे में विभिन्न स्रोतो से भयावह प्रस्तुतियां की जा रही हैं। इससे भयभीत या फिर जिज्ञासु पाठक एक माह से मुझसे इस विषय पर लिखने को कह रहे हैं , पर दूसरे कार्यो में व्यस्तता की वजह से इतने दिन बाद आज मौका मिला है।
आखिर इस विषय पर विभिन्न विचारकों की क्या दलील है , इसे जानने के लिए मैने 25 नवम्बर को गूगलिंग की , इस विषय पर आठ दस विंडो खुले हुए थे और 12 बजकर पांच मिनट रात्रि मैं इसके अध्ययन में तल्लीन थी कि अचानक हमारे यहां भूकम्प का एक तेज झटका आया , दूसरी मंजिल पर होने के बावजूद मैं हिल गयी। पर झारखंड भूकम्प का क्षेत्र नहीं , पच्चीस पच्चास वर्षों बाद यहां कभी भूकम्प आता हो। मैं तो सोंच में पड गयी , इस प्रकार के लेखों को पढने के कारण शायद मुझे ऐसा भ्रम हुआ हो , पर जब अपने कमरे में पढ रहे मेरे बेटे ने आकर कहा कि वह बेड पर बिल्कुल डोल रहा था , तब ही मुझे तसल्ली हुई। फिर कुछ ही देर में इससे संबंधित जानकारी लेने के बाद मैंने कंप्यूटर बंद कर दिया। किसी समाचार से कोई जानकारी नहीं मिली , पर सुबह बोकारो के सारे लोगों ने पुष्टि की कि वास्तव में रात में भूकम्प आया था।
21 दिसम्बर 2012 … यही वह दिन है , जिसके बारे में भयानक प्राकृतिक आपदा के उपस्थित होने की आशंका बन रही है । आखिर क्या कह रहे हैं , उस दिन के ग्रह नक्षत्र । यह जानने के लिए मैने अपने सॉफ्टवेयर में विवरण डाला , पर परिणाम देखकर चौंक पडी , जिन ग्रहों को आसमान के 360 डिग्री में रहना चाहिए था , वे 500 डिग्री तक में दिख रहे थे। ‘गत्यात्मक ज्योतिष’ के अनुसार जिन ग्रहों की जिन शक्तियों के पूर्ण मार्क्स 100 दिए जाने थे , वे 200 यहां तक कि 400 दिखा रहे थे। यह किस चक्कर में पड गयी मैं , मैं तो एक बार फिर से भयभीत हो गयी , क्या उस दिन सचमुच कुछ उल्टा होनेवाला तो नहीं । पर जब प्रोग्राम के अंदर देखने की चेष्टा की , तो समझ में आया कि ‘गत्यात्मक ज्योतिष’ के सिद्धांतों पर आधारित इस सॉफ्टवेयर की प्रोग्रामिंग मैने 2010 तक के लिए ही की थी और 2012 के दिसम्बर की गणना की वजह से यह परेशानी आ रही थी।
अब इतनी जल्दी सॉफ्टवेयर को ठीक कर पाना संभव न था , आलेख को लिखने की हडबडी भी थी , मैन्युली काम करना ही पडेगा , फार्मूले को किसी डायरी से ढूंढकर उतना गणना करना आसान तो न था , पर संयोग अच्छा था कि पिताजी बोकारो आए हुए थे , उनकी अपनी शोध , अपना फार्मूला , अपने नियम , उन्होने फटाफट सारे ग्रहों की सब गणना कर डाली। बस उसके बाद उन्हें कुछ करने की आवश्यकता नहीं थी। उनके सिद्धांतों के आधार पर हर क्षेत्र का रिसर्च और उससे संबंधित भविष्यवाणियां करने की जबाबदेही मुझ पर ही है। पूरे जीवन की मेहनत के बाद उत्साह बढाने वाली भी कोई बात हो , तभी तो इतनी उम्र में वे पुन: मेहनत कर सकते थे। लेकिन सारी गणना करने के बाद क्या निकला परिणाम , इसे जानने के लिए आपको अगली कडी का इंतजार करते हुए एक बार आप सभी पाठकों को और तकलीफ करनी पडेगी।
2012 में इस दुनिया के अंत की संभावना हकीकत है या भ्रम ? इसकी पहली कडी को लिखने के बाद दूसरे कार्यों में व्यस्तता ऐसी बढी कि आगे लिखना संभव ही न पाया। 2012 दिसंबर को दुनिया के समाप्त होने के पक्ष में जो सबसे बडी दलील दी जा रही है , वो इस वक्त माया कैलेण्डर का समाप्त होना है। माया सभ्यता 300 से 900 ई. के बीच मेक्सिको, पश्चिमी होंडूरास और अल सल्वाडोर आदि इलाकों में फल फूल रही थी , इस सभ्यता के कुछ अवशेष खोजकर्ताओं ने भी ढूंढे हैं। माना जाता है कि माया सभ्यता के लोगों को गणित, ज्योतिष और लेखन के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल थी। माया सभ्यता के लोग मानते थे कि जब इस कैलिंडर की तारीखें खत्म होती हैं, तो धरती पर प्रलय आता है और नए युग की शुरुआत होती है। इसका कैलिंडर ई. पू. 3114 से शुरू हो रहा है, जो बक्तूनों में बंटा है। इस कैलिंडर के हिसाब से 394 साल का एक बक्तून होता है और पूरा कैलिंडर 13 बक्तूनों में बंटा है, जो 21 दिसंबर 2012 को खत्म हो रहा है।
वैसे तो माया कैलेण्डर के आधार के बारे में मुझे पूरी पूरी जानकारी नहीं , फिर भी माया कलेंडर में एक साथ दो दो साल , पहला 260 दिनों का और दूसरा 365 दिनों के चलते थे। मैं समझती हूं कि 365 दिन का साल तो निश्चित तौर पर सौर गति पर आधारित होता होगा , जबकि 260 दिनों का साल संभवत: 9 चंद्रमास का होता हो। इस तरह इसके 4 चंद्रवर्ष पूरे होने पर 3 सौरवर्ष ही पूरे होते होंगे , जिसका सटीक तालमेल करते हुए वर्ष के आकलन के साथ ही साथ ग्रह नक्षत्रों और सूर्यग्रहण , चंद्रग्रहण तक के आकलन का उन्हें विशिष्ट ज्ञान था। इससे उनके गणित ज्योतिष के विशेषज्ञ होने का पता तो चजता है , पर फलित ज्योतिष की विशेषज्ञता की पुष्टि नहीं होती है। कोर्नल विश्वविद्यालय में खगोलविद ऐन मार्टिन का भी कहना है कि माया कैलेंडर का डिजायन आवर्ती है। ऐसे में कहना कि दीर्घ गणना दिसंबर 2012 को समाप्त हो रही है, सही नहीं है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे हमारी सभ्यता ने नई सहस्त्राब्दी का स्वागत किया था। इस प्रकार यह माना जा सकता है कि माया कैलेण्डर के वर्ष का समाप्त होना बिल्कुल सामान्य घटना है।
हम सभी जानते हैं कि घडी या कैलेण्डर समय को याद रखने का एक माध्यम भर है , यह अपने में बिल्कुल तटस्थ है और हरेक व्यक्ति को अपनी सुविधानुसार इसका उपयोग करना होता है। न तो किसी प्रकार की खुशी और न ही किसी प्रकार के गम से इसका कोई लेना देना होता है। अपनी सुविधा के लिए हम घडी और कैलेण्डर की तरह अन्य साधनों का निर्माण करते हैं। किसी न किसी दिन सबका अंत होना ही है , कंप्यूटर इंजीनियरों द्वारा कंप्यूटर के सॉफ्टवेयर की प्रोग्रामिंग 2000 तक के लिए की गयी थी। 2000 के एक दो वर्ष पूर्व से ही इस बात को लेकर हंगामा मचा हुआ था कि Y2K की समस्या के कारण हमारे सारे कंप्यूटर बेकार हो जाएंगे , पर ऐसा नहीं हुआ। उस समस्या को दूर किया गया और आज भी हम उसका उपयोग कर रहे हैं। पिछले लेख में आपने पढा कि 2010 तक ही अपने सॉफ्टवेयर की प्रोग्रामिंग किए होने से 2012 दिसंबर की ग्रहीय गणना में मेरे समक्ष भी बाधा आयी। अब यदि इस मध्य मैं दुनिया में न होती , तो मेरे किसी शिष्य के द्वारा इस बात का भयावह अर्थ लगाना भी संभव था। किसी असामान्य परिस्थिति में इस प्रकार का भ्रम पैदा हो जाना बिल्कुल स्वाभाविक है , पर हर वक्त हमें अपने विवेक से काम लेना चाहिए। सिर्फ माया कैलेण्डर की चर्चा में ही पोस्ट की लंबाई बढ गयी है , जबकि 2012 के प्रलय की संभावना के बारे में बहुत सारे सबूत जुटाए गए हैं , सबकी चर्चा के लिए फिर अगली कडी का इंतजार करवाने को बाध्य हूं।
मध्यांतर के बाद मैं पुन: आपको संगीता जी के विचारों से अवगत कराउंगी ......लेकिन मध्यांतर हो उससे पहले चलिये चलते हैं वटवृक्ष की ओर जहां अपनी कविता के माध्यम से हवाओं की अलगनी पर झूलते सवालों से रूबरू करा रही हैं रश्मि .......यहाँ किलिक करें
2012 के प्रलय की संभावना के बारे में ... संगीता जी का यह आलेख विस्तृत जानकारी देता हुआ है ... अगली कड़ी की प्रतीक्षा के साथ
जवाब देंहटाएंआभार इस प्रस्तुति के लिये
सादर
अगली कड़ी की बेसब्री से प्रतीक्षा है
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा का तार्किक समाधान !
जवाब देंहटाएंप्रलय हो या ना हो उसके बारे में जानने - समझने की उत्सुकता जरुर रहती है, बहुत सारी जानकारी मिली आपके आलेख को पढ़कर...
जवाब देंहटाएंतार्किक विश्लेषण ,
जवाब देंहटाएंआभार
सादर