"पुरस्कारों की समाज में प्राचीनकाल से ही एक लम्बी परम्परा रही है। उत्कृष्ट व सृजनात्मक कार्य को सम्मानित-पुरस्कृत करके जहाँ सम्बन्धित व्यक्ति को प्रोत्साहित किया जाता है, वहीं अन्य लोगों हेतु यह एक नजीर भी पेश करता है। पुरस्कार भावनात्मक, आर्थिक या अन्य किसी भी रूप में हो सकते हैं। सभ्यता के विकास के साथ ही पुरस्कारों के रूप, उद्देश्य व प्रयोजन में भी मात्रात्मक परिवर्तन होते गये। साहित्य में रचनाधर्मिता भी पुरस्कारों से अछूती नहीं है। कभी-कभी तो रचना स्वयं किसी के सम्मान में कही जाती है, यहाँ पर रचना स्वयं में पुरस्कार बन जाती है.........। "
यह बात कहना है वरिष्ठ साहित्यकार / चिट्ठाकार और चिन्तक श्रीराम शिवमूर्ति यादव का .....पुरस्कारों की राजनीति पर आज ये खुलकर बयान कर रहे हैं ...श्री राम शिव मूर्ति यादव का आलेख :साहित्य में पुरस्कारों की राजनीति को विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ किलिक करें
जारी है ब्लॉग उत्सव मिलते हैं एक अल्पविराम के बाद
ब्लोगोत्सव की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि प्रत्येक दिन आपकी प्रस्तुति का अंदाज बदलता रहा है , आपकी प्रस्तुति आकर्षित करती है .....आपने एक प्रकार से इतिहास रच दिया है हिंदी ब्लोगिंग में .....आपको कोटिश: साधुवाद !
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सारगर्भित रचना, बधाई !
जवाब देंहटाएंमेरी ढेर सारी शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंबिलकुल पते की बात -सहमत !
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