कौन झंकृत करता मन के तार
कौन है ये मन के क्षितिज के पास
कौन है जो शून्य में है बोलता
मेरे मन की गाँठ सारी खोलता
किसकी मैं अनुगामिनी बन चल रही हूँ
सात फेरों से परे
त्रिलोक परिक्रमा कर रही हूँ ..........
मानस मंथन : मानस मंथन से -------(शशि पाधा)
कौन तुम चन्दन से भीगे
सांसों में रम जाते हो?
सोये तार बजाते हो ?
कौन तुम ?
धरती जब भी पुलकित होती
तेरे कर ने छुआ होगा,
पुष्प पँखुरी जब भी खुलती
अधर तेरे ने चूमा होगा ।
वायु की मीठी सिहरन में
क्या तुम ही मिलने आते हो ?
कौन तुम ओस कणों में
मोती सा मुस्काते हो ?
कौन तुम ?
मन दर्पण में झाँक के देखूँ
तेरा ही तो रूप सजा है।
नयन ताल में झिलमिल करता
तेरा ही प्रतिबिम्ब जड़ा है।
मेरा यह एकाकी मन
क्या तुम ही आ बहलाते हो?
कौन तुम रातों के प्रहरी
जुगनु सा जल जाते हो
कौन तुम?
रँग तेरे की चुनरी प्रियतम
बारम्बार रंगाई मैंने
नयन-ज्योत जलाई मैंने
कभी कभी द्वारे पे आ, क्या
तुम ही लौट के जाते हो?
कौन तुम अवचेतन मन में
स्पन्दन बन कुछ गाते हो?
कौन तुम?
ऎसे तुम को बाँधूं मैं
इस बार जो आयो,लौट न पायो
बंद कर लूं नैंनों के द्वारे
चाह कर भी तुम खोल न पायो
अनजानी सी इक मूरत बन
क्या तुम ही मुझे सताते हो?
कौन तुम पलकों में सिमटे
सपने सा सज जाते हो ?
कौन तुम??
जुबां पे आ जाती हैं ये पंक्तियाँ = तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या! (महादेवी वर्मा)
शून्य में कोई चुप भी है, कोई चल रहा है जलती आग पर और सब खामोश हैं .... अजीब सी स्थिति है
चल रहे हैं लोग जलती आग पर........(कुँवर कुसुमेश)
चल रहे हैं लोग जलती आग पर.
बेसुरे भी लग रहे हैं राग पर.
नज़्म अच्छी या बुरी जैसी भी हो,
आदमी पर मत कभी करिये यक़ीं,
आप कर लीजे भरोसा नाग पर.
दुश्मनी का खैरमक़दम हो रहा,
और डाका प्यार पर,अनुराग पर.
भ्रष्ट नेता आज हिन्दुस्तान के,
ख़ुश बहुत दामन के अपने दाग पर.
दूसरों के काम तो आओ कभी,
है 'कुँवर' हमको भरोसा त्याग पर.
एक सत्य निष्काषित हो गया जीवन से। - बुरांस के फूल ...(सोनिया बहुखंडी गौड़)
क्या पाया इस जीवन मे!!
बस मैंने खोया
जो पाया वो भ्रम था
जो खोया वही सत्य था
और तुमको खो बैठी
तुम ही सत्य थे
जब तुमको खोया
एक सत्य निष्काषित
हो गया जीवन से।
एक सूचना : जैसा कि आप सभी को विदित है कि परिकल्पना उत्सव में हम प्रत्येक दिन किसी एक जानी मानी हस्ती से आपको मिलवाते रहे है, किन्तु विगत शनिवार से तकनीकी कारणों से हम ऐसा नहीं कर सके । अचानक परिकल्पना ब्लोगोत्सव में तकनीकी गड़बड़िया आ गयी फलत: जानी मनी हस्तियों से मिलवाने का कार्यक्रम तीन-चार दिनों तक स्थगित रहा । अफसोस तो यह है कि साइट से संबंधित गड़बड़ियों में कई महत्वपूर्ण पोस्ट डिलीट हो गए, जिसमें प्रमुख है दिलीप कुमार साहब और सुभाष नीरव का साक्षात्कार । हमें खुशी है कि अब यह साइट काम करने लगा है, जैस्पर आज प्रस्तुत है हिन्दी के जानेमाने अनुवादक प्रो .( डॉ )कृष्ण कुमार गोस्वामी से डॉ रामा द्विवेदी की बातचीत......यहाँ किलक करें
मैं मिलती हूँ एक मध्यांतर के बाद ।
सभी रचनाए बहुत खुबसूरत है..
जवाब देंहटाएंसुंदर रचनाएँ ...सभी ...
जवाब देंहटाएं’कौन तुम’? का शाश्वत प्रश्न मथता है हमेशा ही मन को!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनायें! आभार।
क्या दोबारा से तकनीकी धाँधली न हो, यह सुनिश्चित कर लिया है
जवाब देंहटाएंमुझे यहाँ स्थान देने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंनज़्म अच्छी या बुरी जैसी भी हो,
जवाब देंहटाएंवाह,कहने का चलन है ब्लॉग पर.
:)
सादर