स्वागत है आपका पुन: परिकल्पना पर
चिराग जैन की कविता प्रस्तुति से पूर्व
मैं आपको भिन्न-भिन्न चिट्ठाकारों की राय से अवगत करा रही थी
विषय था आज की मॉल संस्कृति  सकारत्मक या  नकारात्मक ?
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इस बारे में पूछने पर कई लोगों ने बताया कि अच्छे माहौल वाले शॉपिंग मॉल में खरीदारी करने का मजा ही कुछ और है तो किसी ने इसे गरीबों की इज्जत के साथ मजाक बताया . सबके अपने-अपने तर्क हैं ......
चलिए इस क्रम को आगे बढाते हैं और चलते हैं शिखा वार्ष्णेय  जी के पास , उनसे पूछते हैं कि वे इस संस्कृति को किस रूप में देखती  हैं ?
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माल लाइफ - यानि एक छत के नीचे सब कुछ उपलब्ध ....वो भी बिना गर्मी / सर्दी के अहसास के ...वैसे सच पूछिये तो मुझे तो ये लाइफ बहुत ही सुविधा जनक लगती है ....खूबसूरत साफ़ सुधरे माल में ,बिना गर्मी या सर्दी से परेशान हुए खरीदारी करने का जो मजा है वो अपने घिचे पिचे बाजारों में कहाँ ? ऐसे माहोल में खरीदारी करने की क्षमता भी बढ़ जाती है ..अब जब सारा सामान इतनी खूबसूरती से लगा हुआ सामने दीखता है तो ...जरुरत के साथ बहुत कुछ बिना जरुरत का सामान भी खरीद लिया जाता है ...बजट का क्या? देख लेंगे बाद में और फिर क्रेडिट कार्ड किस मर्ज़ कि दवा है, अभी यहाँ सेल भी है ( हालाँकि हमेशा ही होती है ) जबकि अपने महल्ले का दूकान दार तो एक पैसा कम नहीं करता आजकल .और एक एक सामान बताना पड़ता है तब जाकर निकालता है कितना समय की बर्बादी ...फिर खरीदारी करते -करते भूख ,प्यास लगे तो पूरा फ़ूड बाजार भी वहीँ ...बच्चे से लेकर बूढ़े तक और हिन्दुस्तानी चाट से लेकर इटालियन पास्ता तक सब मिल जायेगा .कितना सक्रीय योगदान है ग्लोबलाइजेशन में कभी सोचा आपने ? और अगर आप खरीदारी करते करते ऊब गए हैं तो जाकर सिनेप्लेक्स में कोई फिल्म देख लीजिये ...अंग्रेजी ,हिंदी,या कार्टून भी..पूरे परिवार की पसंद का ख्याल रखा जाता है वहां, सिनेमाघरों से तो सरकार टैक्स भी वसूलती है पर यहाँ कोई टैक्स नहीं लिया जाता फिर भी टिकट ४ गुना ज्यादा होती है. एक की टिकट न मिले तो दूसरी देख लीजिये... सब कुछ एक ही छत के नीचे ...नहाने के साबुन से लेकर मोटर कार तक ...और वो भी बिना भाव - ताव किये ...अब ये बात अलग है...कि आम बाजारों से इनके भाव ४ गुने होंगे तो ये भी उन बेचारों की मजबूरी ही है , माल वालों को भी तो अपनी मेंटेनेंस निकालनी है ,A C का खर्चा निकलना है ..खूबसूरत वर्दी में रखे स्टाफ कि तनख्वाह भी देनी है और उस पर एक स्टेंडर्ड भी तो कायम रखना है न भाई...फिर कितनी स्कीम भी होती हैं वहां १ के साथ एक फ्री ...कभी कभी तो १ से ५ फ्री. ...पुराना कवाडा लाओ नया ले जाओ (..वर्ना वो कबाड़ी वाला आता था कितनी मच मच करो उससे तब जाकर कहीं एक - आधा स्टील का बर्तन दे जाता था वो ....)अब उनका भी स्टेंडर्ड बढ़ गया है सबको माल में नौकरी मिल गई है ..अब भला कहाँ से निकालेंगे वे ये सब ?.और फिर वही फूटपाथ के सामान को अच्छी पैकिंग में सजा कर भी तो रखना पड़ता है न ..वर्ना १०० रुपये की चीज़ के ५०० रुपये कौन बेबकूफ देगा भला.?...क्या कहा? हमने आपको बेबकूफ कहा ? अरे नहीं नहीं जी कैसी बातें करते हैं आप ...अच्छे अच्छे कपडे पहन कर इतनी अच्छी कीमत देकर आप सामान खरीदते हैं ...पहले दुकानदार सामान गिनता था तो तुनक पड़ते थे " अबे यकीन नहीं है क्या ? बेकार टाइम खराब करता है .." पर माल की दुकानों में वो बिल हाथ में लेकर एक एक सामान चेक करता है तो शान से सबर के साथ खड़े रहते हैं ...आप भला बेबकूफ कैसे हो सकते हैं ?..



शिखा वार्ष्णेय





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आईये अब एक चिट्ठी पर नजर डालती हूँ यह चिट्ठी माला जी ने भेजी है रवीन्द्र जी और पूरी ब्लोगोत्सव की टीम के नाम ....

आपके सद्प्रयास को सर्वप्रथम नमन. 'सार्थक सोच कुछ भी सम्भव कर सकती है' - आपने साबित कर दिया.आपका हर कदम इतना प्रभावशाली है, हर स्वर को इतनी गरिमा से प्रस्तुत करते हैं आप कि कोई भी बरबस आकर्षित हुए बिना नहीं रह सकता .एक सार्थक और उद्देश्यपूर्ण पहल करते हुए इसे आपने उत्सव का नाम दिया और कहानी, कविताओं, सुरों , कलाकारों की विविधताओं के साथ एक नई उपजाऊ धरती पर  संतुलन बनाने का प्रयास किया  ,यानी आपने जिन रचनात्मक सपनों को अर्थ देने का प्रयास किया है वह निश्चित रूप से सराहनीय है.
 
आप प्रशंसनीय ही नहीं श्रद्धेय भी हैं
आपके इस अवदान को शायद ही कोई नकार सकेगा कभी
ब्लोगोत्सव की पूरी टीम को ढेर सारी बधाईयाँ !
 
 
 
 
माला
http://mahaanbhaarat.blogspot.com/
 
 
 
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परिचर्चा जारी रहेगी अगले चरण में भी, किन्तु उससे पहले आईये चलते हैं कार्यक्रम स्थल की ओर जहां श्री अरुण चंद्र रॉय उपस्थित हैं अपनी कविता गुल्लक लेकर .....यहाँ किलिक करें
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जारी है उत्सव बने रहिये परिकल्पना के साथ मैं अभी गयी अभी आई ......

5 comments:

  1. बड़ा सजीव चित्रण किया है मॉल का...बहुत बहुत बधाई....

    माला जी का पत्र भी रुचिकर लगा

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  2. बहुत सुंदर संचालन,बहुत बहुत बधाई....

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  3. भावपूर्ण और सार्थक सन्दर्भों से युक्त परिचर्चा

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  4. बहुत ही कुशलता से मॉल की असलियत बतायी है..व्यंग्य का तड़का भी बहुत शानदार था.

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