बिना हास्य कल्पना कहाँ !!! शरीर,मन,दिमाग की तंदुरुस्ती के लिए इस रस का सेवन आवश्यक है ..... तो जिसे जो पसंद आये , वो रस ले ले ....
हास्य कवि सम्मलेन... | My Poems(अमित शर्मा)
हो रहा है एक "हास्य कवि सम्मलेन"
हमारे दोस्तों का मेल आया...
"अमित जी" आप क्यों नहीं लेते भाग
सारे दोस्तों ने हमे चढाया ...
भोला मन बातो में आया
और जा हमने भी रजिस्ट्रेशन कराया...
एक दो ही कविताये अच्छी बन पाई थी
उन्ही के दम हमको लड़नी यह लड़ाई थी...
दो हफ्ते बीते, कहीं से कोई खबर न आई
लगा रेवीऊ पर ही वीरगति कविता ने पाई...
जाने कहाँ कैसे कहानी यह कुछ पलटा खा गई
और कवि सम्मलेन से के दिन पहले सलेक्शन की मेल आ गई...
ख़ुशी के साथ अब हमारी आँखों में तारे घूमते थे
स्टेज पर जाने की सोच, हाथ पाऊँ हमारे फूलते थे ...
हालत कुछ अजीब सी थी, करे क्या न सूझता था
रह रह गुस्सा कुछ, दोस्तों पर अपने फूटता था...
"घबराओं मत" दोस्तों ने हमारे समझाया
आओ करेंगे कुछ प्रेक्टिस सबका जबाब आया ...
पहली बार पढ़ी जब कविता, हैसियत अपनी समझ आई
एक भी न थी पंक्ति जो स्पष्ट मुहं से निकल कर आई ...
अपना तो यहाँ भी हो गया पोपट था
प्लान अब लगता यह भी चोपट था ...
हम तो थे जो थे हिम्मत अपनी हारे
मगर दोस्त कोशिश में अभी भी थे सारे ...
घंटे, लम्हों में बीत फिर वो शाम आई
और घबराते हुए हमने कवि-सम्मलेन में अपनी हाजरी लगाई...
कुछ दिग्गजों ने हमसे पहले थे वहां हाजरी लगाई
एक से बढ़ एक कविताये वहां उन्होंने सुनाई ...
अब हमारी बारी थी, संचालक ने आवाज़ लगाई
हिम्मत जुटा मंच पर पहुंचे, और कविता अपनी सुनाई ...
आवाज़ कुछ धीमी सी निकली , राम जाने कितने शब्द दिए सुनाई
कुछ तितलियों ने भी थी पेट में कुछ हलचल मचाई ...
पंक्तियों पर घर जाने कुछ जल्दी सी थी छाई
छोड़ कतार कुछ थी पहले मुंह पर हमारे आईं...
क्रम का वहां क्या किसी ने करना था,
जल्दी कर कविता खत्म, हमे तो बस निकलना था...
राम जी की दया से, जैसे तैसे इज्ज़त बचाई थी
हमारे मंच छोड़ने की ख़ुशी में फिर जनता ने ताली बजाई थी...
इस कवि सम्मेलन की जो है सीख, वो बतायेंगे
दोस्त चाहे अब कितना "चढाये", आगे से किसी मंच पर न हम जायेंगे ...
(" मुझे प्रेरित करने वाले सभी दोस्तों के लिए !!! ")
बात क्या मुंह में, बैठ कर सुनोगे - हास्य कविता ...(राजेंद्र तेला)
हंसमुख जी
दन्त चिकित्सक थे
दांतों का इलाज करते थे
फिर बात करते थे
एक दिन दर्द से पीड़ित
एक बुजुर्ग महिला उनके पास आयी
बोली दांत निकलवाना है
हंसमुख जी बोले
पहले मुंह खोलो,फिर बात सुनूंगा
हंसमुख जी ने महिला से
मुंह खुलवाया
ज़रा कम खुला था,सो बोले और खोलो
ज़रा और खोलो
बार बार यही बोलते रहे
महिला परेशान हो गयी
फिर झल्लाहट में बोली
बात क्या मुंह में, बैठ कर सुनोगे
दांत कब निकालोगे
निरंतर यही होता था
कोई ज्यादा खुलवाने पर
नाराज़ होता
कोई कम खुलवाने पर
बोलता रहता
हास्य-व्यंग: मिडिल क्लास की यंत्रणा(सुरश चन्द्र गुप्ता)
गर्मी इस बार कुछ ज्यादा ही पड़ गई,
वर्मा जी भी हो गए परेशान,
कुछ पसीने से,
कुछ बीबी-बच्चों के तानों से,
घर में एसी लगवा लिया,
खूब ठंडी हवा खाई,
कोलोनी में बिना एसी वालों को देखते,
तब मन ही मन कहते,
'उफ़ यह मिडिल क्लास वाले',
फिर आया विजली का बिल,
एसी की ठंडी हवा में पसीने आ गए,
लोन की किश्त भरें,
या विजली का बिल दें?
डराबने सपने आने लगे,
कभी विजली कट जाए,
कभी बेंक के गुंडे आ जाएँ,
खुद ही एसी वापस कर आये,
पसीना वर्दाश्त कर लेंगे,
लोन पर एसी लेकर,
मिडिल से अपर क्लास नहीं हो जाता कोई.
जितना बिजली चलाये-हिन्दी हास्य व्यंग्य कविता(दीपक भारतदीप)
कवि सम्मेलन में
बिजली गुल हो गयी
एकदम सन्नाटा छा गया
सब श्रोता चिल्लाने लगे
नहीं रहे थे वह अब शांति के पाबंद,
एक श्रोता बोला
‘‘कवि भाईयों
इस बिजली गुल होने पर
कोई कविता सुनाओ,
अंधेरे पर कुछ गुनगुनाओ,
देशभक्ति पर बाद में
अपने गीत और गज़लें सुनाना,
मौका है तुम्हारे पास
चाहो तो तरक्की का मखौल उड़ाना,
हमारे अंदर का दर्द बाहर आ जाये,
आप में से कोई ऐसा गीत गाये।
सुनकर एक कवि बोला
‘‘अंधेरा मेरा गुरु है
जिससे प्रेरित होकर मैंने शब्द शास्त्र चुना
उसका मखौल मैं उड़ा नहीं सकता,
बिजली की राह भी अब नहीं तकता,
आ जाये तो कुछ लिख पाता हूं,
नहीं आती तो सो जाता हूं,
इस देश में अंधेरा बसता है
यह बिजली ने आकर ही बताया,
हैरानी है यह देख कर
अंधेरे ने पुराने लोगों को नहीं सताया,
हंसी यही सोचकर आती है
बिजली की रौशनी के हम गुलाम हो गये,
सूरज का प्रकाश अब मायने नहीं रखता
तरक्की में इंसानी जज़्बात कहीं खो गये,
मैं बोल सकता हूं
तुम सुन सकते हो
मगर इस कमरे में
लाचार साये हो गये,
ओढ़ ली है बेबसी हमने खुद
उतना ही चलते हैं जितना बिजली चलाये,
कुदरत ने इंसान बनाया
मगर हम रोबोट बन गये,
यह अलग बात है कि
बिजली से चलने वाले रोबोट हमने बनाये,
वह हमारे काम आते हैं,
पर हम खुद कभी किसी के काम न आये।
आप कविता का आनंद लें और मुझे दे अनुमति जाने का ......कल फिर उपस्थित होती हूँ परिकल्पना पर सुबह 10 बजे , तबतक शुभ विदा !
सभी रचनाएँ बेहतर । मस्त !!!
जवाब देंहटाएंहास्य/व्यंग्य की सुन्दर महफ़िल...
जवाब देंहटाएंसादर.
हास्य रस से सराबोर कर दिया।
जवाब देंहटाएंwah... :)) jabab nahi
जवाब देंहटाएंआप जीवन के सारे रंग से मिला रही हैं :))
जवाब देंहटाएंआभार !!
हास्य की सुन्दर महफिल सजाई है..मजा आगया..
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को परिकल्पना में स्थान देने के लिए शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबेहतरीन,सुंदर हास्य रचनाये,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: वजूद,
बहुत अच्छा !
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं एक से बढ़कर एक हैं ... आभार इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिये
जवाब देंहटाएंसादर