परिकल्पना पर
पिछली कड़ी में
मैंने शिखा वार्ष्णेय जी से जानने की कोशिश की कि
उनकी नज़रों में मॉल संस्कृति का असर हमारे समाज में
सकारात्मक है या नकारात्मक ?
आईये मैं इसी परिचर्चा को आगे बढाती हूँ और चलती हूँ वाणी शर्मा जी के पास यह जानने के लिए कि उनकी नज़रों में मॉल संस्कृति सकारात्मक है या नकारात्मक ?
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हर शहर में गगनचुम्बी इमारतों में जगमगाते शौपिंग मॉल देश के विकासशील होने की पुष्टि करते नजर अआते हैं . कुछ वर्षों पहले तक इन मॉल में खरीददारी करना आम इंसान के वश की बात नहीं थी मगर उदारीकरण की प्रक्रिया ने हमारे देश में एक नव धनाढ्य मध्यमवर्ग को जन्म दिया है . विदेशी कमपनियों द्वारा मिलने वाले अच्छी तनख्वाह ने अनायास ही अमीर हुए इस वर्ग के संख्या में भारी इजाफा किया . पढ़ी लिखी यह पीढ़ी आधुनिक जीवन शैली को अपनाते हुए आज ही जी लेने में विश्वास करती है . अपने जीवन को मौज मस्ती से गुजारने के लिए इनके हाथ अच्छी कमाई के कारण खुले हुए हैं जो बाजार के ललचाई आँखों का निशाना भी बने है . मॉल-संस्कृति इन्ही नव धनाढ्यों को लुभाने और भुनाने का जरिया है . चमचमाते गगंचुमी इमारतों में बने ये मॉल ग्राहकों को विशिष्ट होने का अहसास करते हुए उनके अहम् को संतुष्ट करते हैं . आम मध्यमवर्ग की खरीद क्षमता में वृद्धि होने के कारण आधुनिक जीवनशैली अपनाते यह वर्ग घर और ऑफिस में एयरकंडीशन की हवा खाते हुए पल बढ़ रहा है इसलिए मौज मस्ती के पलों में भी यह ऐसा ही वातावरण चाहता है जो मॉल संस्कृति उन्हें उपलब्ध करने में सफल होती है . एक ही स्थान पर सभी जरुरत /शौक पूरे करने अवसर उपलब्ध होना , ब्रांडेड माल के प्रति बढती आसक्ति प्रकृति से दूर जीवन बिता रहे इस वर्ग को बहुत लुभा रही है .बिना इस बात कि परवाह किये कि आम दुकानों के मुकाबले मॉल में एयर कंडीशन ,एक्सेलेटर , लिफ्ट, सुरक्षा व्यवस्था ,बिजली , सफाई आदि का अतिरिक्त खर्चा उनकी जेब से ही वसूला जा रहा है .
मगर यह मॉल संस्कृति गरीब और अमीर के बीच बढती खाई का एक प्रमुख कारण भी बनती जा रही है . इनकी देखादेखी करती गरीब जनता मोबाइल और नित नए वाहनों के लालच में फंस कर क़र्ज़ के चक्रव्यूह में उलझकर और गरीब होती जा रही है .
छोटे दुकानदारों के लिए रोजगार की कमी होने के अलावा रोजगार मॉल संस्कृति का सबसे बड़ा खतरा कुछ कोर्पोरेट घरानों के हाथ में अर्थव्यवस्था के केंद्रीकृत होने का भी है .हालाँकि बढती महंगाई और रिसेशन के कारण शौपिग मॉल में बनी दुकाने व्यवसाय की मंदी को झेलने लगी हैं और बड़ी संख्या में अपने खर्चों में कटौती करने पर विवश हो रही हैं .कही न कही यह भी लाग रहा है कि मध्यमवर्ग से बहुत ज्यादा अपेक्षा रखते हुए तेजी से बढ़ते हुए मॉल्स की संख्या ने भी इनके व्यवसाय में सेंध लगाई है . मोहल्ले के पास की बने दुकानों के मुकाबले मॉल में आम आदमी का भावनात्मक जुडाव नहीं होता है और मोल भाव कर खरीदने की भारतीय संस्कृति ग्राहकों का मॉल संस्कृति से मोहभंग करती नजर आने लगी हैं .
वाणी शर्मा
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वाणी शर्मा जी के विचारों को जानने के बाद आईये चलते हैं कार्यक्रम स्थल की ओर जहां श्री अशोक कुमार पाण्डेय उपस्थित हैं अपनी कविता माँ की डिग्रियां लेकर .....यहाँ किलिक करें
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जारी है उत्सव मिलती हूँ एक अल्प विराम के बाद
जारी है उत्सव मिलती हूँ एक अल्प विराम के बाद
बहुत बहुत बधाई....
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण और सार्थक सन्दर्भों से युक्त परिचर्चा
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